लेखक की कलम

शिक्षा में तरक्की का एक पक्ष यह भी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
शिक्षा में सुधार के लिए केन्द्र से लेकर राज्यों के स्तर तक अनेक प्रयास किये गये हैं। विद्यालय भवन लकदक दिखते हैं। वहां लड़के और लड़कियों के लिए पृथक-पृथक शौचालयों की भी व्यवस्था है। मुफ्त मंे गरीबों के बच्चों को यूनिफार्म और किताबें दी जाती हैं वजीफा के साथ दोपहर का भोजन भी मिलता है। सरकार ने शिक्षकों का वेतन भी बहुत बढ़ा दिया है। कुल मिलाकर सब कुछ अच्छा ही अच्छा है लेकिन शिक्षा मंे तरक्की का दूसरा पक्ष देखता हूं तो लगभग 60 साल पहले के हालात याद आते हैं जब हम हरदोई के जूनियर हाईस्कूल बह्मना खेड़ा में पढ़ने जाया करते थे। रास्ते में सई नदी पड़ती थी। बारिश के दिनों में मल्लाह अपनी नाव से नदी पार कराते थे लेकिन जहां घुटनों तक पानी आता, नाव नहीं चलती थी। नदी पार करनी पड़ती थी। इसके चलते जूते नहीं पहन सकते थे। आज भी वैसे ही हालात हैं। देश के कई स्कूलों मंे बच्चे बारिश मंे नदी पार कर अथवा कीचड़ से गुजर कर स्कूल जाते हैं। एक तरफ हम अंतरिक्ष यात्रा की तैयारी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ नौनिहालों को स्कूल तक पहुंचने का सुगम रास्ता भी नहीं बना पाये हैं। छत्तीसगढ़ के कोरबा मंे पितनी नदी पार करके स्कूल जाते बच्चे हों अथवा हरियाणा के यमुना नगर पहाड़ की तलहटी में बसे गांव चिक्कन के नदी पार कर स्कूल जाते बच्चे। कासगंज के सैलई गांव मंे कीचड़ से गुजरते
हुए दीवार का सहारा लेना पड़ता है, वरना गिरकर चोट लगने की संभावना बनी रहती है। बच्चों से अपेक्षा तो
हम बहुत करते हैं लेकिन बच्चे जो हमसे अपेक्षा कर रहे हैं, उसे कौन पूरा करेगा।
महाराष्ट्र के बीड से एक ऐसा वीडियो सामने आया है, जिसे देखकर आप दंग रह जाएंगे। छोटे-छोटे बच्चे अपनी जान को खतरे में डालकर स्कूल जा रहे हैं। दरअसल मानसून की बारिश के कारण कई जगह जलभराव हो गया है। घने जंगलों में भी कई जगह पानी भर गया है। गांव के बच्चों का स्कूल तक का सफर आज भी जानलेवा है। छोटे-छोटे बच्चों को आज भी स्कूल जाने के लिए घने जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है। वहीं बारिश के कारण जंगल के रास्तों में घुटनों तक पानी भरा हुआ है। ऐसे में बच्चों को पानी से होकर गुजरना पड़ रहा है। ये वायरल वीडियो धारूर तालुका के धुनकवाड गांव का है। गांव वालों के अनुसार बरसात के मौसम में बाढ़ आ जाती है और स्कूल तक पहुंचना नामुमकिन हो जाता है। बच्चों के लिए ना पक्का रास्ता है, ना पुल है। ऐसे में जान जोखिम में डालकर शिक्षा की ओर उनका ये सफर जारी है। गांव के लोगों ने स्थायी पुल और रास्ते की मांग को लेकर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से तत्काल ध्यान देने की अपील की है। उनका कहना है कि अगर समय रहते कुछ नहीं किया गया तो आनेवाले समय में इन बच्चों की शिक्षा पूरी तरह से रुक सकती है।
हरियाणा के मोहाली में गांव सोहाना के सरकारी गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में बारिश ने स्कूल की जमीनी हकीकत सामने ला दी है। स्कूल परिसर, खासकर ग्राउंड, बारिश के पानी से भर गया है। छात्राएं पानी में चलने को मजबूर हैं। स्कूल प्रशासन ने पानी निकालने के लिए मोटर पंप का सहारा लिया। घंटों तक मोटर चलती रही, तब जाकर पानी कुछ कम हुआ, लेकिन जब तक पानी निकाला गया। इस दौरान कई छात्राओं के जूते और ड्रेस तक भीग गई। छात्राओं के लिए बारिश के दिन स्कूल आना किसी सजा से कम नहीं था। हर बार बारिश होती है और यही हाल होता है। न ग्राउंड सूखा, न क्लास तक पहुंचने का रास्ता। अगर समय पर आ भी जाएं तो बैठने की जगह भी गीली होती है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल