अवैध धर्मांतरण मामले में अदालत का हंटर!

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
उत्तर प्रदेश में एनआईए एटीएस के स्पेशल कोर्ट ने अवैध धर्मांतरण मामले में 16 आरोपियों को सुनायी गई सजा अपने आप में एक उदाहरण पेश किया है, क्योंकि उम्मीद की जा सकती है कि इससे जबरन धर्मपरिवर्तन कराने वालों के दिलों में दहशत पैदा होगा। पूरे देश में जिस प्रकार से प्रलोभन देकर, बहला-फुसलाकर अथवा ब्रेनवॉश कर धर्म परिवर्तन की साजिश चल रही है, उसको रोकने के लिए इसी प्रकार की प्रभावी अदालती फैसले की जरूरत है, ताकि अवैध धर्म परिवर्तन कराने वाले ऐसा अनैतिक कृत्य करने से पहले सौ बार सोचे। अगर कोई अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करता है, तो इसमें कोई बुराई नहीं है, क्योंकि अपने देश में धार्मिक आजादी है और हर व्यक्ति को अपने अंतःकरण की स्वतंत्रता है, लेकिन उसका उपयोग दूसरे धर्म के लोगों के धर्म परिवर्तन के लिये किया जाना अनुचित है। हाल के दिनों में देश के आदिवासी बहुल राज्यों छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड सहित बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी धर्मांतरण के मामलों में तेजी आने की बात कही जाती रही है। धन का प्रलोभन देकर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं। कहा जा रहा है कि हाल के वर्षों में धर्म विशेष की गतिविधियों में अप्रत्याशित तेजी आई है। कुछ समय में बड़ी संख्या में उपासना स्थल बनाये गये हैं, जिसके चलते पिछले पांच वर्षों में राज्य के कई जनपदों में सामाजिक संरचना में बदलाव देखने की बात कही जा रही है। यह बदलाव पिछड़े व वंचित वर्गों में ज्यादा देखा जा रहा है। दूसरे धर्म के लोगों का धर्म परिवर्तन किया जाना अनुचित ही है। आरोप है कि अंधविश्वास, अज्ञानता, डर, लालच को अस्त्र बनाकर यह धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। कुछ इलाकों में महज अनाज देकर ही धर्म परिवर्तन करने की बात सामने आ चुकी है। कुछ लोगों को जीवन की रोजमर्रा की मुश्किलों का समाधान धर्म परिवर्तन में बताया जा रहा है। निस्संदेह, किसी की विवशता का लाभ उठाकर धर्म परिवर्तन कराना अनैतिक कृत्य ही कहा जायेगा। इनसे अलग सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि पूरे देश में साजिश के तहत इस कार्य का अंजाम दिया जा रहा है। एनआईए एटीएस के स्पेशल कोर्ट ने जिन लोगों को सजा सुनायी है, ये आरोपी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गिरोह बनाया था।
दरअसल तेहपुर में गिरोह बनाकर अवैध धर्मांतरण के मामले में मौलाना उमर गौतम, मौलाना कलीम सिद्दीकी समेत 16 को सजा सुनायी गयी है। 12 लोगों को उम्रकैद और 4 दोपियों को 10-10 साल की सजा सुनाई है। धर्मांतरण कानून लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार दोषियों को सजा हुई है। दरअसल 2021 में फतेहपुर की शिक्षिका कल्पना सिंह ने मौलाना उमर गौतम पर बच्चों का अवैध रूप से धर्मातरण करने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसके बाद एटीएस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए देश भर से गिरफ्तारियां की थी, जिसमें मास्टरमाइंड उमर गौतम भी शामिल था। मौलाना उमर गौतम मूल रूप से यूपी के फतेहपुर का रहने वाला है, जिसका 1964 में हिंदू राजपूत परिवार में जन्म हुआ था। तब उसका नाम श्याम प्रताप सिंह गौतम हुआ करता था। नैनीताल में पढ़ाई के दौरान उसकी मुलाकात बिजनौर जिले के नासिर खान से हुई थी। नासिर की इस्लामिक किताबें पढ़ने के बाद श्याम ने 1984 में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। गौतम ने पढ़ाई खत्म करने के बाद देश दुनिया में इस्लाम पर व्याख्यान देना शुरू किया। इतना ही नहीं अपनी हिन्दू से मुस्लमान बनने की कहानी सुनाकर वह लोगों को भी इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए कहने लगा। एनआईए कोर्ट के विशेष जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी की अदालत ने अवैध धर्मांतरण के सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा मुकर्रर की।
