लेखक की कलम

मायावती ने उठाया सामयिक मुद्दा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमों मायावती ने यूपी में उपचुनावों के दौरान शिक्षा का मुद्दा उठाया है। प्रदेश मंे 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इनमंे सपा और कांग्रेस का गठबंधन भाजपा और उसके साथियों से मुकाबला कर रहा है। बसपा ने अपनी पूर्व रणनीति को त्याग कर पहली बार उपचुनाव में सीधे-सीधे हिस्सा लिया है। इन उपचुनावों मंे भाजपा जहां योगी आदित्यनाथ के भाषण ‘बंटोगे तो कटोगे’ के मंत्र पर चल रही है तो सपा पीडीए जोड़ेगी और जीतेगी का नारा दे रही है। बसपा प्रमुख ने परिषदीय स्कूल को छात्र-छात्राओं की संख्या के आधार पर बंद करने का मुद्दा उठाकर जनता का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती दलितों और पिछड़े वर्ग की बड़ी नेता बनकर उभरीं। बसपा प्रमुख ने 50 से कम छात्र-छात्राओं वाले प्राथमिक स्कूलों को बंद करने के फैसले को गलत करार देते हुए कहा कि ऐसे मंे आखिर गरीबों के बच्चे कहां पढ़ेंगे। वह कहती हैं कि प्रदेश के 50 से कम छात्र-छात्राओं वाले 27764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने के बजाय उनमंे जरूरी सुधार करके उन्हंे बेहतर बनाया जाना चाहिए। उन्हांेने भाजपा शासित ओडिशा सरकार के फैसले को भी अनुचित बताया जहां कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद कर दिया गया है। यूपी के फतेहपुर में 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों की जांच हो रही है।
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में छात्र-छात्राओं का नामांकन घटने पर सरकार गंभीर है। सरकार 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को बंद करने की योजना बना रही है, जिसके लिए सरकारी कवायद शुरू कर दी गई है। प्रदेश के बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में छात्र-छात्राओं का नामांकन बढ़ाने को लेकर चलाई जा रही तमाम योजनाएं बेमतलब साबित हो रही हैं। स्कूलों में छात्र-छात्राओं के नामांकन में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है। सरकार ने परिषदीय स्कूलों में नामांकन संख्या घटने पर गहरी चिंता जाहिर की है। अपर शिक्षा निदेशक बेसिक रूबी सिंह ने सभी बीएसए से इस संबंध में आख्या मांगी है। यह भी कहा गया है कि यदि इन विद्यालयों में छात्र संख्या 50 से भी कम है तो यह गंभीर लापरवाही का सूचक है। ऐसे स्कूलों को बंद कराने के लिए क्यों न शासन को संस्तुति भेजी जाए। उन्होंने कहा है छात्र संख्या घटने का सिलसिला प्रदेश के एक दो जिलों में नहीं है बल्कि 57 हैं जिसमें से बांदा भी एक है। कुछ स्कूलों में तो 50 से भी कम छात्र संख्या है। जबकि ऐसे स्कूलों में शिक्षकों की संख्या अधिक है। उन्होंने सभी बीएसए को ऐसे स्कूलों में सृजित पदों की संख्या, कार्यरत शिक्षकों का पूर्ण विवरण, शिक्षक का नाम, नियुक्ति दिनांक, कार्यरत शिक्षकों की संख्या आदि विवरण उपलब्ध कराएं जाने के निर्देश दिए थे।
प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की कम होती संख्या को लेकर ऐसे विद्यालयों का पास के विद्यालयों में संविलियन (मर्ज) कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके तहत 50 से कम नामांकन वाले विद्यालयों को चिह्नित कर उनके पास के विद्यालय में भेजने को लेकर सभी जिलों में रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया है। वहीं जर्जर विद्यालयों को भी एक महीने में ध्वस्त कराने की प्रक्रिया पूरी करने को कहा गया है। इस तरह के निर्देशों के बाद प्रदेश में सियासत गरमा गई है। बसपा सुप्रीमों मायावती और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सरकार पर निशाना साधा है। प्रियंका गांधी कहती हैं
