लेखक की कलमसम-सामयिक

सिद्ध हुआ मोदी का संकल्प

 

दशकों से लंबित अनेक कार्यों को नरेंद्र मोदी ने पूर्णता प्रदान की। महिला आरक्षण का विषय भी ऐसा था। सत्ताइस वर्षों से इसे केवल राजनीति करने का माध्यम बना कर रखा गया था। नरेंद्र मोदी के प्रयास से नारी शक्ति वंदन विधेयक लोकसभा और राज्यसभा से पारित हो गया। जबकि यह मान लिया गया था कि यह विधेयक जब भी लोकसभा में पेश होगा, तब केवल हंगामा होगा। इसके बाद इसको पारित कराने का प्रयास बंद कर दिया जाएगा। नरेंद्र मोदी ने यह धारणा बदल दी। नारी शक्ति वंदन विधेयक संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत हुआ और पारित भी हुआ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र को सर्वोच्च मानते हुए अपने दायित्वों का निर्वाह करते हैं। वह चुनाव को ध्यान में रख कर निर्णय नहीं करते हैं। बल्कि इससे आगे बढ़ कर देश और समाज का हित देखते हैं। वह चुनावी हानि लाभ का आकलन नहीं करते हैं।

नारी शक्ति वंदन विधेयक भी समाज हित को ध्यान में रख कर लाया गया। सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण कानून पर अमल होगा। यह कार्य भी सरकार नहीं बल्कि निष्पक्ष आयोग करेगा। महिलाओं को आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन ही सबसे बड़ी बाधा रहा है। पिछले अनुभव भी निराशाजनक थे। ऐसे में सरकार जब पूरी तरह आश्वस्त हुई कि इस समय संविधान संशोधन हो सकता है, तभी वह लोकसभा में विधेयक लेकर आयी। लेकिन विपक्ष ने इसका चुनावी दृष्टि से लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इंडी एलायंस के दलों के बीच अपने को पिछड़ा और मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी दिखाने की होड़ मची थी। लोकसभा और राज्यसभा दोनों में यही दृश्य था। जबकि सत्ता में रहते हुए इन दलों की प्राथमिकता में केवल अपने वोटबैंक का ही महत्व रहता था। उनकी सरकारों पर जाति विशेष को महत्व देने के आरोप भी लगते रहे हैं।

महिला आरक्षण बिल पर वही दल पूरे पिछड़े वर्ग के प्रति हमदर्दी दिखा रहे थे। यहां तक कि मुस्लिम महिलाओं के लिए भी आरक्षण की मांग उठाई गई। वह जानते थे कि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता है। फिर भी इस बहाने तुष्टीकरण की राजनीति का प्रदर्शन किया गया। कुछ भी हो, यह मानना पड़ेगा कि सरकार ने उचित समय पर यह विधेयक लाने का निर्णय लिया। विपक्ष ने मुद्दे तो पुराने ही उठाए, लेकिन इस बार वह विधेयक को पारित होने से रोकने की स्थिति में ही नहीं थे। नई संसद का निर्माण मोदी सरकार का एतिहासिक कार्य है। इसके प्रथम सत्र में भी इतिहास बना। लोकसभा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम 454 वोट से पारित हुआ। विरोध में मात्र दो मत पड़े। राज्यसभा में सर्वसम्मति से विधेयक को पारित किया गया। महिला आरक्षण बिल लाने का यह पांचवां प्रयास था। देवेगौड़ा से लेकर मनमोहन सिंह के कार्यकाल तक चार बार इस विधेयक को लाने का प्रयास किया गया। हंगामा हुआ, मारपीट हुई,इसी के साथ यह ओझल हो गया।

नरेंद्र मोदी के प्रयासों से यह अंजाम तक पहुंचा। वस्तुतः अभी तक जो प्रयास हुए उनमें नेकनियत का अभाव था। अनेक नेताओ ने इसे अपनी राजनीति का माध्यम बना लिया था। उनकी रुचि महिला आरक्षण में नहीं थी। इसके नाम पर अनेक नेता अपने को पिछड़ों का हितैषी साबित करना चाहते थे। इस बार भी ऐसे प्रयास हुए। जो लोग पहले बिल पारित कराने में विफल रहे थे, वह भी आज बेकरार दिखाई दिए कोई इसे जल्दी लागू करने के लिए बेचैन दिखा, कोई पिछड़ों, दलितों के प्रति हमदर्दी दिखा रहा था। मतलब इस बार भी पिछला इतिहास दोहराने का प्रयास हुआ। लेकिन सत्ता पक्ष के तर्कों ने ऐसे सभी प्रयासों को बेमानी साबित कर दिया। वर्तमान में सांसद सामान्य, एससी, एसटी की तीन श्रेणियों में चुने जाते हैंय हमने उनमें से प्रत्येक में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की हैं। अमित शाह ने ठीक कहा कि परिसीमन आयोग देश की चुनावी प्रक्रिया को निर्धारित करने वाली एक महत्वपूर्ण कानूनी इकाई है।पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि परिसीमन आयोग यह काम करे। इसके पीछे की वजह सिर्फ पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। ओबीसी के लिए बोलने का दावा करने वालों को पता होना चाहिए कि यह बीजेपी ही है जिसने देश को ओबीसी प्रधानमंत्री दिया है। सोनिया गांधी ने महिला बिल का पूरा श्रेय लेने की कोशिश की और बिल के पास होने से पहले जाति जनगणना, एससी, एसटी और ओबीसी महिलाओं को कोटे में कोटा देने की मांग की। लोकसभा में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने उनकी सभी दलीलों को खारिज कर दिया।

