समुद्र की तरह लौटे फडणवीस

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की तीसरी बार शपथ लेने वाले देवेन्द्र फडणवीस सचमुच समुद्र की तरह ही लौटे हैं। उन्होंने दूसरी बार अपनी सरकार न बना पाने पर उद्धव ठाकरे को शायराना अंदाज में जवाब दिया था। देवेन्द्र फडणवीस ने कहा था-
मेरा पानी उतरता देख
मेरे किनारे पर घर बसा लेना
लेकिन याद रखना, मैं समंदर हूं
लौटकर वापस आऊंगा।
देवेन्द्र फडणवीस की ये पंक्तियां इसलिए भी याद आ गयीं क्योंकि निवर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता अजित पवार पर चुटकी लेते हुए कहा था कि अजित दादा को तो सुबह-शाम शपथ लेने की आदत है। गत 4 दिसम्बर को राज्यपाल को सरकार बनाने का दावा पेश करने और राज्यपाल से सरकार बनाने का निमंत्रण मिलने के बाद देवेन्द्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने संयुक्त रूप से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया था। उसी दौरान 5 दिसम्बर को शपथ ग्रहण का उल्लेख होने पर कहा गया था कि कौन-कौन शपथ लेगा, ये तो 5 दिसम्बर को ही पता चलेगा। इस पर अजित पवार ने कहा कि मैं तो शपथ लूंगा। इसी पर एकनाथ शिंदे ने चुटकी ली थी क्योंकि तब एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे के साथ थे और भाजपा ने अजित पवार के साथ उनके सभी विधायकों का समर्थन पत्र लेकर सबेरे तड़के सरकार बना ली थी। अजित पवार ने उस समय सबेरे उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी लेकिन बाद में शरद पवार ने बाजी पलट दी थी और तब अजित पवार ने शाम को मंत्री पद की शपथ ली थी। अब लगभग 2 वर्ष बाद ही 5 दिसम्बर को देवेन्द्र फडणवीस ने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है।
1970 में जन्मे देवेंद्र फडणवीस का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के प्रति बचपन से ही झुकाव था। यही वजह थी कि वह बचपन से ही शाखा में जाया करते थे। शाखा जाने की वजह उनके पिता जी गंगाधर राव फडणवीस थे, वो शुरू से ही आरएसएस और जनसंघ से जुड़े हुए थे। देवेंद्र फडणवीस 1992 में म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के कॉर्पोरेटर बने। इसके बाद 1992 से 97 तक और 1997 से 2001 तक उन्होंने ये ऑफिस संभाला। इस बीच 1997 में ही नागपुर से वो मेयर भी चुने गए। जब तक बतौर मेयर उनका कार्यकाल पूरा हुआ उस समय तक बीजेपी की राज्य इकाई में उनकी पहचान बन चुकी थी। सन् 2001 में उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था और 2010 में उन्हें महाराष्ट्र में बीजेपी का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया। तीन साल बाद ही 2013 में राज्य में पार्टी के मुखिया यानी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे।
देवेंद्र फडणवीस का पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से काफी पुराना कनेक्शन रहा है। देवेंद्र फडणवीस के दिवंगत पिता गंगाधरराव फडणवीस के अटल बिहारी वाजयेपी के साथ काफी अच्छे संबंध थे लेकिन अगर बात देवेंद्र फडणवीस और अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाकात की करें तो इसका श्रेय बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे प्रमोद महाजन को जाता है। उन्होंने पहली बार देवेंद्र फडणवीस को अटल बिहारी वाजपेयी से मिलाया था। उनकी यह पहली मुलाकात नागपुर में हुई थी। उस दौरान फडणवीस अटल बिहारी का ऑटोग्राफ चाहते थे। कुछ देर बाद फड़णवीस को वाजपेयी से मिलने का मौका मिला। उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ, जब अटल बिहारी वाजपेयी न सिर्फ उनसे गर्मजोशी से मिले बल्कि उनके काम के लिए उन्हें शाबाशी भी दी। ये वो समय था जब बीजेपी की कमान अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के हाथों में थी। इसी दौरान एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी तक ये खबर पहुंची की नागपुर वेस्ट से पार्टी के विधायक यानी देवेंद्र फडणवीस मॉडलिंग कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार देवेंद्र फडणवीस के दोस्त शैलेश जोगलेकर ने इस