लेखक की कलम

मुकेश और एलन मस्क में विवाद

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
दुनिया के सबसे धनी लोगों में एक एलन मस्क को अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विशेष दायित्व सौंपा है। भारत में भी एलन मस्क ने बड़े स्तर पर निवेश करने की इच्छा जताई है। यह निवेश सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के लिए होगा। भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को लेकर एलन मस्क की स्टारलिंक और मुकेश अंबानी की रिलायंस जिओ के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। रिलायंस जिओ ने पिछले दिनों भारत के दूरसंचार नियामक (ट्राई) पर दबाव डाला कि वह सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी न करके उसे केवल आवंटित करने की अपनी योजना पर पुनर्विचार करे। भारत के दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले महीने कहा था कि सरकार वैश्विक रुझानों के अनुरूप प्रशासनिक रूप से स्पेक्ट्रम आवंटित करेगी, लेकिन स्पेक्ट्रम कैसे दिया जाएगा, इस पर अंतिम अधिसूचना दूरसंचार नियामक (ट्राई) द्वारा अपनी प्रतिक्रिया दिए जाने के बाद आएगी। एलन मस्क की स्टारलिंक ने अफ्रीका में सफल प्रक्षेपण के बाद भारत में प्रक्षेपण में रुचि व्यक्त की है, जहां स्थानीय कंपनियां कम ब्रॉडबैंड कीमतों से परेशान थीं और उन्होंने स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए सरकार के दृष्टिकोण का समर्थन किया है। मस्क ने जियो के पत्र का जवाब एक्स पर एक पोस्ट के माध्यम से दिया, जिसके वे स्वयं मालिक हैं, जिसमें उन्होंने कहा कि मैं फोन करूंगा और पूछूंगा कि क्या स्टारलिंक को भारत के लोगों को इंटरनेट सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति देना बहुत बड़ी समस्या नहीं होगी।
रिलायंस के शीर्ष नीति कार्यकारी रवि गांधी ने गत 8 नवंबर को दूरसंचार नियामक ट्राई से इस निर्णय की समीक्षा करने का आग्रह किया। उन्होंने ट्राई द्वारा आयोजित एक खुली चर्चा में कहा कि प्रशासनिक रूप से स्पेक्ट्रम आवंटित करने का कदम किसी भी प्रकार के सरकारी संसाधन आवंटित करने का सबसे भेदभावपूर्ण तरीका है।दूसरी ओर, स्टारलिंक इंडिया के कार्यकारी परनील उर्ध्वारशे ने कहा कि भारत की आवंटन योजना भविष्य की ओर देखने वाली है। अरबपति मुकेश अंबानी भारत की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी रिलायंस जिओ चलाते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि स्पेक्ट्रम नीलामी, जिसके लिए बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होगी, संभवतः विदेशी प्रतिद्वंद्वियों को रोक देगी। आने वाले सप्ताहों में तैयार की जाने वाली ट्राई की सिफारिशें, उपग्रह स्पेक्ट्रम के वितरण के भविष्य की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण होंगी। मुकेश अंबानी की रिलायंस, जिसने वर्षों से भारत के दूरसंचार क्षेत्र पर अपना दबदबा कायम कर रखा है, अब उसे चिंता है कि एयरवेव (स्पेक्ट्रम) नीलामी में 19 बिलियन डॉलर खर्च करने के बाद वह मस्क के हाथों ब्रॉडबैंड ग्राहकों को खो सकती है। इसके साथ ही जियो को यह डर भी है कि बाद में प्रौद्योगिकी के विकास के साथ डेटा और वॉयस क्लाइंट भी कंपनी से बाहर हो जाएंगे।
बता दें कि भारत में उपग्रह सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम देने की पद्धति अरबपतियों के बीच विवाद का विषय रही है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला बहुत चर्चा में रहा था। तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ने प्रथम आगत प्रथम स्वागत के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया। स्पेक्ट्रम के बड़े कारोबारी आपत्ति उठाने लगे और जमकर राजनीति हुई। कई नेता और अफसर इस मामले में जेल भी गये थे । कोर्ट के आदेश पर आवंटन रद्द कर दिया गया था।
