लेखक की कलम

सरकार सुरक्षित, राज्य असुरक्षित

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्य संवेदनशील हैं क्योंकि उनकी सीमाएं कहीं बांग्लादेश तो कहीं म्यांमार और चीन से सटी हुई हैं। इसलिए कुकी और मैतेयी जनजातियों के संघर्ष में उलझा मणिपुर असुरक्षित है, भले ही वहां की वीरेन सिंह सरकार सुरक्षित है। भाजपा के नेतृत्व वाले इस राज्य में कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। मणिपुर विधानसभा के 2022 में विधानसभा चुनाव हुए थे। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को अकेले दम पर 32 विधायक मिल गये थे। इस प्रकार बहुमत उनके पास था लेकिन भाजपा ने संगमा की पार्टी एनपीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इसलिए साझे की सरकार बनायी। एनपीपी को 7 विधायक मिले थे। इसके अलावा विपक्ष में कांग्रेस 5, एनपीएफ के 5, आईएनडी के 3 और केपीए के 2 विधायक हैं। राज्य में एक साल से ज्यादा समय में संघर्ष की आग धधक रही है। गृह मंत्री अमित शाह ने समझौता भी करवाया लेकिन शांति स्थापित नहीं हो सकी है। इसलिए भाजपा की सरकार भले ही सुरक्षित है लेकिन राज्य में शांति स्थापित करना मुख्यमंत्री वीरेन सिंह की प्राथमिकता होनी चाहिए। इस बार तो भाजपा के विधायक और मंत्री ही नहीं स्वयं मुख्यमंत्री के आवास को निशाना बनाया गया है। इसलिए समस्या का गंभीरता से समाधान होना चाहिए। मणिपुर में विद्रोह 1964 में यूनाइटेड नेशनल लिवरेशन फ्रंट के गठन के साथ प्रांरभ हो गया था। कई बार के शांति समझौते भी संघर्ष की आग को ठण्डा नहीं कर पाए हैं।
मणिपुर एक बार फिर सुलग रहा है। कई राजनीतिक दलों के कार्यालयों में आगजनी हुई है। मणिपुर के मुद्दे पर अमित शाह शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक कर चुके हैं। जिरीबाम में छह शव बरामद होने की खबर फैलने के बाद, कई जिलों, खासकर इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम जिलों में भीड़ ने मंत्रियों, विधायकों और राजनीतिक नेताओं के करीब दो दर्जन घरों पर हमला किया और तोड़फोड़ की। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह महाराष्ट्र में अपनी चुनावी रैलियां रद्द करके लौटे और मणिपुर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और उन्हें शांति सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाने का निर्देश दिया। इस बीच बीरेन सिंह सरकार से एनपीपी ने समर्थन वापस ले लिया है। इससे राज्य में एक नया संकट खड़ा हो सकता है।
कुकी-जो जनजाति के एक प्रमुख संगठन, स्वदेशी जनजातीय नेताओं के मंच (आईटीएलएफ) ने 17 नवम्बर को कहा कि जिरीबाम में गत रात कम से कम पांच चर्च, एक स्कूल, एक पेट्रोल पंप और आदिवासियों के 14 घरों को प्रतिद्वंद्वी समुदाय के हमलावरों ने जला दिया। आगजनी की निंदा करते हुए आईटीएलएफ ने आरोप लगाया कि मणिपुर में चल रहे संघर्ष के कारण खाली पड़े भवनों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद जिरीबाम शहर में तैनात सुरक्षा बल शांति स्थापित करने में विफल रहे। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि शीर्ष अधिकारियों के नेतृत्व में सेना, असम राइफल्स, बीएसएफ, सीआरपीएफ, मणिपुर पुलिस समेत राज्य कमांडो ने रात राजधानी इंफाल और उसके बाहरी इलाकों में फ्लैग मार्च किया। पुलिस ने बताया कि बैराक नदी में एक महिला का शव बरामद किया गया। शव को असम पुलिस ने कछार जिले में बराक नदी से बरामद किया, जो जिरीबाम की सीमा पर है। शव की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद जिरीबाम में फिर से तनाव भड़क गया। गुस्साई भीड़ ने जिरीबाम में कई राजनीतिक दलों के कार्यालयों को जला दिया। इंफाल में एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि मंत्रियों और विधायकों के घरों में तोड़फोड़ और आगजनी करने वाली भीड़ में शामिल 25 लोगों को इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम और बिष्णुपुर जिलों से गिरफ्तार किया गया है और उनके कब्जे से कुछ हथियार और गोला-बारूद, मोबाइल फोन बरामद किए गए हैं।