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने 27,764 प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को बंद करने का फैसला लिया है। यह कदम शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ दलित, पिछड़े, गरीब और वंचित तबकों के बच्चों के खिलाफ है। यूपीए सरकार शिक्षा का अधिकार कानून लाई थी जिसके तहत व्यवस्था की गई थी कि हर एक किलोमीटर की परिधि में एक प्राइमरी विद्यालय हो ताकि हर तबके के बच्चों के लिए स्कूल सुलभ हो।कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं का मकसद मुनाफा कमाना नहीं बल्कि जनता का कल्याण करना है। भाजपा नहीं चाहती कि कमजोर तबके के बच्चों के लिए शिक्षा सुलभ हो। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा 50 से कम छात्रों वाले बदहाल 27,764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का फैसला उचित नहीं है। ऐसे में गरीब बच्चे आखिर कहां और कैसे पढ़ेंगे। राज्य सरकार को दूसरे स्कूलों में उनका विलय करने के बजाय उनमें जरूरी सुधार करके बेहतर बनाने के उपाय करने चाहिए। बसपा सुप्रीमो ने सोशल मीडिया पर जारी बयान में कहा कि यूपी व देश के अधिकतर राज्यों में खासकर प्राइमरी व सेकंडरी शिक्षा का बुरा हाल है। इसकी वजह से गरीब परिवारों के करोड़ों बच्चे अच्छी शिक्षा से दूर होने के साथ सही शिक्षा से भी वंचित हैं। ओडिसा सरकार द्वारा कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद करने का फैसला भी अनुचित है। सरकारों की इसी गरीब व जनविरोधी नीतियों का परिणाम है कि लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने को मजबूर हो रहे हैं। जैसा कि सर्वे से स्पष्ट है, लेकिन सरकार द्वारा शिक्षा पर समुचित धन व ध्यान देकर इनमें जरूरी सुधार करने के बजाय इनका बंद करना ठीक नहीं है।
हाल ही में प्रदेश के सभी मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक व बेसिक शिक्षा अधिकारियों की बैठक में यह जानकारी दी गई कि इस सत्र में बच्चों की संख्या 1.49 करोड़ है। वहीं केंद्र सरकार द्वारा विद्यालयों को पूर्ण रूप से क्रियाशील व औचित्यपूर्ण बनाने के निर्देश दिए गए हैं। केंद्र ने अपेक्षा की है कि कम नामांकन वाले विद्यालयों का पास के अन्य विद्यालयों में संविलियन (मर्ज) करने की सम्भावना देख ली जाए और 50 से कम नामांकन वाले प्राथमिक विद्यालयों से जुड़ी प्रक्रिया प्राथमिकता पर पूरी की जाए। इसे ध्यान में रखकर कार्ययोजना तैयार की जाए कि उस ग्राम पंचायत में मानक विद्यालय है या नहीं। किस विद्यालय को पास के अन्य विद्यालय में मर्ज किया जा सकता है। बच्चों को कितनी दूरी तय करनी होगी, भवन व शिक्षकों, परिवहन की उपलब्धता, नहर, नाला, सड़क या हाईवे आदि को देखते हुए हर विद्यालय के लिए रिपोर्ट तैयार की जाए।
मायावती शिक्षा जगत से व्यावहारिक रूप से जुड़ी रही हैं। उनका जन्म 15 जनवरी 1956 को हुआ। मायावती ने बीएड और लॉ की पढ़ाई की थी। इसके बाद कुछ समय के लिए टीचर की नौकरी भी की। मायावती का सपना आईएएस अधिकारी बनने का था। हालांकि किस्मत को कुछ और तय था। साल 1977 में दिल्ली में एक मंच से मायावती ने भाषण दिया था, जिसकी गूंज कांशीराम तक पहुंच गई। बहुजन आंदोलन को धार दे रहे बामसेफ और डीएस-4 के संस्थापक कांशीराम, मायावती के भाषण से इतना प्रभावित हुए थे कि उनसे मिलने पहुंच गए। उन्होंने मायावती से तब सीधे पूछा था, आगे क्या करना चाहती हो। इस पर उन्होंने जवाब दिया, आईएएस बनाकर दलित, वंचित और पिछड़ों के लिए काम करुंगी। कांशीराम ने कहा कि तुम अच्छी नेता बन सकती हो। अब तुम्हें तय करना है कि नेता बनकर कई अधिकारियों से इन सभी वर्गों के लिए काम करना चाहती हो या नहीं। इसके बाद मायावती ने कांशीराम की मुहिम से खुद को जोड़ लिया। बसपा सुप्रीमो मायावती जो कि एक नहीं 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। कांशीराम की उम्मीदों पर खरी उतरते हुए मायावती दलित और पिछड़ों की बड़ी नेता बनकर उभरीं। हालांकि आज बसपा और मायावती दोनों ही उत्तर प्रदेश में राजनीतिक तौर से देखा जाए तो गुम से नजर आने लगे हैं। कभी 200 प्लस यूपी विधानसभा सीटों पर कब्जा करने वाली बसपा आज महज एक सीट पर सिमट गई है। (हिफी)

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