खुलकर फैसला करें थरूर

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
कांग्रेस सांसद शशि थरूर को अब खुलकर फैसला कर लेना चाहिए कि वे कांग्रेस के साथ रहेंगे अथवा कोई दूसरी राह पकड़ेंगे। कांग्रेस नेतृत्व से शशि थरूर को कुछ शिकायतें हैं लेकिन उनका रवैया भी लोगों को उंगली उठाने का अवसर देता है। अभी कुछ महीने पहले ही नरेन्द्र मोदी सरकार ने आपरेशन सिंदूर पर भारत का पक्ष रखने के लिए सांसदों के प्रतिनिधि मंडल विदेश भेजे थे। कांग्रेस से सांसदों की सूची मांगी गयी थी, उसमें शशि थरूर का नाम नहीं था लेकिन सरकार ने अपनी तरफ से शशि थरूर का नाम शामिल किया। थरूर विदेश गये लेकिन दलगत अनुशासन के खिलाफ उन्होंने काम किया। इसी तरह केरल में विधानसभा उपचुनाव मंे पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार नहीं किया। कांग्रेस को वहां से विजय भी हासिल हुई। शशि थरूर के इस निर्णय पर भी उंगली उठी थी। अब 21 जुलाई से संसद का मानसून सत्र प्रारम्भ होने जा रहा है। कांग्रेस ने सरकार को घेरने की रणनीति बनाने के लिए 15 जुलाई को बैठक की। इस बैठक की जानकारी पहले से शशि थरूर को रही होगी लेकिन वह विदेश चले गये। माना जा रहा है कि वजह जानबूझ कर बैठक मंे शामिल नहीं हुए। इस समय कई ज्वलंत मामले है जिन पर विपक्षी दल सरकार को घेरने की रणनीति बना रहे हैं। बिहार में मतदाता सूचियों मंे संशोधन का मामला सरकार के सहयोगी दल भी उठा रहे हैं। चन्द्रबाबू नायडू ने भी विरोध किया है। इस प्रकार के कई मुद्दे हैं। मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस की जिम्मेदारी ज्यादा है लेकिन शशि थरूर जैसे नेता यही संकेत दे रहे कि पार्टी बिखरी हुई है। ऐसे संदेश नहीं जाने चाहिए। बिहार के पप्पू यादव ने ठीक ही कहा है कि कांग्रेस को कमजोर करके भाजपा को सत्ता से हटाना मुश्किल है।
संसद के मानसून सत्र में कांग्रेस ने पहलगाम से लेकर बिहार वोटर लिस्ट पर सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस ने 15 जुलाई को फैसला किया कि 21 जुलाई से आरंभ हो रहे संसद के मानसून सत्र के दौरान वह पहलगाम हमले के आतंकियों के बारे में अब तक पता नहीं चलने, ऑपरेशन सिंदूर को रोके जाने और बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान और कुछ अन्य मुद्दों को प्रमुखता से उठाएगी। विपक्ष के तेवर को देख लग रहा कि मानसून सत्र धमाकेदार और हंगामेदार होगा। कांग्रेस केंद्र सरकार पर हमला करने का पूरा हथियार जुटा कर बैठी है। इसे लेकर ही कांग्रेस की एक अहम बैठक हुई। इस बैठक की अध्यक्षता सोनिया गांधी ने की। मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर राहुल गांधी सब इस बैठक में शामिल हुए, मगर शशि थरूर मीटिंग से नदारद रहे। कांग्रेस ने मानसून सत्र के दौरान जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग, किसानों की समस्याओं, बेरोजगारी, देश की सुरक्षा और अहमदाबाद विमान दुर्घटना के मुद्दों को उठाने का भी निर्णय लिया है। बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा में पार्टी के उपनेता प्रमोद तिवारी और महासचिव जयराम रमेश, लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक के सुरेश और सचेतक मणिकम टैगोर आदि नेताओं