अब दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक एलन मस्क ने उपग्रहों का उपयोग करके वायरलेस संचार में इस्तेमाल होने वाले स्पेक्ट्रम के आवंटन को लेकर भारतीय अरबपति मुकेश अंबानी और सुनील भारती मित्तल पर निशाना साधा है और ऐसे एयरवेव्स की नीलामी की उनकी मांग को ‘अभूतपूर्व’ बताया है। अंबानी की रिलायंस जिओ , जहां नीलामी के जरिए ऐसे स्पेक्ट्रम के आवंटन की जरूरत पर जोर देती रही है, ताकि उन पुराने ऑपरेटरों को समान अवसर मिल सके, जो एयरवेव खरीदते हैं और टेलीकॉम टावर जैसे बुनियादी ढांचे की स्थापना करते हैं, वहीं मित्तल ने ऐसे आवंटन के लिए बोली लगाने की जरूरत पर जोर दिया।
मस्क की अगुआई वाली स्टारलिंक वैश्विक रुझान के अनुरूप लाइसेंसों के प्रशासनिक आवंटन की मांग कर रही है क्योंकि वह दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते मोबाइल टेलीफोनी और इंटरनेट बाजार में अपनी पैठ बनाना चाहती है। इसका दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी समर्थन किया है, जिन्होंने कहा कि इस तरह के एयरवेव प्रशासनिक आवंटन के जरिए दिए जाएंगे, न कि नीलामी के जरिए। सिंधिया ने कहा कि दिसंबर में पारित दूरसंचार अधिनियम 2023 ने इस मामले को श्अनुसूची 1श् में डाल दिया है, जिसका अर्थ है कि सैटकॉम के लिए स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक रूप से किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि स्पेक्ट्रम बिना किसी कीमत के आता है। वह कीमत क्या होगी और उस कीमत का फॉर्मूला क्या होगा, यह आप या मैं तय नहीं करेंगे…यह ट्राई तय करेगा… और ट्राई ने एक पेपर पहले ही प्रसारित कर दिया है। हमारे पास दूरसंचार के लिए एक नियामक प्राधिकरण है और उस दूरसंचार नियामक प्राधिकरण को संविधान द्वारा यह तय करने का अधिकार दिया गया है कि प्रशासनिक मूल्य निर्धारण क्या होगा। मंत्री ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि ट्राई सर्वोत्तम मूल्य निर्धारण लेकर आएगा, जिसे अपनाया जाना चाहिए, बशर्ते कि यह प्रशासनिक तरीके से दिया जाए। मंत्री ने कहा कि दुनिया भर में उपग्रह स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक रूप से किया जाता है। इसलिए भारत बाकी दुनिया से कुछ अलग नहीं कर रहा है। इसके विपरीत, यदि आप इसकी नीलामी करने का निर्णय लेते हैं, तो आप कुछ ऐसा करेंगे, जो बाकी दुनिया से अलग होगा।
सिंधिया कहते हैं कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम एक साझा एयरवेव है। यदि स्पेक्ट्रम साझा किया जाता है तो आप इसे अलग-अलग कैसे मूल्य दे सकते हैं। मस्क ने पहले पिछले हफ्ते जिओ द्वारा सैटेलाइट ब्रॉडबैंड को आवंटित करने और नीलामी न करने पर सेक्टर नियामक ट्राई के परामर्श पत्र को खारिज करने की मांग को अभूतपूर्व बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में मित्तल ने बोली लगाने का रास्ता अपनाने का समर्थन किया, तो उन्होंने पूछा कि क्या स्टारलिंक को भारत में इंटरनेट सेवाएं प्रदान करने की अनुमति देना बहुत अधिक परेशानी है। यह शायद पहली बार है कि मस्क, जिनकी कुल संपत्ति 241 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो अंबानी, मित्तल और गौतम अडानी की संयुक्त संपत्ति से भी अधिक है, उन्होंने भारतीय कंपनियों द्वारा की गई समान अवसर की मांग के खिलाफ सीधे तौर पर बात की है।
भारत की दूसरी सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल के प्रमुख मित्तल ने इंडिया मोबाइल सम्मेलन में कहा था कि मौजूदा दूरसंचार कंपनियां उपग्रह सेवाओं को सुदूर क्षेत्रों तक ले जाएंगी। वे सैटेलाइट कंपनियां, जिनकी महत्वाकांक्षा शहरी क्षेत्रों में आकर खुदरा ग्राहकों को सेवा प्रदान करने की है, उन्हें भी बाकी सभी की तरह दूरसंचार लाइसेंस के लिए भुगतान करना होगा। वे भी समान शर्तों से बंधी हैं। सरकार को देश के उद्यमियों की बात पर गौर करना चाहिए। (हिफी)

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