लेखक की कलम

भूपेश बघेल ने रचा इतिहास

भूपेश बघेल ने एक नया रिकार्ड बनाया

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जब दुर्दिनों का दौर झेल रही है, तब छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक नया रिकार्ड बनाया है। राज्य मंे पिछले दिनों विधानसभा का एक उपचुनाव हुआ था। इस पर कांग्रेस प्रत्याशी को विजयश्री हासिल हुई है। इससे पूर्व राज्य में कांग्रेस के 70 विधायक थे। अब उपचुनाव मंे जीत के बाद विधायकों की संख्या 71 हो गयी है। सन् 2000 मंे मध्य प्रदेश के हिस्से को अलग कर यह राज्य बना था। अब तक किसी भी पार्टी को इतने विधायक नहीं मिले हैं। सर्वप्रथम अजीत जोगी मुख्यमंत्री बनाये गये थे, तब भी राज्य मंे कांग्रेस के पास इतने विधायक नहीं थे। अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 2023 के विधानसभा चुनाव मंे भी इतने ही विधायक जिताने का दावा कर रहे हैं। उधर, भाजपा भी सत्ता छीनने की तैयारी मंे लगी है क्योंकि उसने रामन सिंह के नेतृत्व मंे लगातार दो बार वहां सरकार बनायी है।
छत्तीसगढ़ की खैरागढ़ विधानसभा से उपचुनाव जीतने वाली कांग्रेस की यशोदा वर्मा ने कांग्रेस के लिए नया इतिहास रचा है। यशोदा ने छत्तीसगढ़ी भाषा में शपथ लेने के बाद कहा कि मैं छत्तीसगढ़ की बेटी हूं इसलिए इसी भाषा में शपथ ले रही हूं। बता दें कि खैरागढ़ विधानसभा में हाल ही में हुए उपचुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी यशोदा वर्मा ने 20 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी। यशोदा वर्मा को मिलाकर अब कांग्रेस के पास कुल विधायकों की संख्या 71 हो गई है। यह पहली बार है जब छत्तीसगढ़ में किसी राजनीतिक दल के पास 71 विधायक रहे हों। इसको लेकर सीएम भूपेश बघेल ने भी खुशी जाहिर करते हुए हुंकार भरी है। भूपेश बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कोई भी पार्टी विधायकों की संख्या 71 तक नहीं पहुंचा पाई है फिर चाहे वो दलबदलू ही क्यों न रहे हों। साथ ही बघेल ने कहा कि 71 सीट जीत पाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस का 71 विधायकों का ही लक्ष्य होगा। बता दें कि साल 2000 में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश राज्य से अलग हुआ था। मप्र में 1998 में हुए चुनावों के बाद कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। मप्र में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद 2000 में छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद कांग्रेस नेता अजीत जोगी को सीएम बनाया गया था। साल 2003 में छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों पर पहली बार चुनाव हुए। इन चुनावों में अजीत जोगी को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में भाजपा ने कुल 50 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। कांग्रेस को इस चुनाव में 37 सीटों से ही संतु्ष्ट रहना पड़ा था। इसके साथ ही बीएसपी को दो सीटें और नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को एक सीट मिली थी। साल 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनावों में जीत के बाद डॉ. रमन सिंह छत्तीसगढ़ के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने।
छत्तीसगढ़ विधानसभा के दूसरे चुनावों में भी भाजपा का जलवा बरकरार रहा। यहां भाजपा ने 90 सीटों में से कुल 50 सीटें हासिल की। रमन सिंह को लगातार दूसरी बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई। इस चुनाव में कांग्रेस को 38 सीटें मिली थीं। भाजपा की जीत के बाद रमन सिंह लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री चुने गए।