उन्होंने कहा कि 2010 में जब ये बिल राज्यसभा से पारित हो गया था। 2011 में लोकसभा में बिल लाया गया। जिसको यूपीए सरकार पारित ही नहीं कराना चाहती थी। जब बिल इंट्रोड्यूस हो रहा था- तब इन्हीं के सहयोगी दल के सांसदों को इसी कांग्रेस ने पीटा था। वर्तमान सरकार इच्छाशक्ति से यह पारित हुआ है। ओबीसी दलितों के नाम पर राजनीति करने वालों को अमित शाह ने जबाब दिया। बताया कि पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति जनजाति के सर्वाधिक प्रतिशत विधायक सांसद मंत्री भाजपा के हैं। वैसे पिछड़े दलितों के लिए लोकसभा में दहाड़ने वालों को यह बताना चाहिए कि उन्हें इस वर्ग की महिलाओं को तीस प्रतिशत टिकट देने में क्या कठिनाई रही है। 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था। सपा और राजद ने बिल का विरोध करते हुए तत्कालीन सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी थी। इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया गया। संसद से संविधान का 128वां संशोधन विधेयक 2023 पारित पारित होना सरकार की ऐतिहासिक उपलब्धि है।

नारी शक्ति वंदन अधिनियम से महिला सशक्तिकरण को और बढ़ावा देगा। राजनीतिक में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। राहुल गांधी ने अड़ंगा लगाने का प्रयास किया। कहा कि ओबीसी आरक्षण के बिना यह बिल अधूरा है। सोनिया गांधी सहित विपक्ष के अन्य नेताओं ने भी यही राग अलापा था। अमित शाह ने कहा कि चुनाव के बाद तुरंत ही जनगणना और डिलिमिटेशन होगा। महिलाओं की भागीदारी जल्द ही सदन में बढ़ेगी। विरोध करने से अनावश्यक विलंब होगा। भाजपा पिछड़ों की सबसे बड़ी हितैषी है। सरकार में 29 प्रतिशत मतलब पच्चासी सांसद ओबीसी हैं। उन्तीस मंत्री ओबीसी हैं। सत्ताइस प्रतिशत विधायक ओबीसी हैं। संविधान संशोधन के बाद लोकसभा की 543 सीटों में से 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। ये आरक्षण पंद्रह साल तक रहेगा। इसके बाद संसद चाहे तो इसकी अवधि बढ़ा सकती है। यह आरक्षण सीधे चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए लागू होगा। यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा। भाजपा सरकार ने पिछड़ों दलितों गरीबों के लिए सर्वाधिक कार्य किया है। यूपीए को ओबीसी एससी-एसटी का ख्घ्याल तब नहीं आया था जब राज्यसभा मे यह बिल पारित कराया था। भाजपा सरकार ने ग्यारह करोड़ शौचालय बनाये। बावन करोड़ बैंक अकाउंट खोले गए। सत्तर प्रतिशत अकाउंट माताओं के नाम से खोले गए। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देशभर में दिया। गुजरात में उनके प्रयासों से जनजागृति के माध्यम से बिना किसी कानून के लिंग अनुपात में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ।

महिलाओं का संगठन में तैतीस प्रतिशत स्थान देने वाली भाजपा एकमात्र पार्टी है। अनुच्छेद 303, 30ए लोकसभा में मातृशक्ति को एक तिहाई आरक्षण देगा। 332ए विधानसभाओं में मातृशक्ति को एक तिहाई आरक्षण प्रदान करेगा। इसके साथ-साथ एससी एसटी वर्ग के लिए जितनी भी सीटें रिजर्व हैं, उसमें भी एक तिहाई सीटें मातृशक्ति के लिए आरक्षित होंगी। (हिफी)

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)

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