हरियाणा कांग्रेस में सामंजस्य के प्रयास

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हरियाणा में कांग्रेस ने दिग्गज नेताओं में तनातनी का भरपूर खामियाजा भुगत लिया। अब नेताओं के बीच चल रही रार को सुलझाने के प्रयास शुरू कर दिये हैं। कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी महासचिव कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला को पावरफुल बना दिया है। कांग्रेस हाईकमान द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए जिन 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की गई है, उसमें रणदीप सुरजेवाला का नाम शामिल है। इससे भी अधिक खास बात यह है कि कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की यह लिस्ट कुमारी सैलजा के हस्ताक्षर से जारी की गई है। ऐसी सूचियों पर अक्सर कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के हस्ताक्षर होते हैं। सैलजा सिरसा से कांग्रेस की सांसद और सुरजेवाला राजस्थान से राज्यसभा सदस्य हैं। हरियाणा में पार्टी की हार का कारण पता लगाने के लिए जो समिति बनी उसमें भी सैलजा के समर्थकों के नाम नहीं थे। अब उसकी भरपाई की जा रही है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह पहला मौका है, जब पार्टी ने अपने संगठनात्मक फैसले संबंधी किसी परिपत्र को कुमारी सैलजा के हस्ताक्षर से जारी किया है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अथवा उनके सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम शामिल नहीं है। हरियाणा में कांग्रेस आपसी गुटबाजी की वजह से चुनाव हारी है। कांग्रेस की अंदरूनी कलह, मौजूदा विधायकों पर अत्यधिक निर्भरता और बागियों की समस्या, कुछ ऐसे कारण प्रतीत होते हैं, जिनके कारण कांग्रेस एक दशक के बाद हरियाणा में वापसी करने में विफल रही। पार्टी हरियाणा की बीजेपी सरकार को हटाने के प्रति आश्वस्त दिख रही थी, जो 10 सालों से सत्ता में है और सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी। कांग्रेस 90 सदस्यीय विधानसभा में 37 सीटें ही जीतने में सफल रही। वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पिछले दिनों कहा कि चुनाव परिणाम राज्य के माहौल के विपरीत हैं। इस वर्ष के लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी से पांच सीटें छीनने के बाद कांग्रेस उत्साहित थी और उसने बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा और अग्निपथ योजना सहित विभिन्न मुद्दों के इर्द-गिर्द अपना चुनाव अभियान चलाया लेकिन, वह एकजुट लड़ाई लड़ने में विफल रही और उसकी गुटबाजी का सत्तारूढ़ बीजेपी ने अपने पूरे अभियान में फायदा उठाया।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में लगातार खींचतान देखने को मिली। बाद में चुनाव में भी पार्टी की हार हुई। इस हार के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को निशाने पर लिया गया लेकिन अब पार्टी की हार के कारणों को तलाशने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने एक कमेटी बनाई है, जिसकी मीटिंग दिल्ली में हुई।
हालांकि, इस कमेटी में कांग्रेस की नेता कुमारी सैलजा के गुट को जगह नहीं मिली है और कमेटी के आठ सदस्य हुड्डा कैंप से हैं। हुड्डा के समधी करण दलाल को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। उधर, सैलजा गुट के नेता शमशेर सिंह गोगी ने अब इस पर सवाल उठाए हैं।