ने भाग लिया मगर इस बैठक में शशि थरूर गायब रहे। अब सवाल है कि जब कांग्रेस की कोर टीम मोदी सरकार के खिलाफ रणनीति बना रही थी, तब उस वक्त शशि थरूर कहां गायब थे? तो इसका जवाब है कि शशि थरूर देश से बाहर हैं। शशि थरूर के कार्यालय ने बताया था कि सांसद शशि थरूर देश से बाहर हैं। इसलिए 15 जुलाई की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं। पार्टी को इसकी जानकारी दे दी गई है। दरअसल, बैठक के बाद राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता प्रमोद तिवारी ने पत्रकारों से कहा कि देश यह पूछ रहा है कि पहलगाम में 26 महिलाओं की मांग का सिंदूर उजाड़ने वाले आतंकी कहां हैं और अब तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? उन्होंने कहा कि यह भी मुद्दा है कि अमेरिका के दबाव में ऑपरेशन सिंदूर को रोका गया। उन्होंने कहा कि जब पूरा देश हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा था और जब भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान में आतंकी शिविरों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, तो अचानक संघर्ष विराम की घोषणा कर दी गई।
इस नये मुद्दे के साथ कांग्रेस सांसद शशि थरूर के हालिया बयानों ने एक बार फिर सियासी गलियारों में बहस छेड़ दी है। आपातकाल की आलोचना से लेकर मोदी सरकार की प्रशंसा तक, थरूर ने कई ऐसे मुद्दों पर अपनी राय रखी है, जो उनकी पार्टी के आधिकारिक रुख से अलग नजर आती है। क्या यह सिर्फ मतभेद हैं या फिर कांग्रेस से दूर जाने का संकेत है।
शशि थरूर के 9 जुलाई 2025 (मलयालम दैनिक दीपिका) को कहा था “आपातकाल एक काला अध्याय था। आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। अनुशासन के नाम पर हुई क्रूरता को उचित नहीं ठहराया जा सकता।”
इसी प्रकार 23 जून 2025 (द हिंदू) से उन्होंने कहा “मोदी की ऊर्जा और वैश्विक जुड़ाव भारत के लिए संपत्ति हैं, उन्हें और समर्थन मिलना चाहिए।” थरूर ने 19 जून 2025 (नीलांबूर उपचुनाव प्रसंग) को कहा “कांग्रेस से मतभेद हैं, लेकिन मैं इन्हें मीडिया के बजाय पार्टी के भीतर उठाऊंगा।” उन्होंने आरएसएस की तारीफ करते हुए 28 जून 2025 को कहा था “संघ पहले मनुस्मृति चाहता था, लेकिन अब उसकी सोच बदल चुकी है।”
17 मई 2025 को सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के बारे मंे थरूर ने कहा राष्ट्रीय हित में मोदी सरकार के निमंत्रण को स्वीकार करना मेरा कर्तव्य था। 12 मई 2025 को ट्रंप की सीजफायर टिप्पणी पर थरूर ने कहा हालांकि अमेरिका ने पीड़ित (भारत) और अपराधी (पाकिस्तान) को एक समान बताकर गलती की है। थरूर ने मोदी की जमकर तारीफ की और 31 मार्च 2025 को कहा मोदी सरकार की ‘वैक्सीन मैत्री‘ ने भारत को वैश्विक नेता बनाया। मोदी ही वो नेता हैं जो रूस-यूक्रेन जंग शांत कर सकते हैं। मैं अपने पुराने बयानों पर शर्मिंदा हूँ।
शशि थरूर अच्छे नेता, लेखक और पूर्व राजनयिक हैं। वह कांग्रेस पार्टी से केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद हैं। उनकी पहचान एक पढ़े-लिखे, शांत और तर्कसंगत बोलने वाले नेता के रूप में है। वर्तमान में लेकिन हाल के दिनों में उनके कुछ बयानों ने उन्हें पार्टी लाइन से अलग खड़ा कर दिया है। (हिफी)