बदइंतजामी व भ्रष्टाचार की भेंट मिड डे मील योजना!

देश भर के बच्चों के लिए पोषक आहार उपलब्ध कराने और गरीब बच्चों को शिक्षा के लिए आकर्षित करने के लिए मिड डे मील योजना शुरू की गई थी। मिड-डे मील अर्थात दोपहर का भोजन योजना विश्व की सबसे बड़ी निःशुल्क खाद्य वितरण योजना है जिसकी शुरूआत 1995 में गरीब बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित करने के लिए की गई थी। तब अधिकांश राज्यों ने इसके अंतर्गत लाभार्थियों को कच्चा अनाज देना शुरू किया था पर 28 नवम्बर, 2002 को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश पर बच्चों को पका कर भोजन देना शुरू किया गया। अधिकतर बच्चे खाली पेट स्कूल पहुँचते हैं, जो बच्चे स्कूल आने से पहले भोजन करते हैं, उन्हें भी दोपहर तक भूख लग जाती है और वे अपना ध्यान पढाई पर केंद्रित नहीं कर पाते थे।
देशभर में राज्य व केंद्रशासित प्रदेशों में मिड डे मील योजना के अंतर्गत 25।7 लाख रसोइया सहायकों को काम दिया गया। इन सहायकों को इस कार्य के लिए दिए गए मानदेय को संशोधित कर 01 दिसंबर 2009 से 01 हजार रुपये प्रति माह कर दिया गया। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में 1500रुपये प्रति माह मानदेय दिया जाता है तथा साल में कम से कम 10 महीने कार्य दिया गया। मध्याह्न भोजन योजना स्कूल में भोजन उपलब्ध कराने एवं बच्चों के समुचित पोषण देने की सबसे अच्छी योजना है। इसके अंतर्गत रोजाना सरकारी सहायता प्राप्त 11.75 लाख से अधिक स्कूलों के 10.8 करोड़ बच्चे शामिल हैं।एक अच्छी योजना होने के बावजूद संबंधित विभागों द्वारा इसे लागू करने और भोजन पकाने में लापरवाही तथा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी नियमों की अनदेखी के चलते यह योजना वरदान की बजाय अभिशाप सिद्ध हो रही है।दरअसल मिड डे मील योजना के क्रियान्वयन में भारी गड़बड़ी देखने को मिल रही है। स्थिति यह है कि देश की दूसरी योजनाओं की तरह ही इस योजना में भी भारी भ्रष्टाचार के चलते बच्चों का पोषण आहार स्कूल प्रधानाचार्य और विभाग की सेहत दुरूस्त करने का काम कर रहा है। आए दिन ऐसा देखा गया है कि मिड डे मील बनाने की स्कूलों में सही व्यवस्था नहीं है। मिड डे मील बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किए जाते हैं कई बार स्कूल टीचर ही मील पकाते है यहाँ तक कि बर्तन साफ करने का काम बच्चों से कराया जाता है। ऐसे हालात में आसानी से समझा जा सकता है कि इस योजना का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। कई बार देखा गया है कि मिड डे मील पकाने के काम से बचने के लिए कथित स्वयं सेवी संस्थाओं यानी एनजीओ को बच्चों को मिड डे मील वितरण करने का काम सौंप दिया जाता है। ये एनजीओ भी बच्चों को मिलने वाले मील में कटौती कर अपनी जेब भरते हैं।
देशभर में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में चल रही मध्याह्न भोजन योजना (मिड-डे-मील) का नाम बदलकर अब पीएम पोषण योजना कर दिया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एक कैबिनेट बैठक में इसे लेकर अपनी मंजूरी दी। केंद्र सरकार अगले पांच साल में इस योजना पर 1.31 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी, जिससे 11.5 लाख सरकारी और सह-सरकारी स्कूलों के करीब 11.80 करोड़ बच्चों को सीधा लाभ मिलने का दावा है। इस बदलाव के बावजूद अब आए दिन ऐसे समाचार आते रहते हैं कि मिड-डे मील में सब्जियों के साथ ही सांप, कीड़ों, चींटियों, छिपकलियों आदि का पाया जाना आम हो गया है चालू वर्ष के दौरान भी इस तरह की अशुद्ध मिड डे मील वितरण की घटनाओं की झड़ी लगी है। आप को बता दे कि 22 फरवरी, 2024 को मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) के हलिया ब्लाक के उमरिया स्थित प्राथमिक विद्यालय में मिड-डे मील के अंतर्गत परोसा गया भोजन खाने से 13 बच्चों की हालत खराब होने पर उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। भोजन की जांच करने पर आलू-गोभी-मटर की सब्जी में मरी हुई छिपकली पाई गई थी। 