लेखक की कलमसम-सामयिक

उफनती नदियां और खतरे में जिन्दगी!

 

बरसात का सीजन आते ही देश के कई राज्यों में हालात काफी बिगड़ने लगे हैं। एक ओर कई राज्य बाढ़ की चपेट में आ गए हैं, तो पहाड़ी राज्यों की अवस्था काफी खराब होती जा रही है। चट्टानें खिसकने-चटकने, पहाड़ दरकने और भूस्खलन से हालात काफी खराब होते जा रहें हैं। अतिवृष्टि और बाढ़ की चपेट में आकर कई राज्यों में जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया है। उत्तराखंड, हिमाचल, असम में नदियां उफान पर हैं और महाराष्ट्र गुजरात में मानसूनी वारिश में स्थिति काफी दयनीय दिख रही है। राजस्थान में इस बार भी बारिश आफत बनकर टूटी है। विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों में हालात काफी खराब होते जा रहे है। यहां की नदियां उफान पर हैं, जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। असम के 30 जिलों में करीब 24।5 लाख लोग इस बाढ़ की चपेट में हैं। राज्य में अब तक बाढ़ से 52 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं बारिश की वजह से हुए भूस्खलन और तूफान में भी 12 लोगों की जान गई है। विनाशकारी बाढ़ की वजह से अब तक 114 जंगली जानवरों की भी मौत काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में हो चुकी है। इधर, उत्तर प्रदेश में बारिश की वजह से 13 लोगों की मौत हो गई। इसी प्रकार जम्मू में पूरी रात हुई भारी बारिश की वजह से एक 30 वर्षीय महिला की डूबने से मौत हो गई है। हालात को देखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने टेलीफोन पर सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की। उन्होंने असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व सरमा को भी केंद्रीय मदद का भरोसा दिया है। भारी बारिश से हिमाचल में 150 से अधिक सड़कें बाधित हुई हैं। इनमें मंडी की 111, सिरमौर की 13, शिमला की नौ तथा चंबा और कुल्लू की आठ-आठ सड़कें शामिल हैं। भारी बारिश से उत्तराखंड में पहाड़ दरकने लगे हैं। उनका मलबा सड़कों पर आ रहा है, जो कई बार जानलेवा भी साबित हो रहा है। यहां बारिश में पहाड़ों का मलबा आने से, पेड़ गिरने की वजह से कई सड़कें बंद हैं। खराब मौसम देखते हुए चार धाम यात्रा पर रोक लगाई गई।

पहाड़ों पर कुदरत न जाने क्या ठानकर बैठी है। आसमान से ऐसी तबाही बरस रही है कि जमीन पर सबकुछ ध्वस्त हो रहा है। पहाड़ तिनके की तरह बिखर रहे हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में धारचूला की ओर जाने वाली एक सड़क पर पहाड़ का बड़ा हिस्सा टूटकर ऐसे गिरा कि सड़क बंद हो गई और सैकड़ों गाड़ियां फंस गईं। पिथौरागढ़ जिले में भी लगातार हो रही बारिश के चलते हादसे का खतरा बना हुआ है। काली नदी खतरे के निशान के बेहद करीब पहुंच गई है। उत्तरकाशी में हिमखंड टूटने से गंगा के बहाव में अचानक तेजी आ गई।गौमुख में पुल बह जाने से 2 कांवड़िए पानी के तेज बहाव के साथ बह गए। बाकी बचे कांवड़ियों को एसडीआरएफ की मदद से रेस्क्यू किया गया। केदारनाथ मंदिर के पीछे गांधी सरोवर की पहाड़ी पर एवलांच की तस्वीर 2013 की त्रासदी की याद दिलाती है। पहाड़ों पर बर्फ का गुबार नजर आने लगा, जिसके बाद केदानगरी में हलचल मच गई।