प्रशासन हर बार स्थिति के सामान्य होने की बात कह देता है, लेकिन समस्या जस की तस बनी रहती है। कासगंज के सैलई गांव में प्राथमिक विद्यालय को जाने वाला रास्ता तालाब बना हुआ है। स्कूल के गेट पर बारिश के कारण पानी भर गया है। रोड पर जमकर कीचड़ फैला हुआ है। ऐसे में छात्र जलभराव और कीचड़ के बीच से होकर स्कूल जाने के लिए मजबूर है। गेट पर पानी भरा होने पर छात्र दीवार के सहारे बैग लेकर स्कूल जा रहे हैं। गांव की सड़क भी बदहाल है। बच्चों को गंदे पानी और कीचड़ से होकर स्कूल जाना पड़ रहा है। गांव में रहने वाली एलिस पाराशर ने बताया कि काफी दिनों से गांव में जलभराव की समस्या बनी हुई है। इसे जल्द से जल्द दूर किया जाए।
इसी तरह प्रतापनगर में पहाड़ी की तलहटी में बसे गांव चिक्कन के बच्चों को नदी पार कर शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाना पड़ता है। आजकल बरसात का सीजन है, ऐसे में बच्चों को घंटों पानी कम होने का इंतजार नदी किनारे बैठकर करना पड़ता है। जैसे ही पानी कम होता है बच्चे अपने जूते चप्पल उतार कर बडी मुश्किल से नदी पार कर अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं। जाहिर है ऐसे मंे जब तक छोटे-छोटे बच्चे वापस घर नहीं आ जाते, तब तक परिजनों को उनकी चिंता सताती रहती है। क्योंकि, न जाने कब पहाड़ों से नदी में पानी आ जाए और बच्चे दूसरे किनारे पर बैठने को मजबूर हो जाएं।गांव चिक्कन स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय के बच्चों को बरसात के दिनों में पढ़ने के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। स्कूल में पढ़ाने वाले अध्यापकों को भी नदी पार करके जाना पड़ता है। राजकीय माध्यमिक विद्यालय चिक्कन के स्कूल में 180 बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं जिनमें केवल एक ही नियमित अध्यापक और एक अध्यापक कौशल रोजगार के तहत बच्चों को पढ़ाने आते हैं। सरपंच, ग्रामीण इसके लिए कई बार सरकार और प्रशासन से नदी पर पुल बनाने की मांग कर चुके हैं। इस गांव में पहुंचने के लिए नदी पार करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं है। राजकीय माध्यमिक विद्यालय के अध्यापक दया कृष्ण शास्त्री और मोहित ने बताया कि बरसात के चलते नदी में अक्सर पानी आ जाता है। इससे उनको स्कूल पहुंचने में काफी दिक्कत होती है। इसके साथ-साथ चिक्कन स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय में ऊपर स्थित गांव से भी बच्चे पढ़ने आते हैं जिनको नदी से ही होकर गुजरना पड़ता है। इस बारे में गांव के सरपंच रामकुमार ने बताया कि उन्होंने नदी पर पुल बनाने के लिए कई बार स्थानीय अधिकारियों, नेताओं और प्रशासन से गुहार लगाई है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।
कोरबा के कटघोरा विधानसभा क्षेत्र के ग्राम उतरदा रेलडबरी में पितनी नदी पर पुल न होने के कारण स्कूली बच्चे और ग्रामीण रोजाना जान जोखिम में डालकर नदी पार करने को मजबूर हैं। खासकर बारिश के मौसम में नदी में पानी का बहाव बढ़ने से खतरा और गंभीर हो जाता है। स्कूली बच्चे अपने बैग और ड्रेस को बचाते हुए नदी पार करते हैं, जिससे उनकी सुरक्षा को लेकर अभिभावक चिंतित हैं।ग्रामीणों का कहना है कि लंबे समय से 30 मीटर लंबे पुल की मांग की जा रही है, जिसकी अनुमानित लागत 1 करोड़ 78 लाख रुपये है। लोक निर्माण विभाग को
इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन टेंडर प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं
हुई है। स्वीकृति के लिए प्रस्ताव
शासन को भेजा गया है और ग्रामीणों
को उम्मीद है कि अगले बारिश के मौसम से पहले पुल का निर्माण शुरू
हो जाएगा। (हिफी)

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