नेपाल में नौ दलों ने बनायी रेड यूनिटी

नेपाल में नौ दलों ने मिलकर रेड यूनिटी तो बना ली है, लेकिन यह फिलहाल वादों और बयानों तक सीमित दिख रही है। जेन-जी के युवाओं की आवाज और डिजिटल ताकत ने पुरानी राजनीति की नींव हिला दी है। अब यह देखना होगा कि क्या प्रचंड और उनके साथी सच में जनता के एजेंडे को अपनाएंगे या फिर यह एक और चुनावी गठबंधन बनकर रह जाएगा।
नेपाल की राजनीति में एक बार फिर बड़ा फेरबदल हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री और सीपीएन (माओवादी) के प्रमुख पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने आठ कम्युनिस्ट पार्टियों को एकजुट करने का फैसला किया है। इसे ‘रेड फ्रंट’ कहा जा रहा है। यह कदम ऐसे वक्त उठाया गया है जब जेन-जी आंदोलन यानी युवाओं के भ्रष्टाचार-विरोधी जनआंदोलन ने देश की राजनीति की दिशा ही बदल दी थी और सीपीएन-यूएमएल की सरकार गिर गई थी।अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह रेड यूनिटी पुराने दौर की कम्युनिस्ट ताकत को वापस ला पाएगी, या फिर यह युवा नेपाल के सपनों के खिलाफ जाएगी?
काठमांडू के पेरिसडांडा में 2 नवम्बर को यह ऐतिहासिक समझौता हुआ। सीपीएन (माओवादी सेंटर), सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) और सात छोटे वामपंथी दलों ने एक मंच पर आकर एकता पत्र पर हस्ताक्षर किए। इनमें माओवादी सेंटर के प्रमुख प्रचंड, यूनिफाइड सोशलिस्ट के नेता माधव कुमार नेपाल, जनसमाजवादी पार्टी नेपाल के प्रमुख सुबासराज काफ्ले, नेपाल सोशलिस्ट पार्टी के महेंद्र राय यादव, सीपीएन जनरल सेक्रेटरी चिरण पुन, सीपीएन सोशलिस्ट के राजू कार्की, सीपीएन माओवादी सोशलिस्ट के कर्णजीत बुधाथोकी और और सीपीएन कम्युनिस्ट के प्रेम बहादुर सिंह शामिल थे। अगले दिन सीपीएन (रिवॉल्यूशनरी माओवादी) के संयोजक गोपाल किर्ति ने भी समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे कुल नौ दल अब इस एकजुट मोर्चे का हिस्सा बन गए हैं। यह गठबंधन उस दौर में बना है जब नेपाल में वामपंथ का प्रभाव लगातार घटता जा रहा है।



