लेखक की कलम

राजनीति में सब कुछ जायज मानते गडकरी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
नितिन गडकरी एक ऐसा नाम है जिसकी चर्चा भाजपा और उसके विरोधी दलों मंे भी होती रहती है। वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं और उसके बाद लगातार केन्द्र सरकार मंे परिवहन विभाग का दायित्व संभाले हुए हैं। भूतल परिवहन अर्थात नेशनल हाइवे और एक्सप्रेस-वे का जाल देश भर मंे बिछाने का श्रेय गडकरी को ही प्राप्त है। नरेन्द्र मोदी की सरकार अपनी जिन प्रमुख उपलब्धियों को जनता के सामने रखती है, उनमें देश की सड़कें और पुल भी शामिल हैं। गडकरी एक ऐसे नेता हैं जिन पर भ्रष्टाचार को लेकर किसी ने कभी भी उंगली नहीं उठाई। वह महाराष्ट्र से सांसद हैं तो वहां राज्य विधानसभा के चुनाव मंे स्टार प्रचारक की हैसियत से प्रचार भी कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्हांेने एक समाचार चैनल को साक्षात्कार देते हुए कहा कि प्यार और राजनीति मंे सब कुछ जायज है। नितिन गडकरी की इस बात पर राजनीतिक गलियारों मंे चर्चा भी हो रही है। साफ-सुथरी राजनीति के समर्थक नितिन गडकरी अब राजनीति में सब कुछ जायज होने की बात क्यों कह रहे हैं। दरअसल कोई राजनीतिक दल जिस चीज का विरोध करता है और बाद मंे उसी पर आचरण करने लगता है तो लोगों की उंगलियां उठने लगती हैं। महाराष्ट्र मंे भाजपा के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। राज्य मंे शिवसेना से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं। शिवसेना के साथ ही शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) मंे भी अजीत पवार ने बगावत करके भाजपा के साथ समझौता किया है। उन्हांेने नवाब मलिक को प्रत्याशी बनाया है जिन पर दाऊद इब्राहिम से संबंध होने का आरोप भाजपा स्वयं लगा चुकी है। ऐसे ही कुछ कारण हैं जिनके चलते नितिन गडकरी को कहना पड़ा कि राजनीति में भी सब कुछ जायज है। सवाल यह भी उठता है कि जब सब कुछ जायज है तो दूसरे दलों के नेताओं पर पाकिस्तान परस्त और चीन परस्त होने का आरोप क्यों लगाया जाता है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने महायुति की जीत का विश्वास जताया है। साथ ही पार्टी तोड़ने के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि शरद पवार ने अपने समय में ऐसा किया था। उन्होंने कहा कि कहते हैं कि प्यार और राजनीति में सब कुछ जायज है। कभी-कभी इन बातों से फायदा होता है तो कभी रिएक्शन भी होता है। शिवसेना और राकांपा के टूटने और भाजपा पर जोड़तोड़ के आरोपों पर गडकरी कहते हैं शरद पवार महाराष्ट्र में बहुत कद्दावर नेता हैं। जब वह मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने हर पार्टी को तोड़ा। राजनीति में यह अक्सर होता है। यह सही है या गलत यह अलग बात है, लेकिन राजनीति में कहते हैं कि एवरीथिंग फेयर इन लव एंड पॉलिटिक्स।
उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव को लेकर कहा, पिछले चुनाव में यह गलत प्रचार किया गया था कि हमारी सरकार आएगी तो बाबा साहेब का संविधान बदल देगी, बाद में यह झूठा प्रचार निकला। ना हम संविधान बदलने वाले हैं, ना बदलने का इरादा है, ना हम किसी को बदलने देंगे। गडकरी कांग्रेस पर भी जमकर बरसे और आपातकाल को याद दिलाते हुए कहा कि इंदिरा गांधी जब चुनाव हार गई थीं तो खुद के स्वार्थ के लिए कांग्रेस ने संविधान को तोड़ा-मरोड़ा। बाद में जनता पार्टी ने इसे रद्द किया। उन्होंने कहा कि अगर किसी ने संविधान के साथ छेड़छाड़ की है तो वो कांग्रेस पार्टी है। उन्होंने कहा कि जब कंविंस नहीं किया जाता है तो कंफ्यूज करने की कोशिश की जाती है। अब लोगों के सामने मुद्दा साफ हुआ है। गलतफहमी दूर हुई है। लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग थे। इस वक्त निश्चित रूप से हमें यहां पर बढ़त है।