वाक्ये को याद करते हुए कहा था कि जब ये खबर अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंची तो उन्होंने देवेंद्र को दिल्ली मिलने बुलाया। जब देवेंद्र दिल्ली गए तो उनके साथ शैलेश भी गये। वाजपेयी ने उनका स्वागत करते हुए कहा कि आइये, आइये मॉडल जी। देवेंद्र फडणवीस पहले कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि देश के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी उनके आइडल रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी में देवेंद्र फडणवीस में जो सबसे ज्यादा अच्छा लगता था उनका नेतृत्व और मानवीय दृष्टिकोण। उनकी ये दो खूबियां ही देवेंद्र फडणवीस के दिलो-दिमाग पर छाई रहीं। देवेंद्र फडणवीस बचपन से ही अटल बिहारी वाजपेयी को देखकर राजनीति में अपने आपको उन जैसा ही बनाने की तैयार करते रहे हैं।
देवेंद्र फडणवीस का सियासी सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। इसी कड़ी में साल 2019 भी आता है। ये वही साल था जब देवेंद्र फडणवीस को आनन-फानन में विधानसभा में इस्तीफा देना पड़ा था। उनके इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने मिलकर नई सरकार का गठन किया था। उस दौरान देवेंद्र फडणवीस को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। हालांकि, इसके बाद उन्होंने विधानसभा में जो भाषण दिया था वो बेहद याद किया जाता है। अपने उस भाषण के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने शायराना अंदाज में कहा था कि मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर बसा लेना, मैं समंदर हूं लौटकर वापस आऊंगा। अब यही कोई दो साल बरस बीते होंगे, फडणवीस ने एक बार फिर महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी की है। उनकी इस वापसी ने बीजेपी को महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बना दिया है। देंवेंद्र फडणवीस ने इस चुनाव में जो दमखम दिखाया है, ये कुछ नया नहीं है। दरअसल, वह बचपन से ही ऐसा करते आ रहे हैं।
देवेंद्र फडणवीस शपथ ग्रहण से पहले सिद्धिविनायक मंदिर पहुंचे हैं। वहां पूजा-याचना की। उनके साथ और भी कई नेता मौजूद थे। इसके बाद वह मुंबा देवी के दर्शन करने पहुंचे। शाम साढ़े पांच बजे वह सीएम पद की शपथ ली। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने शपथ दिलाई।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस के शपथ ग्रहण समारोह में कई बड़ी हस्तियां शामिल हुईं। समारोह में शामिल होने वाले प्रमुख लोगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, साधु-संत, ‘लाडकी बहन’ योजना के 1,000 लाभार्थी, किसान लाभार्थी और उद्योग, मनोरंजन, शिक्षा और साहित्य जगत की जानी-मानी हस्तियां, बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी सहित सभी महायुती दलों के कार्यकर्ता शामिल थे।
इसके अलावा, 40,000 बीजेपी समर्थकों के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी। वहीं, विभिन्न धार्मिक समुदायों के नेताओं सहित 2,000 वीवीआईपी के लिए अलग से बैठने की व्यवस्था की गई थी।
14वीं विधानसभा का कार्यकाल बीते 26 नवंबर को ही समाप्त हो गया था। मगर पिछले 9 दिनों में सरकार गठन के लिए दावा पेश नहीं किया गया। 2019 के चुनाव के बाद भी यही स्थिति बनी थी जब शिवसेना और बीजेपी के बीच सीएम पद के लिए रस्साकशी लंबी चली थी। इसके बाद राज्य में उस समय के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी थी। इस बीच कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार और शिवसेना उद्धव गुट ने महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनने पर तंज कसना शुरू कर दिया था। शिव सेना नेता और वार्ली से हाल ही में विधायक चुने गए आदित्य ठाकरे ने कहा कि रिजल्ट आने के बाद भी लंबे समय तक सरकार नहीं बनाना महाराष्ट्र का अपमान है। बिना सरकार गठन का दावा किए कोई पार्टी शपथ ग्रहण की डेट का ऐलान कैसे कर सकती है? अगर यह स्थिति विपक्षी दलों के साथ होती तो अब तब राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका होता। (हिफी)