पुरुषोत्तम मास की एकादशी भी फलदायी

एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित रहता है। इस बार पुरुषोत्तम मास सावन में पड़ा है और सावन भगवान शिव का प्रिय महीना है। भगवान विष्णु का राम के रूप में 8वां अवतार माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने राम के माध्यम से कहा है-
शिव द्रोही मम दास कहावा।
सो नर सपनेहु मोहि न पावा।।
इसी प्रकार भगवान शंकर भी विष्णु जी को अपना परम आराध्य मानते हैं। सीता माता का रूप मात्र धर लेने से शिव जी ने परम पवित्र सती जी का त्याग कर दुर्लभ भक्ति भावना दिखाई थी। इसलिए सावन महीने के इस पुरुषोत्तम माह में एकादशी का व्रत विशेष फलदायी बताया जा रहा है। इस पुरुषोत्तम महीने की अंतिम एकादशी 12 अगस्त को होगी। इस तिथि को भगवान विष्णु की उपासना करें और मनवांछित फल पाएं।
अधिक मास की अंतिम एकादशी कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को है। इस एकादशी को परमा एकादशी के नाम से जाना जाता है जो भी व्यक्ति परमा एकादशी का व्रत रखकर विधिपूर्वक पूजा पाठ करता है, उसे धन और वैभव की प्राप्ति होती है। वह पापों से मुक्त हो जाता है। जीवन के अंत में उसे सद्गति प्राप्त होती है। इस व्रत को कुबेर ने भी किया था। इस व्रत को करने से दरिद्रता दूर होती है। परमा एकादशी का व्रत हर 3 साल में एक बार आता है। यदि इस साल आप परमा एकादशी का व्रत नहीं रख पाए तो फिर 3 साल बाद मौका मिलेगा।
पंचांग के अनुसार, इस साल अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 11 अगस्त दिन शुक्रवार को सुबह 05 बजकर 06 मिनट पर हो रही है। यह एकादशी तिथि 12 अगस्त दिन शनिवार को सुबह 06 बजकर 31 मिनट तक मान्य है। ऐसे में परमा एकादशी का व्रत 12 अगस्त दिन शनिवार को रखा जाएगा। 12 अगस्त को परमा एकादशी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 28 मिनट से सुबह 09 बजकर 07 मिनट तक है। इस समय में आपको भगवान विष्णु की पूजा कर लेनी चाहिए। इस दिन परमा एकादशी पूजा के लिए दो घंटे से कम का समय है।
जो लोग परमा एकादशी का व्रत रखेंगे, वे 13 अगस्त दिन रविवार को सुबह 05 बजकर 49 मिनट से सुबह 08 बजकर 19 मिनट के मध्य पारण कर सकते हैं। उस दिन द्वादशी तिथि का समापन सुबह 08 बजकर 19 मिनट पर हो रहा है। द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व एकादशी व्रत का पारण कर लेना चाहिए।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार यदि आप धन संकट से गुजर रहे हैं या दरिद्रता से परेशान हैं तो आपको परमा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत को करने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होगी। जीवन में आर्थिक संपन्नता आएगी। परमा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं ताकि उनकी कृपा से दुख दूर हों और पुण्य मिले। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। । अधिक मास के देव भगवान विष्णु हैं और परमा एकादशी को उनकी ही पूजा होती है। ऐसे में परमा एकादशी का व्रत सभी सुखों को देने वाला है।
जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है, उसे नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु स्वयं अलग-अलग अवतारों में जन्म लेते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार श्रीहरि विष्णु 10 अवतारों में धरती पर प्रकट होंगे। मत्स्य अवतार को भगवान विष्णु का पहला अवतार कहा जाता है। इसमें भगवान मछली के अवतार में प्रकट हुए थे और उन्होंने दैत्य हयग्रीव का वध कर वेदों की रक्षा की थी। हयग्रीव ने वेदों को समुद्र की गहराई में छिपा दिया था। इस तरह से मत्स्य अवतार में प्रकट होकर भगवान विष्णु ने वेदों की रक्षा की। दूसरा अवतार कच्छप या कूर्म अवतार में भगवान विष्णु कछुआ के रूप में प्रकट हुए थे। इस अवतार में विष्णु जी ने समुद्र मंथन के दौरान मंदार पर्वत को अपनी पीठ कर धारण
किया, जिससे देवताओं और असुरों के बीच अमृत के लिए समुद्र मंथन हो सका।
भगवान विष्णु का तीसरा अवतार वराह अवतार था। इस अवतार में विष्णु जी आधे मानव और आधे सुअर के रूप में प्रकट हुए और राक्षस हिरण्यकशिपु के भाई हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को मुक्त कराया। हिरण्याक्ष ने पृथ्वी का हरण कर उसे समुद्र की गहराई में छिपा दिया था। पुराणों में नृरसिंह अवतार को भगवान विष्णु का चैथा अवतार बताया गया है। इस अवतार में प्रकट होकर उन्होंने भक्त प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की और उसके पिता हिरण्यकश्यप का वध किया। वामन अवतार में भगवान विष्णु बटुक ब्राह्मण के रूप में धरती पर आए थे। इस अवतार में उन्होंने प्रह्लाद के पौत्र राजा बलि से दान में तीन पद धरती मांगी और तीन कदम में अपने पैर से तीन लोक नापकर बलि का घमंड तोड़ दिया। भगवान विष्णु शिवभक्त परशुराम के अवतार में भी प्रकट हुए। इस अवतार में उन्होंने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगवंशीय जमदग्नि के पुत्र बनकर जन्म लिया। इस अवतार में उन्होंने क्षत्रियों के अहंकारी विध्वंश से संसार को बचाया। श्रीराम अवतार त्रेता युग में भगवान विष्णु ने श्रीराम अवतार में जन्म लिया। वे अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र थे। इस अवतार में राम जी ने रावण के आतंक और पाप से संसार को मुक्त कराया। द्वापर युग में कृष्ण अवतार में भगवान विष्णु का जन्म हुआ था। इस अवतार में उन्होंने अधर्म को समाप्त कर धर्म की पुनरू स्थापना के लिए महाभारत के धर्मयुद्ध में अर्जन के सारथी बने।
विष्णु जी के दशावतारों में एक अवतार महात्मा गौतम बुद्ध भी है। इनका नाम सिद्धार्थ था। इन्हें बौद्ध धर्म का संस्थापक माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु का अंतिम और दसवां अवतार कल्कि अवतार होगा। इस अवतार में विष्णु जी कलयुग के अंत में प्रकट होंगे और धरती के सभी पाप व बुरे कर्मों का विनाश होगा। इसके बाद फिर से सतयुग की शुरुआत होगी। इस अवातर में विष्णु जी देवदत्त नामक घोड़े पर आरूढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे। (हिफी) (पं. आरएस द्विवेदी-हिफी फीचर)