राजनीतिलेखक की कलम

नीतीश को पहले झटका, फिर राहत

 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केन्द्र मंे सत्तारूढ़ एनडीए के महत्वपूर्ण सहयोगी हैं। उनको उम्मीद थी कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा। लेकिन वित्त राज्यमंत्री पंकज चैधरी के जवाब से करारा झटका लगा था। राज्य में विपक्षी दलो ने चिढ़ाया भी लेकिन अगले ही दिन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में बिहार को बड़ी सौगातें देकर नीतीश कुमार को राहत प्रदान कर दी है। बिहार को बजट मंे विशेष राहत पैकेज दिया गया है। एक दिन पहले नीतीश कुमार बहुत बेचैन दिख रहे थे।
केन्द्र सरकार ने लोकसभा में कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। इससे नीतीश कुमार की सरकार को करारा झटका लगा है। बिहार में मुख्य विपक्षी दल राजद ने नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग तक कर डाली क्योंकि नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से वादा किया है कि वे राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाएंगे। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग अर्से से की जा रही है। भाजपा के साथ बिहार मंे मिलकर सरकार बनाने के बाद यह उम्मीद ज्यादा मजबूत हुई थी लेकिन संसद में वित्त राज्यमंत्री के बयान ने नीतीश कुमार को धर्मसंकट मंे डाल दिया है। जद(यू) सांसद राम प्रीत मंडल ने सरकार से सवाल पूछा था। वित्त राज्यमंत्री पंकज चैधरी ने कहा कि राज्य स्पेशल स्टेटस की क्राइटेरिया मंे बिहार फिट नहीं है।
उल्लेखनीय है कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर केन्द्र सरकार उस राज्य को केन्द्र प्रायोजित योजनाएं लागू करने के लिए 90 प्रतिशत धनराशि देती है जबकि अन्य राज्यों मंे यह 60 प्रतिशत या ज्यादा से ज्यादा 75 फीसद ही होती है। बाकी राशि राज्य सरकार को खर्च करनी पड़ती है। विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद यदि आवंटित धनराशि खर्च नहीं की जाती है तो वह लैप्स नहीं होती है। उसे कैरी फारवर्ड अर्थात् आगे ले जाया जाता है। इसके अलावा राज्य को सीमा शुल्क, आयकर और कारपेट कर समेत करों और शुल्कों मंे भी विशेष रियायत मिलती है। आमतौर पर केन्द्र के सम्पूर्ण बजट का 30 प्रतिशत हिस्सा विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को ही मिलता है। इस बार बजट से ठीक पहले बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करते हुए बिहार से एनडीए के सहयोगी दलों जद(यू), लोजपा और हम ने आवाज बुलंद की थी।
केंद्र सरकार ने लोकसभा में कहा है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। केंद्र के जवाब पर आरजेडी ने नीतीश कुमार और जेडीयू पर तंज कसा है। आरजेडी ने कहा कि केंद्र के जवाब से नीतीश का झूठ खुल गया है। साथ ही लालू प्रसाद यादव ने नीतीश से भी इस्तीफा मांगा है। वहीं एलजेपी ने कहा है कि विशेष दर्जा नहीं तो विशेष पैकेज दें। केंद्र सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने के पीछे के कारण को भी बताया है। सरकार ने लोकसभा में बताया कि राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) के द्वारा कुछ राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया था, जिनकी कुछ विशेषताएं थीं, उन पर कुछ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता थी। उन विशेषताओं में पहाड़ी और कठिन भूभाग, कम जनसंख्या घनत्व या जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा, पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक स्थान, आर्थिक और अवसंरचनात्मक पिछड़ापन और राज्य वित्त की गैर-व्यवहार्य प्रकृति शामिल थी। इन्हीं सभी कारकों और राज्य की विशिष्ट स्थिति पर विचार करने के बाद केंद्र ने यह निर्णय लिया है। इससे पहले, बिहार के अनुरोध पर एक अंतर-मंत्रालयी समूह (आईएमजी) द्वारा विचार किया गया था, जिसने 2012 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। आईएमजी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मौजूदा एनडीसी मानदंडों के आधार पर बिहार के लिए विशेष दर्जा का मामला नहीं बनता है।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने पर राजद ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए लिखा, बिहार को नहीं मिलेगा विशेष राज्य का दर्जा! संसद में मोदी सरकार। नीतीश कुमार और जद(यू) वाले अब आराम से केंद्र में सत्ता का रसास्वादन करते हुए विशेष राज्य के दर्जे पर ढोंग की राजनीति करते रहें! राजद के सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा के साथ-साथ विशेष पैकेज देने की भी मांग उठाई और कहा कि इसके लिए उनकी पार्टी संसद से सड़क तक संघर्ष करेगी। राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए झा ने केंद्र सरकार की प्रमुख सहयोगी जेडीयू पर भी निशाना साधा और कहा कि विशेष राज्य का दर्जा या विशेष पैकेज की मांग में ‘या’ के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने जद (यू) की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘हमारे कुछ साथी जो हमारे साथ काम कर चुके हैं, कहते हैं कि विशेष राज्य न दे सको तो विशेष पैकेज दो। विशेष राज्य और विशेष पैकेज के बीच में ‘या’ नहीं है। बिहार को ‘याश् स्वीकार नहीं है। विशेष राज्य का दर्जा भी चाहिए और विशेष पैकेज भी चाहिए। हमें दोनों चाहिए। संसद में मांगेंगे, सड़क पर मांगेंगे। बिहार को सिर्फ चुनाव के वक्त में नहीं याद करना चाहिए।
वर्ष 2000 में बिहार से अलग झारखंड बनने के बाद से यह मांग हो रही है। दरअसल, इसके पीछे का लॉजिक यह है कि बिहार के बंटवारे के वक्त 90 फीसदी उद्योग-धंधे झारखंड के हिस्से में चले गए। बिहार के हिस्से में खेती और बाढ़ वाले क्षेत्र आए। इससे इसकी आर्थिक सेहत पर बड़ा असर पड़ा। इस आर्थिक क्षति की भरपाई के लिए केंद्र सरकार को बिहार को आर्थिक मदद करने की जरूरत है। इन तथ्यों में 100 फीसदी सच्चाई है लेकिन, बिहार के बंटवारे और फिर राज्य और केंद्र की सरकारों के बीच सामंजस्य के अभाव की वजह से विशेष राज्य की मांग एक राजनीतिक मुद्दा बन गया।
15 नवंबर 2000 को झारखंड बनने के वक्त बिहार में राजद और केंद्र में दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी। उस वक्त भी बिहार की तत्कालीन सरकार और मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इसकी मांग उठाई लेकिन, कहीं न कहीं राजनीतिक श्रेय लेने के चक्कर में यह मांग पूरी नहीं हुई। फिर 2005 में राज्य में राजद के शासन का अंत हुआ और नीतीश कुमार की अगुवाई में जेडीयू-भाजपा की सरकार बनी लेकिन, उधर केंद्र में भी सत्ता बदल गई और एनडीए की सरकार चली गई। 2004 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए की हार हुई थी। फिर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र में यूपीए की सरकार बनी। यहां भी वही पुराना खेल शुरू हो गया। 2014 में देश और बिहार दोनों की राजनीति ने फिर करवट बदली। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी लेकिन, बिहार में जेडीयू का भाजपा के साथ गठबंधन टूट गया। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

 

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