लेखक की कलम

मोदी ने दी एससीओ को नई परिभाषा

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) को चीन के तियेनजिन मंे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक नयी परिभाषा दी है। चीन के तियेनचिन में 1 सितम्बर को बैठक का महत्व कुछ ज्यादा बढ़ गया। यह एससीओ राष्ट्राध्यक्षों की 25वीं बैठक थी जो पांचवीं बार चीन की मेजबानी मंे हो रही थी। एससीओ के इतिहास मंे यह सबसे बड़ा शिखर सम्मेलन था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाकर आर्थिक युद्ध छेड़ दिया और उसका आधार रूस से तेल आयात करना बताया। भारत ने दबाव मंे कोई भी काम न करने का संकल्प ले लिया है, इसलिए रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने और ज्यादा गर्मजोशी दिखाई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद को सबसे बड़ा खतरा बताते हुए एससीओ को नई परिभाषा दी है। उन्हांेने कहा एससीओ का एस सिक्योरिटी का प्रतीक है जबकि सी कलेक्टिविटी और ओ अपार्चुनिटी का संदेश देता है। एससीओ के इस शिखर सम्मेलन से भारत और चीन विशेष रूप से निकट आए हैं। शिखर सम्मेलन मंे अध्यक्षता करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने संगठन की प्रगति और भविष्य की दिशा पर जोर दिया। शिखर सम्मेलन के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। बैठक के दौरान भारत-रूस संबंधों समेत यूक्रेन संघर्ष पर भी चर्चा हुई। सबसे बड़ी सफलता यह मानी जाएगी कि पाकिस्तान के आतंकवादियों पर चीन हमेशा बीटो कर देता था लेकिन अब वह आतंकवाद पर भारत का साथ देगा। भारत जापान और ताइवान के साथ चीन का विरोध भी करता है लेकिन इसे शी जिनपिंग ने कोई बाधा नहीं माना है। इतना ही नहीं नेपाल ने लिपुलेख का मुद्दा उठाया तो जिनपिंग ने नजरंदाज कर दिया।
भारत को चीन में एक बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल हुई है। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) ने पहलगाम आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की है। इसके साथ ही कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ‘‘दोहरे मानदंड’’ अस्वीकार्य हैं। एससीओ गुट ने तियेनजिन में आयोजित दो दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन के अंत में एक घोषणापत्र जारी किया और इसमें आतंकवाद से लड़ने के अपने दृढ़ संकल्प को सूचीबद्ध किया। इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और विश्व के कई अन्य नेताओं ने भाग लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ की बैठक को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि आंतकवाद शांति की राह में सबसे बड़ा खतरा है। पीएम मोदी ने एससीओ को, एस-सिक्योरिटी, सी-कनेक्टिविटी और ओ-अपॉर्चुनिटी का मंच बताया। इससे पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तियेनजिन में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की। एससीओ के सदस्य देशों ने गाजा में इजराइल द्वारा किए गए सैन्य हमलों में बड़ी संख्या में आम लोगों के हताहत होने और गाजा पट्टी में भयावह मानवीय स्थिति पैदा होने के कारण इन हमलों की निंदा की। घोषणापत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा बढ़ाने के उपायों का उल्लेख किया गया और आतंकवाद से निपटने को एक बड़ी चुनौती बताया गया। इसमें कहा गया, ‘‘सदस्य देश 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हैं।’’ एससीओ के सदस्य देशों ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में खुजदार और जाफर एक्सप्रेस पर हुए आतंकवादी हमलों की भी निंदा की।
घोषणापत्र के अनुसार, ‘‘उन्होंने (सदस्य देशों ने) हताहतों के परिवारों के प्रति अपनी गहरी सहानुभूति एवं संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ऐसे हमलों के दोषियों, आयोजकों और प्रायोजकों को न्याय के कठघरे में लाया जाना चाहिए।’’ इसमें कहा गया है कि एससीओ आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ के खिलाफ लड़ाई के प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए, स्वार्थसिद्धि के उद्देश्य के लिए आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी समूहों का इस्तेमाल करने के प्रयासों की अस्वीकार्यता पर जोर देता है। एससीओ ने कहा कि वह आतंकवादी और चरमपंथी खतरों का मुकाबला करने में संप्रभु देशों और उनके सक्षम प्राधिकारियों की अग्रणी भूमिका को मान्यता देता है। घोषणापत्र में कहा गया, ‘‘सदस्य देश आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की कड़ी निंदा करते हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मानदंड अस्वीकार्य हैं और वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आतंकवादियों की सीमा पार गतिविधियों सहित आतंकवाद का मुकाबला करने का आह्वान करते हैं।’’ एससीओ ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की इस संबंध में केंद्रीय भूमिका है कि वह संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के अनुसार प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव और संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद-रोधी रणनीति को पूरी तरह से लागू करे ताकि सभी आतंकवादी समूहों का संयुक्त रूप से मुकाबला किया जा सके।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच बैठक के बाद बताया कि दोनों देशों का लक्ष्य घरेलू विकास पर केंद्रित हैं और इस मामले में वे प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि साझेदार हैं। भारत और चीन के बीच एक स्थिर और सौहार्दपूर्ण संबंध दोनों देशों में रहने वाले 2.8 अरब लोगों के लिए लाभकारी हो सकते हैं। दोनों देशों के साझा हित उनके मतभेदों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं और दोनों नेताओं ने इस बात पर भी सहमति जताई कि मतभेदों को विवादों में नहीं बदलने देना चाहिए। शंघाई सहयोग संघठन (एससीओ) के सम्मेलन के दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने विवादित लिपुलेख दर्रे का मुद्दा उठाया, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। जिनपिंग ने ओली के इस मुद्दे को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया। बता दें कि के.पी. शर्मा ओली ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हुई द्विपक्षीय बैठक के दौरान भारत और चीन के बीच लिपुलेख को व्यापार मार्ग के रूप में इस्तेमाल करने के समझौते पर आपत्ति जताई। चीन ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली द्वारा उठाए गए लिपुलेख के मुद्दे को कोई तरजीह नहीं दी और न ही चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक बयान में इस मुद्दे का कोई उल्लेख किया गया है। चीन ने ओली की आपत्तियों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इससे केपी ओली की उम्मीदों को झटका लगा है।
ताइवान पर भारत की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। प्रधानमंत्री मोदी ने सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा उठाया। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि यह एक ऐसा अभिशाप है जिसके शिकार चीन और भारत दोनों रहे हैं, और भारत अभी भी इस समस्या से जूझ रहा है, और उन्होंने इस विशेष मुद्दे पर चीन से समर्थन मांगा। चीन ने इस मुद्दे के समाधान के लिए विभिन्न तरीकों से अपना समर्थन दिया है। आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के संदर्भ में, विश्व व्यापार को स्थिर करने में भारतीय और चीनी अर्थव्यवस्थाओं की भूमिका को मान्यता दी गई। दोनों नेताओं ने एक बार फिर अपने द्विपक्षीय व्यापार घाटे को कम करने, दोनों दिशाओं में द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों को सुगम बनाने तथा नीतिगत पारदर्शिता और पूर्वानुमानशीलता बढ़ाने के लिए राजनीतिक और रणनीतिक दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता पर बल दिया है।(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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