गडकरी ने आरोप लगाया, ष्लोकसभा में जिस तरह का कांग्रेस ने प्रचार किया और मुसलमानों के मन में वोट बैंक पॉलिटिक्स के लिए भय पैदा किया। दलित समाज और आदिवासी समाज में संविधान को लेकर गलतफहमी पैदा की गई। आदिवासी समाज को कहा गया कि आपका आरक्षण कम कर दिया जाएगा। यह प्रचार जिस तरह से हुआ, उसके कारण हमें तकलीफ हुई। हालांकि चुनाव के बाद यह सिद्ध हो गया है कि ऐसी कोई बात नहीं है, प्रचार झूठा था। निश्चित रूप से हमें जनता का विश्वास मिलेगा, यह मेरा विश्वास है। केंद्रीय मंत्री ने भाजपा और शिवसेना के पुराने गठबंधन को याद करते हुए कहा, बालासाहेब ठाकरे जब थे, तब पहली बार हिंदुत्व के विचारों के लिए गठबंधन हुआ था। वो कोई सत्ता के लिए गठबंधन नहीं था। बालासाहेब का अपना एक स्वभाव था। उनका नेतृत्व था। मैं उन भाग्यवान लोगों में से हूं, जिस पर बालासाहेब का बहुत प्रेम था। वह मुझे गडकरी की जगह रोडकरी कहते थे। बालासाहेब से खुली चर्चा होती थी।ष्
उन्होंने कहा, हिंदुत्व के लिए बना गठबंधन नहीं टूटता तो उसमें महाराष्ट्र और महाराष्ट्र के मराठी लोगों का हित था। दुर्भाग्यवश विवाद हुआ और गठबंधन टिक नहीं पाया। उस वक्त जो नेचुरल अलायंस था वो भाजपा और शिवसेना का था क्योंकि हिंदुत्व का विचार लेकर शिवसेना और भाजपा दोनों चले थे। साथ ही उन्होंने सवाल किया कि आज जिन पार्टियों के साथ उद्धव ठाकरे काम कर रहे हैं, वो पार्टियां कहां हिंदुत्ववादी हैं?
गडकरी कहते हैं राजनीति दो तरह की है। पॉलिटिक्स ऑफ कन्वीनियंस (सुविधा की राजनीति) और पॉलिटिक्स ऑफ कनविक्शन (विश्वास की राजनीति)। मैं पॉलिटिक्स ऑफ कनविक्शन का विद्यार्थी हूं। उन्होंने कहा कि अब पॉलिटिक्स ऑफ कन्वीनियंस धीरे-धीरे हावी हो रहा है। हर आदमी एमएलए बनना चाहता है, हर आदमी मंत्री बनना चाहता है। इसके कारण विचारधारा की राजनीति में कमी आई है। इसमें लोकतंत्र का नुकसान है। इसलिए हमें विचारों के आधार पर राजनीति को मजबूत करना होगा, उसी से लोकतंत्र मजबूत होगा। इसके साथ ही गडकरी ने असली शिवसेना के सवाल पर कहा कि राजनीति में अनेक सवालों के जवाब चुनावों से मिलते हैं, अब चुनाव हो रहा है। उन्होंने कांग्रेस का उदाहरण देते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी जब टूटी तो इंदिरा गांधी ने नई पार्टी तैयार की। उन्होंने कहा कि जनता की अदालत में सब बातों के फैसले होते हैं और उनमें कुछ पार्टियां खत्म हो जाती हैं। कुछ पार्टियां आगे जाती हैं। मराठा आंदोलन के सवाल पर गडकरी कहते हैं महाराष्ट्र की जो राजनीतिक परिस्थितियां हैं, सबसे बड़े दुख की बात है कि जातिवादी माहौल ने उसे खराब किया है। पिछड़ापन एक राजनीतिक हित बनता जा रहा है। मैं किसी जाति को आरक्षण देने के विरोध में नहीं हूं। मैं यह मानता हूं कि कोई भी व्यक्ति जात, पंथ, धर्म, भाषा से बड़ा नहीं होता है, अपने गुणों से बड़ा होता है। जिस भाव में गैस का सिलेंडर एक मुसलमान को मिलता है, उसी भाव से हिंदू को भी मिलता है। अब दुर्भाग्य यह है कि आरक्षण की भी एक मर्यादा है। यह बहुत ही तेजी से बढ़ा है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज, बाबासाहेब अंबेडकर, महात्मा ज्योतिबा फुले, साहू महाराज इनके वैचारिक अधिष्ठान महाराष्ट्र में हैं। इसलिए जातिवाद मुक्त सुदृढ लोकतंत्र का विचार महाराष्ट्र ने पूरे देश को दिया है। इस समय जाति का उपयोग करके समाज को तोड़ने की कोशिश बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे लगता है कि महाराष्ट्र के सभी नेताओं को मिलकर एक बार महाराष्ट्र को इन महापुरुषों की दिशा में जाना होगा। (हिफी)

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