लेखक की कलम

ओली व यून सुक की जोखिम भरी सियासत

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
भारत के पड़ोसी देश नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चौथी बार गद्दी संभालने पर नयी परम्परा डाली। आमतौर पर वहां के पीएम पहली राजकीय यात्रा भारत की करते थे लेकिन वह विस्तारवादी चीन पहुंच गये। चीन के इरादे अच्छे न देखकर ही भूटान के राजा भारत की बार-बार यात्रा कर रहे हैं। उधर, दक्षिण कोरिया मंे राष्ट्रपति यून सुक येओल ने उत्तर कोरिया से डाराने के नाम पर विपक्ष को कुचलने का प्रयास किया। इससे जनता मंे आक्रोश फैल गया है। हालात ये हैं कि राष्ट्रपति यून सुक ने खुद को अपने आवास में कैद कर रखा है।
भारत का पड़ोसी देश भूटान बीते कुछ समय से बार-बार नई दिल्ली के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। भूटान के साथ भारत का रिश्ता बेहद खास है। दोनों मुल्क सदियों से भाईचारे के साथ रहते आ रहे हैं। लेकिन, बीते कुछ वर्षों में चीन की विस्तारवादी नीतियों की वजह से दोनों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। चीन की विस्तारवादी नीति से भूटान को बचाने की जिम्मेदारी भारत की है। बीते कुछ समय में भारत और चीन के रिश्तों में बदलाव का असर भूटान पर भी पड़ना लाजिमी है। ऐसे में भूटान के राजा और वहां के प्रधानमंत्री की बार-बार हो रही भारत यात्रा को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इस बीच नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चीन के दौर पर हैं। इस साल चौथी बार नेपाल के पीएम बने ओली की यह पहली विदेश यात्रा है। आमतौर पर नेपाल के पीएम अपना पहला विदेश दौरा भारत से करते आए हैं लेकिन ओली इस परंपरा को तोड़ते हुए बीजिंग पहुंच गए हैं। इस दौरे पर उन्होंने चीन के साथ कई बड़े समझौते किए हैं। इस कारण नेपाल और भूटान वाले इलाके में कुछ होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि सदियों से नेपाल और भूटान भारत के प्रभाव वाले क्षेत्र हैं लेकिन, चीन की विस्तारवादी नीति में नेपाल चीन की ओर झुकता चला जा रहा है। भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामगियेल वांगचुक 5 दिसम्बर को फिर नई दिल्ली पहुंच रहे हैं। अपनी इस यात्रा के दौरान वांगचुक पीएम नरेंद्र मोदी के साथ वार्ता करेंगे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी उनसे मुलाकात करेंगे। करीब 15 दिन पहले ही भूटान के प्रधानमंत्री तशेरिंग तोबगे नई दिल्ली आए थे। दरअसल, 1949 में भारत और भूटान के बीच हुए एक खास समझौते की वजह से पड़ोसी देश अपनी विदेश और रक्षा नीति में भारत से सलाह लिए बिना आगे नहीं बढ़ सकता है। इस बीच चीन भूटान के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहता है। अभी तक भूटान और चीन के बीच कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। चीन, भूटान के साथ जल्द से जल्द अपना सीमा विवाद भी सुलझाना चाहता है। इसको लेकर दोनों देशों के बीच कई दौर की वार्ता चुकी है लेकिन, इस पूरी कवायद में भारत की भूमिका काफी अहम है। चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद से सीधे तौर पर भारत प्रभावित होता है। सीमा पर कई ऐसी जगहें हैं जो ट्राईजंक्शन है। वहां तीनों देशों की सीमा लगती है। ऐसे में पूरा इलाका बेहद संवेदनशील हो जाता है।
उधर दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल ने टेलीविजन पर अपने संबोधन के दौरान देश में मार्शल लॉ की घोषणा की और उत्तर कोरिया समर्थक ताकतों को खत्म करने और संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा करने का संकल्प जताया। दक्षिण कोरिया में 3 दिसम्बर रात को अचानक से मार्शल लॉ लगने के बाद वहां के हालात तेजी से बदल गए। सियोल में नेशनल असेंबली के ऊपर सेना के हेलीकॉप्टर को उड़ते देखा गया। दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ लगने के बाद राजधानी सियोल में हर जगह सेना नजर आने लगी। सड़क से लेकर संसद तक को सेना ने अपने कंट्रोल में ले लिया। इसी के मद्देनजर नेशनल असेंबली के बाहर मिलिट्री पुलिस बाइक को देखा जा सकता है। विपक्ष पर संसद पर हावी होने, उत्तर कोरिया के साथ सहानुभूति रखने और देश विरोधी गतिविधियों के साथ सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया गया। जैसे ही राष्ट्रपति यून सुक येओल ने देश में इमरजेंसी मार्शल लॉ लगाने का ऐलान किया, वहां की जनता में आक्रोश फैल गया सैनिकों ने सियोल में स्थित दक्षिण कोरियाई संसद नेशनल असेंबली कैम्पस में घुसने की कोशिश की।
माना जाता है कि किम जोंग से डराकर तानाशाही के रास्ते पर दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति निकल चुके थे। मगर संसद के मजबूत इरादे के सामने उनकी दाल नहीं गली। इसके बाद राष्ट्रपति को फैसला पलटने के लिए झुकना पड़ा। राष्ट्र के नाम अपने विशेष संबोधन में राष्ट्रपति यून सुक येओल ने कहा, ‘कुछ देर पहले ही नेशनल असेंबली से आपातकाल हटाने की मांग की गई थी। हमने मार्शल लॉ के तहत तैनात सेना को वापस बुला लिया है। हम नेशनल असेंबली के अनुरोध को स्वीकार करते हैं और कैबिनेट की बैठक के जरिए मार्शल लॉ को हटाएंगे।’ इससे पहले दक्षिण कोरिया के सांसदों ने नेशनल असेंबली के आधी रात के सत्र में राष्ट्रपति के फैसले का विरोध करते हुए मार्शल लॉ लगाए जाने के खिलाफ सर्वसम्मति से वोट दिया था। साउथ कोरियाई संसद में भारी विरोध के बाद इसे अमान्य करार दिया गया। सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों दलों के 300 में से 190 सांसदों ने सर्वसम्मति से मार्शल लॉ को अस्वीकार करने के लिए मतदान किया। इसके बाद मार्शल लॉ को हटाना पड़ा। हालांकि, अपने इस कदम पर सफाई देते हुए राष्ट्रपति यून ने कहा कि यह फैसला देश विरोधी ताकतों को कुचलने के लिए लिया गया था। दक्षिण कोरिया में करीब पांच दशक बाद मार्शल लॉ लगाया गया था। आखिरी बार 1980 में ऐसा हुआ था। राजनेता और प्रदर्शनकारी नेशनल असेंबली (संसद) के बाहर जमा हो गए थे और उस समय लागू मार्शल लॉ की अवहेलना करते हुए नारेबाजी कर
रहे थे।
सुरक्षा बलों को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागने पड़े। देश की मुद्रा में भी गिरावट आई। यहां बताना जरूरी है कि दक्षिण कोरिया एशिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी है। (हिफी)

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