सभ्य घरों में भी पल रहा दहेज दानव

आज जब महिलाएं सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और कुछ क्षेत्रों में तो पुरुषों से भी आगे निकल चुकी हैं, इसके बावजूद समाज में महिलाओं पर जिस प्रकार की अत्याचार की अमानवीय घटनाएं सामने आ रही हैं, वह सिर्फ निंदनीय ही नहीं है, बल्कि सभ्य समाज के मुंह पर कलंक है। आज भी समाज में कहीं महिलाएं दहेज के लिए जलायी जा रही है, कहीं सम्मान के लिए या विवाद के कारण उनकी हत्याएं की जा रही है। न देश में बलात्कार की घटनाएं कम हो रही है और न ही उनके साथ होने वाली छेड़छाड़ की घटनाएं। पिछले कुछ दिनों के भीतर ही ऐसी कुछ घटनाएं सामने आयी है, जो यह बताने के लिए काफी है कि समानता की बात तो दूर की बात है, समाज में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय है। उन पर तरह-तरह से अमानवीय अत्याचार और हैवानियत हो रही है। उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से हाल ही में सामने आई घटना ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के मेडचल जिले के मेडिपाली थाना इलाके से भी कुछ ऐसा ही दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। यहां एक महिला की उसके पति ने बेरहमी से हत्या कर दी। महिला गर्भवती थी। गर्भवती महिला की हत्या के बाद पति ने उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और फिर शव के कुछ टुकड़े छुपा दिए और कुछ नदी में बहा दिए। मृतक महिला की पहचान स्वाति उर्फ ज्योति के रूप में की गई है। मृतक महिला के आरोपी पति का नाम महेंद्र रेड्डी है। जानकारी अनुसार घरेलू विवाद के चलते उसने अपनी गर्भवती पत्नी की हत्या की। पड़ोसियों ने घर से कुछ आवाजें सुनीं और कुछ मिनट बाद अंदर गए तो देखा कि स्वाति का शव टुकड़ों में कटा हुआ और एक बैग में रखा हुआ था। इसके बाद पड़ोसियों ने पुलिस को इस घटना की जानकारी दी। सूचना मिलने पर स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची और महेंद्र को हिरासत में ले लिया।
ऐसी ही एक घटना मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी सामने आयी हैं। यहां दहेज के लालच में ससुराल वालों ने एक महिला पर ऐसे जुल्म ढाए कि जो कोई भी सुन रहा है, उसकी रूह कांप जा रही है। पति और ससुराल वालों ने पहले तो महिला को गर्म चिमटे और डंडों से पीटा और फिर कोल्ड ड्रिंक में जहर मिलाकर पिला दिया। महिला की हालत गंभीर है और उसे इलाज के लिए दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जानकारी के अनुसार पीड़िता सोनाली की शादी के बाद से ही उसके ससुराल वाले गाड़ी की डिमांड को लेकर उसे लगातार प्रताड़ित कर रहे थे। एक महीने पहले, जब उनकी मांग पूरी नहीं हुई, तो पति, सास, ससुर और ननद ने मिलकर इस घिनौनी वारदात को अंजाम दिया। पुलिस ने सोनाली के पिता सतीश शर्मा की शिकायत पर पति समेत चार लोगों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना और हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया है। इस हृदयविदारक घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक हमारी बेटियां दहेज की बलि चढ़ती रहेंगी? संविधान, कानून और जागरूकता अभियानों के बावजूद दहेज प्रथा आज भी समाज की नसों में जहर की तरह फैली हुई है।
भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, लेकिन समय के साथ इस पवित्र बंधन को दहेज जैसी कुप्रथा ने कलंकित कर दिया। प्रारंभिक दौर में दहेज कन्यादान के रूप में था, जिसमें माता-पिता बेटी को अपनी हैसियत के अनुसार कुछ उपहार देते थे। परंतु धीरे-धीरे यह उपहार लालच और दिखावे की भेंट चढ़ गया और आज यह ऐसी व्यवस्था बन चुकी है, जिसमें लड़की के परिवार पर भारी आर्थिक बोझ डाला जाता है। भारतीय समाज में दहेज प्रथा एक ऐसी कुरीति है, जो न केवल स्त्री के सम्मान और अस्तित्व को चोट पहुंचाती है, बल्कि उसकी जान तक ले लेती है। सरकारी आंकड़े इस भयावह सच्चाई की गवाही देते हैं। हर दिन औसतन 20 महिलाएँ दहेज की वजह से अपनी जान गंवा देती हैं। 