लेखक की कलम

चुनाव चिह्न को भी भुना रहे पीके

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
समाज की प्रगति का मूल आधार शिक्षा है। शिक्षा गुणवत्तापूर्ण होनी चाहिए। इससे रोजगार भी मिलता है। बिहार में बेरोजगारी है। यहां से लोग काम की तलाश में पंजाब और महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। दिल्ली में भी इनकी संख्या ज्यादा है। इसीलिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी राजनीतिक पार्टी के लिए चुनाव चिह्न में स्कूल का बस्ता को प्राथमिकता दी है। हालांकि पहले प्रशांत किशोर यही कह रहे थे कि चुनाव आयोग उनकी पार्टी को जो भी निशान आवंटित करेगा उसे स्वीकार कर लेंगे। अब उन्होंने अपने चुनाव चिह्न को शिक्षा से जोड़ दिया है। उन्होंने कहा, अब जन सुराज पार्टी की सोच और संकल्प यही है कि बिहार के लोगों की गरीबी और पिछड़ेपन को दूर करने का एकमात्र उपाय शिक्षा यानी स्कूल का बस्ता है। स्कूल का बस्ता बिहार के युवाओं के लिए रोजगार का रास्ता है। अगर बिहार से पलायन रोकना है तो उसका रास्ता भी स्कूल का बस्ता ही है। जन सुराज पार्टी को मिले चुनाव चिह्न स्कूल का बस्ता के बारे में पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने कहा है कि चुनाव आयोग से मांग कर लिया है। पार्टी ने स्कूल का बस्ता चुनाव चिह्न क्यों चुना उसके पीछे का कारण भी स्पष्ट किया। प्रशांत किशोर यानी पीके ने अपनी तकनीकी सूझबूझ से लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद में सेंध भी लगायी है। राष्ट्रीय जनता दल के सक्रिय सदस्यों से जनसुराज पार्टी सम्पर्क साध रही है। इसके बाद नीतीश के वोटबैंक को हथियाने का प्रयास किया जाएगा। पीके हिंदुत्व को भी अपनी पार्टी का हिस्सा बनाना चाहते हैं। मंदिरों में पहुंचते हैं और पुजारियों से आशीर्वाद लेते हैं। विपक्षी दलों को हमला करने का कोई अवसर नहीं देना चाहते। प्रशांत किशोर अपनी इस रणनीति का परीक्षण उपचुनावों में ही करना चाहते हैं।
प्रशांत किशोर ने कहा कि लालू-नीतीश के 35 साल के राज ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे बच्चों की पीठ से स्कूल का बस्ता हट गया और आज उनकी पीठ पर मजदूरी का बोझ है।प्रशांत किशोर ने कहा कि जन सुराज का संकल्प बिहार में विश्वस्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराना और यहां के युवाओं को अपने ही राज्य बिहार में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है। बिहार के लोगों का विकास बेहतर शिक्षा व्यवस्था से ही हो सकता है, क्योंकि जब तक सरस्वती नहीं आएंगी, तब तक लक्ष्मी वहां निवास नहीं कर सकतीं, इसीलिए जन सुराज ने अपना चुनाव चिह्न स्कूल का बस्ता चुना है। रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव का प्रचार करते हुए जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति का खुलासा किया । छठ महापर्व के अवसर पर 8 नवंबर की सुबह रामगढ़ स्थित कुलदेवी छेरावरी मां मंदिर, महुअर गांव पहुंचे। वहां उन्होंने देवी की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में रामगढ़ के स्थानीय लोग भी मौजूद रहे। उन्होंने कुलदेवी छेरावरी मां मंदिर के पुजारी और व्यवस्थापक से मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी ली। इस दौरान वहां उपस्थित सैकड़ों संख्या में रामगढ़ की जनता ने प्रशांत किशोर को प्रदेश का भविष्य बताया।
