मुस्लिम वोटों की सियासत

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
कर्नाटक मंे कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार सिविल निर्माण के सरकारी कार्यों मंे मुसलमानों को आरक्षण देने पर विचार कर रही है। मुस्लिम वोटों की सियासत का यह भी एक प्रारूप बताया जा रहा है। इस विचार के चलते सिद्धारमैया सरकार की आलोचना होना स्वाभाविक है लेकिन मुस्लिम वोटों की सियासत सिर्फ कर्नाटक तक ही सीमित नहीं है। महाराष्ट्र और झारखण्ड मंे, जहां विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, वहां भी मुस्लिम वोटों की राजनीति जमकर हो रही है। उत्तर प्रदेश मंे 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी 20 नवम्बर को होंगे। यहां पर समाजवादी पार्टी और असदउद्दीन ओवैसी मुस्लिम वोटों की सियासत कर रहे हैं। महाराष्ट्र में मुसलमानों की आबादी करीब 12 फीसदी है और राज्य की लगभग 40 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता हार-जीत के फैसले को प्रभावित करते हैं। राज्य की 288 सीटों वाली विधानसभा मंे 40 सीटों का महत्व है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश मंे मुस्लिम वोटों के लिए सपा के अखिलेश यादव और एआईएमआईएम के असदउद्दीन ओवैसी गिद्ध दृष्टि लगाये हैं। ओवैसी ने मुस्लिम बहुल वाली तीन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। मुस्लिम मतदाताओं का रुख अभी स्पष्ट नहीं है। इन पर दावा तो बसपा भी कर रही है।
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार सिविल निर्माण के सरकारी कार्यों में मुसलमानों को आरक्षण देने पर विचार कर रही है। जानकारी के मुताबिक फिलहाल राज्य में ऐसा एक प्रस्ताव खूब चर्चा में है, जिसमें सरकारी कार्यों में मुसलमानों को 4 फीसदी आरक्षण देने पर विचार हो रहा है। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है तो कर्नाटक में सरकारी टेंडरों में 47 प्रतिशत कोटा हो जाएगा। फिलहाल कर्नाटक के सरकारी कार्यों में एससी और एसटी (24 प्रतिशत) आरक्षण है। वहीं श्रेणी-1 (4 प्रतिशत) और श्रेणी-2ए (15 प्रतिशत) से संबंधित ओबीसी ठेकेदारों के लिए सिविल कार्य अनुबंधों में आरक्षण है। इस तरह कुल 43 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। अब 4 फीसदी आरक्षण मुसलमानों को दिए जाने पर ये बढ़कर 47 फीसदी हो जाएगा। सिद्धारमैया सरकार मुसलमानों को 1 करोड़ तक के सरकारी निर्माण कार्यों में आरक्षण देने पर विचार कर रही है।
इससे राज्य में सरकारी टेंडरों में कुल आरक्षण का दायरा बढ़ जाएगा। कर्नाटक सीएम सिद्धारमैया मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) मामले को लेकर कुछ दिन पहले मैसूर लोकायुक्त अधीक्षक टी जे उदेश के सामने पेश हुए। मुडा (एमयूडीए) में कथित अनियमितताओं से संबंधित मामले में सीएम सिद्धारमैया को मुख्य आरोपी बनाया गया है। कर्नाटक के इतिहास में सत्ता में रहते हुए लोकायुक्त जांच का सामना करने वाले सिद्धारमैया पहले मुख्यमंत्री हैं। सीएम सिद्धारमैया का पिछला रिकॉर्ड काफी साफ सुथरा रहा है। चार दशक के राजनीतिक करियर में वो पहली बार जांच का सामना कर रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि अगर सीएम सिद्धारमैया को लोकायुक्त जांच में क्लीन चिट मिल जाती है, तो इससे उन्हें यह तर्क देने में मदद मिलेगी कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच की जरूरत नहीं है और उनके खिलाफ आरोप राजनीति से प्रेरित है। सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका पर हाईकोर्ट 26 नवंबर को सुनवाई करेगा।
