लेखक की कलम

यूपी में दलितों को मसीहा की तलाश

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
उत्तर प्रदेश में स्वर्गीय कांशीराम ने दलितों को संगठित किया था और उनकी सबसे विश्वसनीय मायावती ने उसी सीढ़ी पर चढ़कर सत्ता हासिल की। मायावती से जब अखिलेश यादव ने सत्ता छीनी तब से दलित वोट दिग्भ्रमित हो गया है। लगभग एक दशक से दलितों की यही स्थिति है और भाजपा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इस वोट बैंक पर कब्जा करना चाहती है। बसपा प्रमुख मायावती ने एक बार फिर से दलितों को एकजुट करने का प्रयास युद्ध स्तर पर शुरू किया है। उन्हांेने पार्टी की रणनीति में परिवर्तन करते हुए उपचुनावों मंे उतरने का फैसला किया है लेकिन इस बीच आजाद समाज पार्टी बनाकर चंद्रशेखर आजाद दलितों के नये नेता बनकर उभरे हैं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में नगीना (यूपी) सीट पर विजयश्री भी हासिल की है। आजाद समाज पार्टी की रैली में दलितों और मुस्लिमों की भारी भीड देखी जा रही है। इस प्रकार यूपी का दलित समाज मायावती और चंद्रशेखर आजाद में से किसको चुने, यह नहीं तय नहीं कर पा रहा है। उधर, सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसीलिए अलीगढ़ (एएमयू) के अल्पसंख्यक स्वरूप पर विवाद के बीच वहां दलितों के लिए आरक्षण की मांग उठाई है। यूपी में 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव इस बात का भी फैसला करेंगे कि दलित किसको अपना मसीहा मानते हैं। प्रदेश की फूलपुर विधानसभा सीट इस मामले में ज्यादा निर्णायक होगी। बसपा ने जातीय समीकरण ध्यान में रखकर ही उप चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाए हैं। यूपी में बसपा का जनाधार लगातर गिर रहा है। बसपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में 22.13 फीसद मत के साथ 19 विधायक भी मिले थे लेकिन 2022 में 12.88 फीसद वोट पाकर उसे एक भी विधायक नहीं मिल सका। हालांकि सपा के साथ मिलकर 2019 में बसपा ने 19.43 फीसद मत पाकर 10 सांसद जुटा लिये थे लेकिन 2024 मंे अपने दम पर चुनाव लड़कर 9.35 फीसद मत पाये और एक भी सांसद नहीं मिल सका।
उत्तर प्रदेश में बीस नवंबर को होने वाले उपचुनाव को प्रमुख पार्टियां 2027 के सेमीफाइनल की तरह देख रही हैं। लोकसभा चुनाव में मिले बंपर सफलता से समाजवादी पार्टी आत्मविश्वास से गदगद है तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी इस बार पीडीए फार्मूले की कलई खुलने की बात जोर शोर से कर रही है। सबसे हॉट सीट फूलपुर में बसपा ने सबसे ज्यादा जोर लगाया है। यहां उसका सवर्ण प्रत्याशी है। बीजेपी प्रत्याशी ने कटेंगे तो बटेंगे, फूलपुर में गुंडाराज, पीडीए फार्मूला को तोड़ और आजाद समाज पार्टी की भूमिका सहित कई मुद्दों को उठाया है। फूलपुर विधानसभा सीट पर दो बार से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। हैट्रिक बनाने के लिए पार्टी ग्राउंड जीरो पर खूब मेहनत कर रही है। आकड़ों पर गौर करें तो चार जून को लोकसभा के परिणाम भी बेहद चौकाने वाले रहे हैं। फूलपुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अमरनाथ मौर्य ने लगभग 18000 वोटों की बढ़त हासिल की थी, बावजूद वह लोकसभा का चुनावा हार गए थे। वहीं दूसरी ओर वर्तमान सांसद और पूर्व विधायक प्रवीण पटेल को 2022 विधानसभा चुनाव में महज 2723 वोटों जीत मिली थी। ऐसे में यह आकड़ें इस सीट के उपचुनाव को किसी भी निर्णायक ओर जाने का स्पष्ट दिशा नहीं देती है।