22 सालों में लगभग 1.8 लाख महिलाओं की मौत दहेज के कारण हुई। केवल 2018 से 2021 के बीच 34,493 महिलाओं ने अपनी जान गंवाई और वर्ष 2022 में 6,450 महिलाओं की हत्या कर दी गई। इन आंकड़ों से साफ है कि दहेज के खिलाफ कानून बनने और जागरूकता अभियानों के बावजूद हालात में बहुत सुधार नहीं हुआ है। सबसे भयावह स्थिति उत्तर प्रदेश की है, जहाँ अकेले 11,874 महिलाएँ दहेज की बलि चढ़ीं। बिहार में 5,354 और मध्य प्रदेश में 2,859 महिलाओं की मौत दर्ज की गई। दहेज सिर्फ पैसों या सामान का लेन-देन नहीं है, यह स्त्रियों को दूसरे दर्जे का मानने वाली मानसिकता का हिस्सा है। विवाह को अक्सर परिवारों के बीच सौदेबाजी की तरह देखा जाता है, जहां लड़की को बोझ और लड़के को संपत्ति मान लिया जाता है। शादी को एक लेन-देन में बदल देने वाली यह सोच ही दहेज हत्याओं की नींव है।
दूसरी तरफ आज लड़कियों में आजाद स्वछंद जीवन जीने की इच्छा जाग चुकी है जिसे परम्परागत कथित संस्कार वर्जनाओं में बंधे परिवार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। यही विवाद की जड़ है विवाहिताओं को रोका-टोकी, उनके जीवन में हस्तक्षेप स्वीकार नहीं है और लगातार घरेलू झगड़े का पटाक्षेप सुसाइड बतौर सामने आता है। मौजूदा निक्की हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। निक्की की शादी साल 2016 में ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव निवासी विपिन से हुई थी। निक्की और उसकी बड़ी बहन कंचन दोनों की शादी इसी परिवार में हुई निक्की की शादी के समय परिवार वालों ने दहेज और स्कॉर्पियो कार दी थी। आरोप है निक्की को उसका पति और ससुराल वाले लगातार 35 लाख रुपये के लिए परेशान कर रहे थे। निक्की के परिवार की तरफ से बाद में एक और कार दी गई। पंचायत की तरफ से कई बार समझौता करवाया गया, गया, लेकिन आरोप है कि निक्की के ससुराल वालों की तरफ से मारपीट और प्रताड़ना का सिलसिला नहीं रुका। हालांकि इस घटना को दहेज हत्या बताया जा रहा है लेकिन कुछ पडोसी और जानकार लोग घटना की वजह कुछ और बता रहे है। उनके अनुसार दहेज का दूर-दूर तक कोई मामला
नहीं है।
दरअसल ज्यादातर विवाहिताओं की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में होती है। इनमंे से अधिकांश सुसाइड के होते हैं लेकिन कानून का लाभ लेने के लिए परिजन ससुराल वालों के खिलाफ दहेज हत्या के मामले दर्ज करा देते हैं। पुलिस भी सही जांच करने के स्थान पर खाना पूर्ति कर दहेज हत्या में चार्जशीट दाखिल कर देती है बाद में अदालत में यह सब मामले साबित नहीं हो पाते हैं और आरोपी बरी हो जाता है। ऐसे मामलों में दोषसिद्धि की दर दो फीसदी है। दहेज प्रथा केवल एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि यह हमारी सभ्यता और संस्कृति पर धब्बा है। ग्रेटर नोएडा और ग्वालियर जैसी घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि यदि समाज की सोच नहीं बदली, तो कानून और अभियान भी अधूरे रहेंगे। अब समय आ गया है कि हम सामूहिक रूप से इस प्रथा के खिलाफ खड़े हों। हर परिवार को यह प्रण लेना होगा कि न तो दहेज देंगे और न लेंगे। जब तक यह संकल्प समाज के हर कोने तक नहीं पहुंचेगा, तब तक बेटियां जलती रहेंगी साथ ही समाज को यह समझना होगा कि इन मौतों के असली कारण को तलाश करने की जरूरत है। वरना कुछ निर्दोष परिवार जेल कचहरी में जीवन तबाह करते रहेंगे और समस्या का सही निवारण नही खोजा जा सकेगा। सही समस्या तक पहुचने के लिए पीड़ित परिवार को पुलिस में सही घटना को बिना लाग-लपेट दर्ज कराना चाहिए। आत्महत्या को दहेज हत्या दर्ज कराने से मामले आमतौर पर दोष सिद्ध नही होते हैं। बेहतर यह है कि आत्महत्या दर्ज कराएं और आत्महत्या करने के लिए उत्पीड़न व उकसाने के आरोप ज्यों के त्यों दर्ज कराने चाहिए। व्यर्थ में कानूनी लाभ के लिए दहेज कानून एक आसान हथियार बन गया है। अधिकांश मामलों में दहेज की मांग के झूठे आरोप उचित नहीं है और इसी का परिणाम है कि ये वारदातें बढ़ती जा रही है और सही समाधान की तलाश ही नहीं की जा रही है। (मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)