ईवीएम पर सवाल खड़े करने वालों को सुप्रीम फटकार!

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
जीते तो सब ठीक हारे तो ईवीएम खराब। यह फार्मूला विपक्षी दलों ने अपनाया हुआ है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर जिस प्रकार से टिप्पणी की है, उसके बाद से होना तो यह चाहिए कि राजनीतिक दल ईवीएम को लेकर देशवासियों को गुमराह करने की अपनी आदत से बाज आएं। मगर ऐसा लगता है कि कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दलों ने ईवीएम को निशाना बनाने की आदत पाल ली है। जब भी किसी प्रदेश में विपक्षी पार्टी को जनता नकार देती है, तो राजनीतिक पार्टियों के द्वारा चुनावी हार का ठीकरा ईवीएम मशीन पर फोड़ना शुरू कर दिया जाता है। दुःखद बात यह है कि इस आदत से ये राजनीतिक दल भी ग्रस्त हो गए हैं, जो यह रोना रोते रहते हैं कि संस्थाओं को कमजोर और नष्ट किया जा रहा है। उन्हें यह बुनियादी बात जितनी जल्द समझ आ जाए, उतना ही अच्छा कि ईवीएम पर संदेह जताकर वे चुनाव आयोग की पगड़ी उछालने का ही काम कर रहे हैं। क्या इससे शर्मनाक और कुछ हो सकता है कि जिस चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा दुनिया भर में है, उसे संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ के लिए बदनाम करने का अभियान हमारे अपने ही लोगों ने छेड़ रखा है। इस अभियान के तहत ईवीएम को अविश्वसनीय करार देने की कोशिश रह-रहकर होती है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने 26 नवम्बर को ईवीएम के स्थान पर मतपत्रों को फिर से लागू करने की मांग बाली जनहित याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की है कि मशीनों को केवल तभी दोषी ठहराया जाता है जब कोई चुनाव हार जाता है। विपक्षी पार्टियों को लेकर कहा है कि अगर आप चुनाव जीतते हैं, तो ईवीएम से छेड़घ्छाड़ नहीं की जाती है। जब आप चुनाव हारते हैं, तो ईवीएम से छेड़छाड़ की जाती है। जब चंद्रबाबू नायडू हार गए, तो उन्होंने कहा कि ईवीएम से छेड़घ्छाड़ की जा सकती है। अब, इस बार जगन मोहन रेडी हार गए, उन्होंने कहा कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ना बंद कीजिए। दरअसल याचिकाकर्ता केए पॉल ने सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर की थी। याचिकाकार्ता पॉल ने बहस करते हुए नायडू द्वारा 2018 के ट्वीट और रेड्डी द्वारा एक्स पर हाल ही में किए गए कुछ पोस्ट का हवाला दिया, जिसमें चुनावों में उनकी हार के बाद ईवीएम से छेड़छाड़ की संभावना का आरोप लगाया गया था। साथ ही याचिका में चुनाव के दौरान वोटर्स को पैसा, शराब और दूसरी चीजों का लालच देने का दोषी पाए जाने पर ऐसे उम्मीदवारों को कम से कम पांच साल के लिए अयोग्य घोषित किए जाने की मांग की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। अगर देखा जाए तो पहली बार नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को लेकर सख्त टिप्पणी की है। इसी साल 16 अक्टूबर को कांग्रेस की ओर से प्रिया मिश्रा और विकास बंसल ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान 20 सीटों पर वोटिंग काउंटिंग में गड़बड़ी के आरोप लगाकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि ऐसी याचिका दायर करने पर आप पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसी साल 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने और इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन और बीवी पैट स्लिप की 100 प्रतिशत क्रॉस चेकिंग कराने से जुड़ी याचिकाएं खारिज की थीं। साथ ही ईवीएम के इस्तेमाल के 42 साल के इतिहास में पहली बार जांच का रास्ता खोला था। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संजीव खन्ना ने ये फैसला सुनाया था।