इसके साथ ही पीके राजनीति के तिकड़म भी कर रहे हैं । बताया जा रहा है कि राजद के 4 लाख सक्रिय सदस्यों का ब्योरा जन सुराज पार्टी (जसुपा) के हाथ लग गया है। जसुपा की ओर से राजद के कुछ सक्रिय सदस्यों को फोन किए जाने के बाद इसकी जानकारी हुई। उल्लेखनीय है कि जसुपा वैसे तो बिहार में सक्रिय प्रायः सभी दलों को खुली चुनौती दे रही, लेकिन मुसलमानों के लिए उसकी पैरोकारी राजद को कुछ अधिक ही अखर रही है। कारण, राजद का आधार वोट है, जो यादवों के साथ मुसलमानों को जोड़कर बनता है। राजनीति में उसे माय (मुसलमान-यादव) समीकरण कहते हैं। राजद के सक्रिय सदस्यों का जो डाटा लीक बताया जा रहा, उसमें सक्रिय सदस्यों का नाम-पता, उम्र-लिंग, मोबाइल नंबर, दायित्व, कार्यक्षेत्र और अभिरुचि आदि दर्ज हैं। चुनावी रणनीति और संगठनात्मक कार्यों के लिए इसकी बड़ी उपादेयता है। ऐसे में इस डाटा का किसी भी विरोधी दल के हाथ लग जाने से राजद की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर स्वाभाविक है। वह भी तब जबकि अगले वर्ष विधानसभा का चुनाव होना है। दरअसल, जन सुराज के राजनीतिक अवतरण के समय ही राजद ने भविष्य के खतरे को भांप लिया था। जसुपा को भाजपा की बी टीम बताते हुए राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने अपने कार्यकर्ताओं को चेतावनी दी थी कि वे उसके बहकावे में न आएं। इस बीच नेतृत्व को सूचना मिली कि राजद के डाटा का उपयोग कर जसुपा अपने अभियान पर आगे बढ़ रही है। विधानसभा की चार सीटों पर उपचुनाव के दौरान जसुपा की रणनीति से राजद की यह आशंका पुष्ट हो रही है।
हालांकि, जसुपा ऐसे आरोपों को पहले ही नकार चुकी है। वैसे भी इंटरनेट मीडिया के इस दौर में शायद ही कोई डाटा सुरक्षित है।अर्से से राजद में सक्रिय नेताओं-कार्यकर्ताओं को जब जसुपा से फोन पर आफर मिलने लगा तब नेतृत्व को इसकी भनक लगी। कई नेताओं ने तो स्वयं प्रदेश नेतृत्व को इससे अवगत कराया। उनमें राजधानी पटना के साथ गया, आरा, भागलपुर, कटिहार आदि के नेता हैं। राजद के प्रतिबद्ध नेताओं-कार्यकर्ताओं को लेकर नेतृत्व को कोई विशेष चिंता नहीं, लेकिन सक्रिय भूमिका में कुछ भ्रमणशील प्रवृत्ति के भी लोग हैं, जिन पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसे में राजद को उपचुनावों के बीच संगठन को संभालने की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है ।
बिहार में विधानसभा की चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव से भले किसी बड़े सियासी उलट-फेर का खतरा नहीं है, लेकिन इससे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जनता के मूड का पता चल जाएगा। यही वजह है कि एनडीए का नेतृत्व करने वाले नीतीश कुमार, इंडिया ब्लाक के अगुआ तेजस्वी यादव और नई पार्टी जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर के लिए उपचुनाव में प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। एनडीए का नेतृत्व करने वाले नीतीश कुमार को अपने साथ सहयोगी दलों की प्रतिष्ठा स्थापित करनी है। अभी चार में सिर्फ एक सीट ही एनडीए के पास है। तीन सीटें इंडिया अलायंस के कब्जे में रही हैं। इनमें दो आरजेडी की हैं और एक सहयोगी दल सीपीआई (एमएल) के पास है। बिहार में इंडिया अलायंस का नेतृत्व तेजस्वी यादव कर रहे हैं। इसलिए भले ही इंडिया गठबंधन चारों सीट न जीत पाए, पर अपनी तीन सीटें बचाने की बड़ी चुनौती तो है ही। उपचुनाव की जंग को तिकोना बनाने के लिए प्रशांत किशोर की नवगठित जन सुराज पार्टी भी पहली बार किस्मत आजमाने के लिए जंग में दाखिल हो गई है।रामगढ़ और बेलागंज सीटों पर आरजेडी का कब्जा रहा है, जबकि तरारी सीट सीपीआई (एमएल) के कब्जे में रही है। सिर्फ इमामगंज सीट मांझी की पार्टी हम के खाते में रही है। सीपीआई (एमएल) पिछले विधानसभा चुनाव से आरजेडी के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा है। आरजेडी के साथ रहने का लाभ भी सीपीआई (एमएल) को मिला है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में एमएल का भी एक सदस्य संसद पहुंच गया है। (हिफी)

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