बुलडोजर पर सुप्रीम फैसला और जनभावना

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
अपराधियों के विरुद्ध बुलडोजर की कार्रवाई के प्रणेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही माने जाते हैं। इसी के चलते जनता के बीच उनका एक नाम बुलडोजर बाबा भी पड़ गया। योगी के इस कदम का कई अन्य राज्यों मंे भी अनुकरण किया गया। हालांकि वे भाजपा शासित राज्य हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आम जनता ने इस कदम का स्वागत किया था। माफिया जैसे अपराधी को पहले तो गिरफ्तार ही नहीं किया जाता। दबाव के बाद पकड़ा भी गया तो उसके खिलाफ कोई गवाही देने को तैयार नहीं होता और किसी ने हिम्मत जुटाई तो राजूपाल हत्याकांड के गवाह जैसा उसका अंजाम होता है। दूसरी तरफ अपराधी जब आलीशान कोठियां बनवाता है अथवा अपहरण आदि करके बड़ी धनराशि वसूलता है तो उसका उपभोग उसके परिवार के लोग भी करते हैं। इतना ही नहीं सरकारी जमीन पर कब्जा करके माफिया बिल्डिंग खड़ी करते हैं तो क्या उस पर भी बुलडोजर नहीं चलना चाहिए। इसी वर्ष 20 जून को माफिया अतीक अहमद के भाई अशरफ की फरार पत्नी जैनब फातिमा के घर पर बुलडोजर चला था। यह कार्रवाई वक्फ बोर्ड की 50 करोड़ की जमीन हड़पने के मामले मंे की गयी थी। पुलिस जांच में पाया गया कि अशरफ ने वक्फ बोर्ड की जमीन पर जैनब के लिए आलीशान घर बनवाया था। यह आलीशान घर प्रयागराज (पूर्व का इलाहाबाद) के सल्लाहपुर मंे बना था। इसे एक उदाहरण मानकर देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात् सुप्रीम कोर्ट के 13 नवम्बर के बुलडोजर पर फैसले को देखें तो कई लोग निराश होंगे। यह कार्रवाई अपराधियों को अंतरिम सजा के रूप मंे की जाती है और प्रताड़ित को कुछ राहत भी मिलती है। कौन नहीं जानता की आम जनता को फैसले के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता है और असरदार मुजरिम जेल जाने और फांसी के फंदे पर चढ़ने से बच जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवम्बर को बुलडोजर न्याय पर बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर से लोगों के घर गिराए जाने को असंवैधानिक बताया है. अदालत ने कहा कि यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का मकान केवल इस आधार पर गिरा देती है कि वह अभियुक्त है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गंभीर अपराधों के आरोपी और दोषी के खिलाफ भी बुलडोजर की कार्रवाई बिना नियम का पालन किए नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कानून का शासन,नागरिकों के अधिकार और प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत आवश्यक शर्त है। अगर किसी संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है क्योंकि व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट के बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने फैसला सुनाया। अपने फैसले में जस्टिस गवई ने कहा कि किसी का घर उसकी उम्मीद होती है। हर किसी का सपना होता है कि उसका आश्रय कभी न छिने। हर आदमी की उम्मीद होती है कि उसके पास आश्रय हो। हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आश्रय छीन सकती है जिस पर अपराध का आरोप है। अदालत ने कहा कि किसी आरोपी का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता क्योंकि उस पर किसी अपराध का आरोप है। उन्होंने कहा कि आरोपों पर सच्चाई का फैसला सिर्फ न्यायपालिका ही करेगी। अदालत ने कहा कि कानून का शासन लोकतांत्रिक शासन का मूल आधार है। यह मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता से संबंधित है। यह अनिवार्य करता है कि कानूनी प्रक्रिया को अभियुक्त के अपराध के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वो राज्य में कानून व्यस्था बनाए रखे।
अदालत ने कहा कि सभी पक्षों को सुनने के बाद ही हम आदेश जारी कर रहे है। अदालत ने कहा कि हमने संविधान के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर विचार किया है। यह व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करता हैं। अदालत ने कहा कि सत्ता के मनमाने प्रयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर से हो रही कार्रवाई को लेकर अपनी गाइडलाइन जारी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा यदि ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया
जाना चाहिए। बिना कारण बताओ
नोटिस के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई
नहीं की जाएगी। मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा
और नोटिस को संरचना के बाहर चिपकाया भी जाएगा। नोटिस तामील होने के बाद अपना पक्ष रखने के लिए संरचना के मालिक को 15 दिन का समय दिया जाएगा। तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी। कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे। नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, निजी सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई तय की गई है। निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाएगा, जहां नोटिस और उसमें पारित आदेश का विवरण उपलब्ध कराया जाएगा।
प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा और मिनटों को रिकॉर्ड किया जाएगा। उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा। इसमें यह उत्तर दिया जाना चाहिए कि क्या अनधिकृत संरचना समझौता योग्य है और यदि केवल एक भाग समझौता योग्य नहीं पाया जाता है और यह पता लगाना है कि विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र जवाब क्यों है। आदेश डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा। आदेश के 15 दिनों के भीतर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाएगा और केवल तभी जब अपीलीय निकाय ने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, तो विध्वंस के चरण होंगे। विध्वंस की कार्रवाई की वीडियोग्राफी की जाएगी। वीडियो को संरक्षित किया जाना चाहिए। उक्त विध्वंस रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जानी चाहिए। इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी। अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
इस फैसले पर आम जनता की राय भी मीडिया में आनी चाहिए। एक उदाहरण है उमेश पाल की हत्या। उमेश राजूपाल हत्याकांड के एकमात्र गवाह थे। उमेश पाल की हत्या में शामिल आरोपी के घर पर पीडी बुलडोजर चला। जिस घर को गिराया गया वो खालिद जफर नाम के व्यक्ति का था। ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के दौरान घर के अंदर से बंदूक और तलवार मिलीं। पुलिस को पुख्ता जानकारी मिली थी कि इस घर में अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता ने शरण ली थी। उमेश पाल हत्याकांड की साजिश भी इस मकान में रची गई थी। (हिफी)