बीते कुछ दिनों पहले सहसों मलावां में आजाद समाज पार्टी की रैली होती है, जिसमें मुस्लिम और एससी समाज के लोगों की भारी भीड़ देखी गई। आलम ये रहा कि कई घंटों तक रोड जाम रहा। वहीं दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी ने एक सवर्ण क्षत्रिय प्रत्याशी को उतारकर माहौल बेहद रोमांचक कर दिया है। ऐसे में इलाके के लोगों का मानना हौ कि एक ओर जहां आजाद समाज पार्टी मुस्लिम वोटों में सेंधमारी कर सकती है तो वहीं दूसरी और बहुजन को जाने वाले क्षत्रिय वोट भी निर्णायक भूमिका में हो सकते हैं।
दलित नेता चंद्रशेखर आजाद जिन्हें चंद्रशेखर आजाद रावण के नाम से भी जाना जाता है एक भारतीय दलित-बहुजन अधिकार कार्यकर्ता हैं। वह एक आंबेडकरवादी व राजनीतिक हैं वह आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान में नगीना, उत्तर प्रदेश से लोक सभा सांसद हैं। चंद्रशेखर 2015 में भीम आर्मी के गठन के साथ चर्चा में आए, जिसे आधिकारिक तौर पर भीम आर्मी भारत एकता मिशन के नाम से जाना जाता है। इस संगठन की स्थापना उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए लड़ने के उद्देश्य से की थी। तब वे देश में हुए कई दलित आंदोलनों में सबसे आगे थे। फायरब्रांड नेता ने मार्च 2020 में राजनीतिक संगठन आजाद समाज पार्टी का गठन किया और सपा, बसपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के कई नेता इस पार्टी में शामिल हो गए। नगीना लोकसभा सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। यह निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है, जिसमें लगभग 21 प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। निर्वाचन क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। दलित नेता और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद ने नगीना लोकसभा सीट पर भाजपा के ओम कुमार को 1.5 लाख से अधिक मतों से हराया।
चंद्रशेखर को 5,12,552 वोट मिले, जबकि कुमार को 3,61,079 वोट
मिले। समाजवादी पार्टी के मनोज कुमार, जो इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार थे, को 1,02,374 वोट मिले, और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र
पाल सिंह को 13,272 वोट मिले। 2019 में बीएसपी के गिरीश चंद्र ने बीजेपी उम्मीदवार यशवंत सिंह को 1,66,832 वोटों से हराकर सीट जीती थी। 2014 में इस सीट पर बीजेपी
और 2009 में समाजवादी पार्टी का कब्जा था।
यूपी विधानसभा उपचुनाव जीतना सभी पार्टियों का मकसद है, लेकिन बसपा के लिए चुनौतियां इससे कहीं बढ़कर हैं। बसपा के आगे अपने कोर वोट में दूसरे दलों की सेंधमारी रोकने के साथ बहुजन हिताय पार्टी का तमगा बचाए रखने की भी चुनौती है। दरअसल, बसपा प्रमुख मायावती बीते कई दशकों से दलित राजनीति का चेहरा हैं, लेकिन अब धीरे-धीरे जनाधार खिसक रहा है।पिछले कुछ चुनाव में उनके दलित वोट बैंक में भाजपा और फिर सपा ने सेंध लगाई। अब उनकी सबसे बड़ी चुनौती आजाद समाज पार्टी और उसके नेता चंद्रशेखर हैं। लोकसभा चुनाव में नगीना से जीतने के बाद चंद्रशेखर दलित वर्ग में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं और अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या चंद्रशेखर बसपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रहे हैं? क्या इसी वजह से बसपा उपचुनाव में अपना पूरा दम लगा रही है? क्या बसपा बहुजन हिताय पार्टी का तमगा बचा पाएगी? यूपी की राजनीति में बसपा और आजाद समाज पार्टी के लिए दलित वोटरों पर पकड़ बनाने की होड़ है। दरअसल, जो दलित वोटरों को लुभाएगा, वही आगे बहुजन की सियासत का प्रमुख चेहरा होगा। बसपा प्रमुख मायावती कई दशकों से दलित राजनीति का चेहरा हैं। (हिफी)

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