दरअसल, कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में हार के कारणों की पड़ताल के लिए आठ सदस्यों की कमेटी बनाई है। इस कमेटी में करण दलाल, केसी भाटिया, मनीष सांगवान, वीरेंद्र बुल्ले शाह, विधायक आफताब अहमद, विजय प्रताप सिंह, वीरेंद्र राठौर और जलवीर सिंह वाल्मीकि को स्थान दिया गया है जबकि सैलजा कैंप से कमेटी में कोई नहीं है। यह कमेटी एक सप्ताह में हारे हुए प्रत्याशियों से बात करके रिपोर्ट बनाएगी। करनाल के असंध से कांग्रेस प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक शमशेर सिह गोगी ने 8 सदस्य कमेटी बनाने पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जिन्होंने कभी अध्यक्ष की जिम्मेवारी नहीं निभाई, उन्होंने यह आठ सदस्य की कमेटी बनाई है। कांग्रेस पार्टी के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया पर निशाना साधते हुए गोगी ने कहा कि प्रभारी का काम पार्टी को एकजुट करना होता है, लेकिन दीपक बावरिया ने इस तरह से काम किया जैसे भाजपा ने उनकी ड्यूटी लगाई थी। शमशेर सिंह गोगी ने कहा जिन लोगों की कमियां हैं, उन लोगों ने 8 सदस्यीय कमेटी में अपने-अपने आदमी बिठा दिए हैं।
हरियाणा के विधानसभा चुनाव में टिकटों का गलत आवंटन भी कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण रहा है। जातिवादी राजनीति और नेताओं की आपसी गुटबाजी के अतिरिक्त अब कांग्रेस में टिकटों के गलत आवंटन को लेकर भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कांग्रेस ने ऐसे नेताओं के टिकट काट दिए, जिनको सर्वे में पूरे नंबर मिले हुए थे, लेकिन वे टिकट आवंटित करने वाले नेताओं के निजी पैमाने पर खरा नहीं उतर पा रहे थे। कांग्रेस ने चुनाव से पहले दावा किया था कि सिर्फ जीतने वाले चेहरों पर दांव लगाया जाएगा और दो बार से अधिक चुनाव हारने वालों को टिकट नहीं मिलेंगे, लेकिन जब टिकटों के आवंटन की बारी आई तो रणनीतिकारों का यह पैमाना ध्वस्त हो गया। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने आधा दर्जन सीटों पर अपनी पार्टी के बागी उम्मीदवारों को भी बैठाने की जरूरत नहीं समझी। उनकी सोच रही कि कांग्रेस 55 से 65 सीटों पर चुनाव जीत रही है। ऐसे में यदि बागियों की वजह से एक-दो सीट हार भी गए तो सरकार बनाने की संभावनाओं पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा।कांग्रेस के रणनीतिकारों की यही सोच उसके सरकार बनाने के इरादों पर भारी पड़ी है और पार्टी के अधिकतर ऐसे उम्मीदवार चुनाव हार गए, जिन्हें पैराशूट उम्मीदवार के रूप में चुनावी रण में उतारा गया था और वास्तविक जिताऊ उम्मीदवारों की दावेदारी को अनदेखा कर दिया गया था। कांग्रेस के बागियों को बैठाने की कोई कोशिश भी पार्टी के रणनीतिकारों ने नहीं की।
कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में तिगांव में पूर्व विधायक ललित नागर का टिकट काट दिया गया, जबकि वह जिताऊ स्थिति में थे। बल्लभगढ़ में पूर्व मुख्य संसदीय सचिव शारदा राठौर के स्थान पर कांग्रेस मुख्यालय की पसंद की उम्मीदवार को चुनावी रण में उतार दिया गया। गोहाना में पूर्व विधायक जगबीर मलिक के प्रति भारी आक्रोश था, लेकिन उन्हें चुनावी रण में उतारा गया। खरखौदा में पूर्व विधायक जयवीर वाल्मीकि को लेकर लोगों में काफी गुस्सा था, लेकिन फिर भी उन्हें टिकट दिया गया। घरौंडा में तीन बार चुनाव हार चुके वीरेंद्र सिंह राठौर को टिकट दिया गया, जो कि चौथी बार चुनाव हार गए। कांग्रेस हाईकमान के सिफारशी प्रदीप नरवाल को बवानीखेड़ा में चुनावी रण में उतारा गया, जबकि उनका कोई जनाधार और पहचान नहीं थी। पटौदी में सुधीर चौधरी के स्थान पर पर्ल चौधरी को टिकट दे दिया गया। अंबाला छावनी में चित्रा सरवारा कांग्रेस की बागी उम्मीदवार थीं, जिन्हें बैठाने की कोई कोशिश नहीं की गई, जिस कारण न तो चित्रा स्वयं जीती और न ही पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार परी को जीतने दिया। तिगांव से बागी लड़े ललित नागर को मनाने के लिए भी कोई नेता उनके पास नहीं पहुंचा। यही स्थिति शारदा राठौर के मामले में रही। बहादुरगढ़ में कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र जून का विरोध था, लेकिन फिर भी उन्हें टिकट दिया गया। पानीपत ग्रामीण में सचिन कुंडू का जबरदस्त विरोध था, लेकिन कांग्रेस ने उन्हीं पर दांव खेला। अब कांग्रेस ने सैलजा के महत्व को ठीक से समझा है। (हिफी)