उधर, नेपाल में हो रही बारिश के कारण एक बार फिर से बिहार में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। पश्चिम बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों की अवस्था भी काफी खराब है। पश्चिम बंगाल और सिक्किम को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग भूस्खलन की चपेट में आने से पिछले कई दिनों से बंद है। इससे यातायात में काफी परेशानी हो रही है। इसके साथ ही कई घर भूस्खलन की चपेट में आ जाते हैं। साथ ही तीस्ता के रौद्र रुप के कारण समतल के जलपाईगुड़ी जिले के कई इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है। यह हाल तब है, जबकि अभी मानसून शुरू हुआ है। हालांकि ऐसा नहीं है कि बारिश अचानक आयी है। मौसम विभाग ने भारी बारिश को लेकर पहले ही चेतावनी जारी कर दी थी लेकिन शायद राज्य सरकारों के द्वारा इसको गंभीरता से नहीं लिया जाता है। हकीकत यह कि अपने देश के कुछ राज्यों में हर साल बाढ़ आती है, लेकिन इसको नियंत्रित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता है। असम, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे राज्यों का एक बड़ा इलाका लगभग हरेक साल ही बाढ़ की त्रासदी झेलता है। मगर दुर्भाग्य से हमारी सरकारें इस मद में बजटीय आवंटन को लेकर जितनी उत्सुक दिखती हैं, इस समस्या से स्थायी छुटकारे को लेकर उनके प्रयास उतने दिखाई नहीं पड़ते। अगर देखा जाए तो देश में हर साल बारिश और बाढ़ से करीब 7 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। पिछले 65 सालों से हर साल औसतन बाढ़ में 2130 लोग मारे जाते हैं। एक लाख 20 हजार जानवर मरते हैं। 82।08 लाख हेक्टेयर खेती बर्बाद होती है। एक रिसर्च के अनुसार भूस्खलन की जो घटनाएं पहाड़ी इलाकों में होती थीं, वो 2004 से 2010 के बीच 22 मिमी प्रति वर्ष की रफ्तार से होती थीं, लेकिन 2022-23 में ही भारी बरसात के कारण ये 32 मिमी प्रतिवर्ष की रफ्तार से हुई। इस बार भी हिमाचल और उत्तराखंड में जिस तरीके से बरसात हो रही है, उससे भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। हिमाचल प्रदेश के मंडी में फ्लैश फ्लड जैसे हालात बने हुए हैं। पहाड़ी से अचानक मलबा गिरने से हिमाचल टूरिज्म की बस और कई
गाड़ियां फंस गईं। लगातार हो रही मूसलाधार बारिश के बाद हो रही लैंडस्लाइड से कई सड़कें ध्वस्त हो गई हैं। पार्किंग में खड़ी गाड़ियां मलबे के नीचे दब गईं। पहाड़ तिनके की तरह बिखर रहे हैं।

एक तरफ प्राकृतिक आपदा दूसरी तरफ प्रशासनिक कुव्यवस्था जिसमें पुल के पुल ढहे जा रहे हैं। ये पुल नहीं गिर रहे, ये बिहार में सरकारी तंत्र पर भरोसा गिर रहा है। ये पुल नहीं टूट रहे लोगों की उम्मीदें टूट रही हैं। 17 दिनों में 12 पुल गिर गए। बिहार में ऐसा क्या हो गया है कि पुल गिरते ही जा रहे हैं।
हालांकि पिछले कुछ सालों में मौसम विभाग का आकलन भी दुरुस्त हुआ है। समय रहते भारी बारिश, खासतौर से तटीय राज्यों में समुद्री तूफान आदि के बारे में सटीक सूचना भी मिल जाती है। इससे लोगों को पहले ही सुरक्षित जगहों पर पहुंचा देना संभव हो गया है। मगर समस्या यह है कि हम पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं लेते। देश के अधिकतर राज्यों में बाढ़ आती है और व्यापक तबाही होती है। लोगों की जानें जाती हैं और फसलों को काफी नुकसान होता है। बाढ़ आने से लोगों का सब कुछ बह जाता है और बाढ़ खत्म होने के बाद उनको फिर से नए सिरे से जिंदगी शुरू करनी पड़ती है। सवाल है कि बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए ठोस योजनाएं क्यों नहीं
बनाई जातीं? आजादी के 75 साल बाद भी राज्यों के पास ठोस आपदा प्रबंधन प्रणाली नहीं है। वरना लोग जैसा संकट झेलने को मजबूर हैं वैसा शायद नहीं होता। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button