दलितों की राजनीति महाराष्ट्र में भी हो रही है। महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान होना है। चुनाव का परिणाम 23 नवंबर को आएगा। ऐसे में राज्य में दो प्रमुख गठबंधन चुनाव मैदान में अपने-अपने सहयोगियों के साथ उतरे हैं। महायुती में बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी है और दूसरा गठबंधन महाविकास आघाढ़ी (एमवीए) का है जिसमें कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार, शिवसेना यूबीटी हैं। महाराष्ट्र को राजनीतिक दृष्टि से 6 हिस्सों में बांटा जाता है। मराठवाड़ा, विदर्भ, मुंबई, पश्चिमी महाराष्ट्र, कोंकण और खानदेश। महाराष्ट्र में मुस्लिम आबादी करीब 12 फीसदी है। राज्य कुल 38 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिम मतदाता असर डालते हैं। राज्य में पिछले कुछ दशकों में किसी एक विधानसभा के कार्यकाल में मुस्लिम विधायक चुने जाने की अधिकतम संख्या 13 रही है। इस प्रकार देखा जाए तो जिस सीट पर मुस्लिम असर डाल रहे हैं वहां से भी मुस्लिम विधायक चुनकर नहीं जा रहे हैं या फिर उन सीटों पर भी पार्टियों मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट नहीं दे रही है। राज्य की कुल 288 सीटों में से 150 सीटें ऐसी हैं जहां पर एक भी मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं है। साथ ही
50 सीटें ऐसी हैं जिनमें केवल एक मुस्लिम कैंडिडेट फाइट कर रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि राजनीतिक दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट कम दिया है। कांग्रेस पार्टी ने राज्य में 9 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है।
राज्य के चुनाव में 4136 उम्मीदवार अपने भाग्य को आजमा रहे हैं। इनमें कुल 420 मुस्लिम प्रत्याशियों ने नामांकन किया है। इनमें से 218 मुस्लिम निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। यह तो साफ है कि जब प्रमुख दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट ही नहीं दिया है तो ज्यादातर को निर्दलीय मैदान में उतरना पड़ा है। राज्य में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले शहर मालेगांव में 13 मुस्लिम प्रत्याशी हैं। राज्य के संभाजीनगर पूर्व सीट पर 17 मुस्लिम प्रत्याशी हैं। यहां तीन मुस्लिम महिलाएं भी चुनावी मैदान में हैं। राज्य में कुल 22 मुस्लिम महिलाएं इस बार चुनाव लड़ रही हैं।
यूपी में 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहा है लेकिन मुकाबला मिनी विधानसभा चुनाव जैसा हो गया है। एक-एक सीट जीतने की होड़ मची है। समाजवादी पार्टी और बीजेपी में सीधी टक्कर है पर लड़ाई में बीएसपी, आजाद समाज पार्टी हैं। इनकी वजह से कहीं बीजेपी का, तो कहीं समाजवादी पार्टी का समीकरण बिगड़ रहा है।
ओवैसी की पार्टी यूपी में अब तक कोई बड़ा उलट फेर नहीं कर पाई है। लेकिन इस बार उनकी पार्टी पूरे दम खम से तीन सीटों पर उप चुनाव लड़ रही है। यूपी की इन मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर ओवैसी की पार्टी किस्मत आजमा रही है। यूपी अध्यक्ष शौकत अली बताते हैं कि सब कुछ ठीक रहा तो दो सीटों पर बीजेपी से मुकाबला उनकी ही पार्टी करेगी। अखिलेश यादव असदुद्दीन ओवैसी का नाम सार्वजनिक रूप से लेने से बचते हैं। ओवैसी के आने से नुकसान अखिलेश यादव का है। वे समाजवादी पार्टी का मुसलमानों में तुर्क वोटरों पर भरोसा है, तो ओवैसी की नजर मुस्लिम चौधरी वोट पर है। उनके आने से मुस्लिम वोटों में बंटवारे का खतरा है। कुंदरकी में 65 फीसद मुसलमान वोटर हैं। मेरठ के मेयर के चुनाव में ओवैसी की पार्टी समाजवादी पार्टी से आगे रही थी। चुनाव में कब क्या समीकरण
बन जायें इसकी कोई गारंटी
नहीं है। (हिफी)