असम राइफल्स, बीएसएफ और कमांडो सहित राज्य बलों ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए कई राउंड आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां चलाईं, जिसमें 15 से अधिक लोग घायल हो गए। प्रदर्शनकारियों ने इंफाल की मुख्य सड़कों पर टायर भी जलाए और वाहनों की आवाजाही को रोकने के लिए विभिन्न सामग्रियों और भारी लोहे की छड़ों का ढेर लगा दिया। छह शव, जिनकी पहचान इन पंक्तियों के लिखे जाने तक परिवार के सदस्यों द्वारा नहीं की गई है, माना जाता है कि वे जिरीबाम जिले में 11 नवंबर से लापता छह महिलाओं और बच्चों के हैं। मणिपुर-असम सीमा पर जिरी और बराक नदियों के संगम के पास मिले शवों को पोस्टमार्टम के लिए असम के सिलचर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल लाया गया। इसी बीच व्यापक हमले और विरोध-प्रदर्शन शुरू होने के बाद, अधिकारियों ने इम्फाल घाटी के इम्फाल पूर्व, पश्चिम, बिष्णुपुर, थौबल और काकचिंग जिलों में कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के कारण अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया। मुख्य सचिव विनीत जोशी ने सात जिलों – इम्फाल पश्चिम, इम्फाल पूर्व, बिष्णुपुर, थौबल, काकचिंग, कांगपोकपी और चुराचांदपुर में 16 नवम्बर शाम से दो दिन के लिए मोबाइल इंटरनेट और डाटा सेवाओं को निलंबित करने का आदेश दिया।
इसी हिंसा के चलते एनपीपी के समर्थन वापस लेने के बाद भी मणिपुर में एन बीरेन सिंह सरकार सुरक्षित है। सन् 2022 में हुए मणिपुर विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 32, कांग्रेस ने 5, जदयू ने 6, नागा पीपुल्स फ्रंट ने 5 और कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी ने 7 सीटें जीती थीं। वहीं, कुकी पीपुल्स एलायंस ने 2 और 3 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे।
मणिपुर के जिरीबाम में शांति बहाल करने के प्रयासों के लिए मैतेयी और हमार समुदायों के बीच समझौता होने के 24 घंटे भीतर ही तनाव पैदा करने वाली घटना सामने आई हैं, जहां गोलीबारी की गई और एक खाली पड़े घर को आग लगा दी गई। असम के कछार में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के परिसर में हुई बैठक में मैतेयी और हमार समुदायों के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ था।
बैठक का संचालन जिरीबाम जिला प्रशासन, असम राइफल्स और सीआरपीएफ ने किया, जिसमें जिरीबाम जिले के थाडौ, पैते और मिजो समुदायों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। इन समुदायों के प्रतिनिधियों द्वारा जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया, बैठक में यह संकल्प लिया गया कि दोनों पक्ष सामान्य स्थिति बहाल करने तथा आगजनी और गोलीबारी की घटनाओं को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।दोनों पक्ष जिरीबाम जिले में कार्यरत सभी सुरक्षा बलों को पूर्ण सहयोग देंगे। पिछले वर्ष मई से मैतेयी और कुकी-जो समूहों के बीच जारी जातीय हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गए हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं। मणिपुर में विद्रोह का उदय वर्ष 1964 में ‘यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट’के गठन के साथ शुरू हुआ था। भारतीय संघ में मणिपुर का जबरन विलय होने से वहाँ के लोगों में असंतोष की भावना पैदा हुई । मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने में देरी हुई मणिपुर के तत्कालीन साम्राज्य का विलय 15 अक्तूबर, 1949 को किया गया था, परंतु इसे वर्ष 1972 में राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। उग्रवाद का उदय हुआ और सभी ने एक ‘स्वतंत्र मणिपुर’ की मांग की। (हिफी)

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