साल 2013 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया और 49 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं कांग्रेस को इस चुनाव में कुल 38 सीटों पर जीत मिली थी। इसके साथ ही इस चुनाव में बीएसपी को एक सीट और एक निर्दलीय प्रत्याशी को भी जीत मिली थी। इस चुनाव में बीजेपी को 41.04 फीसदी और कांग्रेस को 40.29 फीसदी मत प्राप्त हुए थे। इन चुनावों में जीत के बाद रमन सिंह को लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया गया था। बता दें कि लगातार तीन बार भाजपा का शासन देख रही छत्तीसगढ़ की जनता ने साल 2018 के विधानभा चुनावों में कांग्रेस पर जमकर प्यार लुटाया। इस चुनाव में कांग्रेस को रिकॉर्ड तोड़ 68 सीटों पर जीत मिली। वहीं 15 सालों तक सत्ता संभालने वाली भाजपा मात्र 15 सीटों पर ही सिमट गई थी। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के खाते में 5 और बहुजन समाज पार्टी के खाते में 2 सीटें आईं थीं।
इसीलिए जब कांग्रेस की यशोदा वर्मा ने शपथ ली और कांग्रेस में 71वीं विधायक बनीं तो जश्न जैसा माहौल था। इस मौके पर सीएम बघेल उत्साह से भरे नजर आए। बघेल ने कहा कि यह पहली बार है कि छत्तीसगढ़ में किसी राजनीतिक दल के 71 विधायक रहे हों। दल-बदलुओं की गिनती भी की जाए तब भी यह आंकड़ा नहीं मिलता। साथ ही बघेल ने कहा कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों में हमारा 71 सीटें जीतने का ही लक्ष्य होगा। छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं।
छत्तीसगढ़ में साल 2018 में बीजेपी को विधानसभा चुनाव में करारी हार हुई थी और बीजेपी 15 सालों बाद विपक्ष में आई थी क्योंकि बीजेपी राज्य गठन के साथ ही बतौर विपक्ष की भूमिका में 3 सालों तक थी। राजनीतिक गलियारों में इस बात की उम्मीद थी कि बीजेपी एक सशक्त भूमिका में नजर आएगी। मगर समय के साथ चुनाव-दर-चुनाव बीजेपी और अधिक कमजोर होती गई। साल 2018 के बाद अब तक हुए कुल चार उपचुनावों में बीजेपी को हार झेलनी पड़ी। इतना ही नहीं नगरीय निकाय चुनावों में भी बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया। इस बीच प्रदेश प्रभारी बदल दिया गया, मगर चुनावी परिणाम में कोई बदलाव नहीं हो सका। अब खैरागढ़ की हार के बाद बीजेपी आला कमान ने छत्तीसगढ़ के नेताओं को दिल्ली तलब किया है। पार्टी के महामंत्री बीएल संतोष सीधे इन से चर्चा कर वजह और संभावना तलाशने में जुटे हुए हैं। राजनीति के जानकारों की मानें तो वैसे तो यह बैठक अगले साल होने वाले चुनावी राज्यों की है। मगर छत्तीसगढ़ के प्रति आला कमान की नाराजगी तय है और माना जा रहा है कि कुछ बड़ा निर्णय लिया जा सकता है। दिल्ली में मंथन और फेरबदल के सवाल पर पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने दो टूक कहा कि संगठन के स्वरूप को लेकर निर्णय में स्थानीय नेताओं की भूमिका नहीं होती। छत्तीसगढ़ में हार से हाहाकार और दिल्ली में मंथन-चिंतन के विषय पर कांग्रेस ने बीजेपी पर तंज कसा है। कांग्रेस की ओर से संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि बीजेपी दिल्ली ही नहीं रायपुर में भी बैठक कर लें। मगर उसका लाभ कुछ नहीं हो पाएगा। बीजेपी का भविष्य फिलहाल छत्तीसगढ़ में दिखाई नहीं दे रहा है। यह बात सच हैं कि लगातार मिल रही हार से छत्तीसगढ़ बीजेपी में हाहाकार मचा हुआ है। मगर हाहाकार के इतर मंथन-चिंतन का परिणाम क्या होगा यह तो वक्त की गर्त में छिपा है। मगर फिलहाल इतना तो तय हैं कि इस बार भाजपा और कांग्रेस मंे कड़ा मुकाबला होगा। (हिफी)

 

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