22 फरवरी को ही कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) स्थित एक प्राथमिक विद्यालय में मिड-डे मील खाने के बाद 17 बच्चों की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी और वे पेट दर्द से रोने-चिल्लाने लगे। 13 मार्च को अररिया (बिहार) जिले के एक स्कूल में मिड-डे मील में परोसा गया जहरीला भोजन खाने से 100 बच्चे बीमार पड़ गए। इसी तरह 23 मार्च को गरियाबंद (छत्तीसगढ़) जिले के विभिन्न सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील में छात्रों को परोसी जाने वाली सोयाबीन की वड़ी में कीड़े (फफूंद और घुन) निकलने की शिकायत सामने आई। 24 मई को औरंगाबाद (बिहार) में उरुथुवा स्थित सरकारी मिडल स्कूल में मिड-डे मील खाने के बाद 102 से अधिक बच्चों की तबीयत बिगड़ गई। कुछ बच्चे उल्टी करने लगे और कुछ के पेट में दर्द शुरू हो गया। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और परोसे गए चावल में उबल कर मरी हुई छिपकली देखी गई। 25 जून को मुजफ्फरपुर (बिहार) में मिठन सराय स्थित एक सरकारी स्कूल में बच्चों के मिड-डे मील में कीड़े देखे गए। आरोप है कि बच्चों के आपत्ति करने पर स्कूल की प्रधान अध्यापिका ने कीड़ों को जीरा बताते हुए खाने को कहा। 4 जुलाई को बक्सर (बिहार) जिले के पांडेय पट्टी विद्यालय में दाल और सब्जी के साथ परोसे गए चावल में कीड़े निकलने पर बच्चों ने उस भोजन को खाने से इंकार कर दिया और फेंक दिया। 4 जुलाई को ही सांगली (महाराष्ट्र) जिले में एक आंगनबाड़ी स्कूल में बच्चों के लिए भेजे गए मिड-डे-मील के पैकेट में एक छोटा मरा हुआ सांप मिला। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में आंगनबाड़ी में 6 महीने से 3 वर्ष तक के बच्चों को पैकेट में बंद मिड-डे मील दिया जाता है जिसमें दाल और खिचड़ी का मिश्रण होता है और अब 6 जुलाई को मंडला (मध्य प्रदेश) जिले के गांव बकछेरा दौना के आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों के लिए भेजे गए मिड-डे मील का ढक्कन खोलते ही कमरे में बदबू फैल गई। चावल में कीड़े एवं चींटियां पड़ी हुई थीं। दाल में पानी के सिवा कुछ नहीं था और पूरा खाना सड़ा हुआ एवं इतना बदबूदार था जैसे 4-5 दिन पहले बनाया गया हो।
हालांकि बच्चों को परोसने से पहले भोजन को एक अध्यापक सहित 2 वयस्कों द्वारा खा कर जांचना और कच्चे सामान व बर्तनों आदि की शुद्धता के नियमों का पालन करना जरूरी है परन्तु अधिकांश मामलों में इन नियमों का पालन ही नहीं किया जाता। इसी कारण मिड-डे वाली लापरवाही के चलते गंभीर समस्याएं भी पैदा हो रही हैं।
यहां गौर तलब है कि 2014 के बाद से मिड-डे-मील का बजट सरकार कम करती जा रही है जबकि देश में महंगाई लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में खाद्यान के अतरिक्त यानि गेहूं और चावल के अलावा यूपी में देखें तो प्राइमरी के कक्षा एक से पांच तक पढ़ने वाले एक बच्चे के लिए भोजन पर 4 रुपये 97 पैसे देती है और जूनियर के कक्षा से 8 तक के पढ़ने वाले एक बच्चे के लिए 7 रुपये 45 पैसे देती है। इतने कम पैसे में आप बच्चों को कौन सा पोषण खाना दे पाएंगे। सरकार ने सिर्फ पोषण नाम रखा है पर पोषण भोजन देने को तैयार नहीं है। अलग-अलग राज्य में ऐसे ही बजट का प्रावधान है। मिड-डे-मील के तहत तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, ओडिशा, बंगाल और झारखंड जैसे राज्य अपने यहां बच्चों को ठीक-ठीक भोजन दे रहे हैं। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)