देखा जाए तो लंबे समय से देश में विपक्षी दल लगातार ईवीएम पर सवाल उठाते रहे हैं। हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद पार्टी ने ईवीएम के 99 फीसदी तक चार्ज रहने का मुद्दा उठाया था। अभी हाल में यूपी में संपन्न विधानसभा उपचुनाव में भी समाजवादी ने ईवीएम से छेड़घ्छाड़ का आरोप लगाया था। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि शीर्ष न्यायालय की कड़ी टिप्पणी के बाद भी कांग्रेस ने बैलेट पेपर से चुनाव की मांग के लिए देशव्यापी अभियान चलाने का ऐलान किया है। पार्टी
अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि कांग्रेस चाहती हैं कि बैलेट पेपर से ही चुनाव हो और इसके लिए हम भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर पूरे देश में अभियान चलाएंगे लेकिन जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, कांग्रेस से पूछा जाना चाहिए कि अगर ईवीएम में गड़बड़ी कर सत्ताधारी पार्टी चुनाव जीतती है, तो कई प्रदेशों में इंडिया गठबंधन की पार्टियां कैसे जीतती आ रही हैं। हकीकत यह है कि पूरे देश में कांग्रेस अपनी गलतियों के कारण हार रही है। मगर दुःखद बात है कि कांग्रेस हार को स्वीकार कर आत्ममंथन और समीक्षा के बजाय बहानेबाजी का आसान रास्ता चुन लेती है और ईवीएम पर ठीकरा फोड़ने की कोशिश करती है। मगर ऐसा करते हुए वह भूल जाती है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र
की महान लोकतांत्रिक प्रक्रिया और उसको विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रही है।
कांग्रेस या विपक्षी दल ऐसा पहली बार नहीं कर रहे। इससे पहले भी अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से पार्टियां ईवीएम पर चुप्पी या हो-हल्ला मचाती रही हैं लेकिन ईवीएम एक बार नहीं, कई बार अग्निपरीक्षा से गुजरी और हर बार बेदाग निकली। ईवीएम पर 8 बार परीक्षण किया गया और ये हर बार बेदाग निकली। इंचीएम को लेकर कई बार मामले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, लेकिन हर बार उसकी विश्वसनीयता असंदिग्ध मिली। वीवीपैट पर्चियों और ईवीएम में दर्ज वोटों के मिलान में कभी कोई विसंगति नहीं दिखी। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कई राज्यों में ईवीएम में दर्ज वोट और वीवीपैट का मिलान हुआ। सब सही पाया गया और ईवीएम बेदाग साबित हुई। कुल मिलाकर देखा जाए तो ईवीएम हर बार बेदाग साबित हुई है। इसका इस्तेमाल चुनाव प्रक्रिया को आसान बनाने और बूथ कैप्चरिंग जैसे अपराधों पर लगाम लगाने के लिए किया गया। बैलट पेपर से चुनाव के वक्त अक्सर बैलट बॉक्स लूटे जाने, उनमें स्याही डालने, बूथ कैप्चरिंग जैसे अपराध सामने आते थे लेकिन ईवीएम का दौर आने से अब वे अतीत का हिस्सा बनकर रह गए हैं। ईवीएम से वोटिंग से परिणाम भी जल्दी आते हैं नहीं तो बैलट पैपर्स की गिनती में ही 1-2 दिन और लोकसभा चुनाव में तो 3-3, 4-4 दिन तक लग जाते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने भी बैलट पेपर से बोटिंग कराने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। ईवीएम की शुचिता असंदिग्ध रहे, इसके लिए मशीन में दर्ज वोटों और वीवीपैट पर्चियों का मिलान होता है। पार्टियां अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़कर अपने समर्थकों का जोश ठंडा होने या उन्हें मायूस होने से तो रोक लेंगे, लेकिन ऐसा करके वे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को बेवजह दागदार करने की कुत्सित कोशिश भी कर रही होती हैं। संवैधानिक संस्थाओं को लांछित करने का ये खेल खतरनाक है। चुनाव आते-जाते रहेंगे, हार-जीत होती रहेंगी लेकिन निहित स्वार्थों के तहत चुनाव प्रक्रिया को लेकर जनमानस में संदेह पैदा करने की कोशिशें शर्मनाक हैं। कांग्रेस हो या कोई और पार्टी, इस आदत से बाज आना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि विपक्ष ईवीएम का नही अपने कार्यकलापों की समीक्षा कर कुछ सबक हासिल करें। (हिफी)