अदालत ने मौलाना कलीम सिद्दीकी, उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर आलम सहित सभी दोषियोंजिस मौलाना कलीम सिद्दीकी को उम्रकैद की सजा दी गई है, वह यूपी के मुजफ्फरनगर के फुलत गांव का रहने वाला है। इसने मेरठ कॉलेज से बीएससी किया फिर दिल्ली के एक मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया। पर बीच में ही डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़ दी और इस्लामिक मजहबी गतिविधियों में शामिल होकर बतौर मौलाना दिल्ली के शाहीन बाग में रहने लगा। अपने पैतृक गांव में इसने एक मदरसा बनवाया जिसे बाद में केरल की संस्था को सौंप दिया। ये ग्लोबल पीस फाउंडेशन चलाता था। वहीं से ये मौलाना उमर गौतम के संपर्क से देश भर में अवैध धर्मांतरण का रैकेट चलाने का कसूरवार करार दिया गया। इन्हें आईपीसी की धारा 417, 120बी, 153ए, 153बी, 295ए, 121ए, 123 व अवैध धर्मांतरण की धारा 3, 4, व 5 के तहत दोषी करार दिया गया। फैसला सुनाए जाने के दौरान सभी दोषी अदालत में मौजूद थे।
आपको बता दें कि जून, 2021 में नोएडा स्थित डेफ सोसाइटी स्कूल के बाहर कुछ अभिभावकों ने हंगामा किया, आरोप था कि उनके बच्चों का बिना उनकी जानकारी के धर्मपरिवर्तन कराया गया है। इसके बाद नोएडा पुलिस हरकत में आई। शुरुआती पड़ताल में ही धर्म परिवर्तन के शातिर नेटवर्क की जानकारी उजागर हुई। विदेशी फंडिंग की बात भी सामने आई। पूरा मामला जब शासन के संज्ञान में आया तब एटीएस की टीमों को भी सक्रिय किया गया। मोहम्मद उमर गौतम को मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी के साथ 20 जून 2021 को दिल्ली के जामिया नगर से गिरफ्तार किया गया। इनसे पूछताछ में पता चला कि ये लोग धर्मांतरण का बड़ा सिंडिकेट संचालित करते हैं और इसके लिए विदेशों से हवाला के जरिये फंडिंग की जाती है। एटीएस ने लखनऊ में एफआईआर दर्ज कराके शिकंजा कसना शुरू किया।
एटीएस को जांच में पता चला कि बहरीन से अवैध रूप से 1.5 करोड़ रुपए और अन्य खाड़ी देशों से 3 करोड़ रुपए का फंड आया। कलीम ने इस्लामिक दावाह सेंटर में धर्मांतरण गतिविधियों में उमर और मुफ्ती काजी की मदद की। ये लोग एक हजार से अधिक लोगों का धर्म परिवर्तन करवा चुके थे। मौलाना कलीम वलीउल्लाह नाम से एक ट्रस्ट भी ऑपरेट करता था, जो दिखावे के तौर पर सामाजिक सद्भाव के नाम पर कार्यक्रम चलाता था। पर हकीकत में इसकी आड़ में धर्मांतरण कराया जाता था। संस्था के बैंक खातों और अन्य माध्यमों से भारी मात्रा में रकम जमा कराई जाती थी। ईडी ने भी एटीएस केस के आधार पर मोहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर कासमी और इस्लामिक दावाह सेंटर के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत मामला दर्ज किया था।धीरे-धीरे उसने इस्लामिक दावा सेंटर का गठन किया, जो दिल्ली के जामिया नगर के बटला हाउस इलाके की नूह मस्जिद के पास है। इस सेंटर के जरिए वो दूसरे धर्म के लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए प्रेरित करने का काम करने लगा। स्कूल की शिक्षका ने मौलाना उमर गौतम के खिलाफ धर्म परिवर्तन करवाने के मामले में मुकदमा दर्ज कराया था, जिसके बाद यूपी एटीएस ने इस मामले में अपनी जांच शुरू करते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया था। सरकार के अनुसार सरगना ने अपने गिरोह के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर एक सिंडिकेट बनाया और जनसंख्या संतुलन बिगाड़ने के लिए भारी संख्या में लोगों को लालच देकर उनके मूल धर्म के लिए भ्रम, घृणा और भय पैदा करके धर्म परिवर्तन किया गया है। आरोपियों ने धर्म परिवर्तित लोगों में मूल धर्म के लिए विद्वेष पैदा किया, जिसकी वजह से भाईचारे को बिगाड़ा, जिससे देश को अखंडता और एकता को बिगाड़ने वाली है। कोर्ट को बताया गया कि आरोपियो ने अपने इस अवैध कार्य के लिए इस्लामिक दवाह सेंटर के अलावा डेफ सोसायटी को केंद्र बनाकर पूरे भारत में जाल बिछाया, जिसमें विदेशों में बैठे आरोपियों के सहयोगियों ने हवाला के के जरिये भारी धन की व्यवस्था की। आरोपियों के पास से पासपोर्ट, मोहर, साहित्य, धर्म और नाम बदलने वाले पुरुष, महिला व बच्चों की सूची, मोबाइल, लाइसेंस, पहचान पत्र, आधार, पैन, मैरिज सर्टिफिकेट और कंवर्जन रजिस्टर बरामद हुआ था। इससे समझना मुश्किल नहीं है कि देश में कितने व्यापक स्तर पर धर्मांतरण की साजिश चल रही है। अमेरिका से चल रही जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट के दावे के अनुसार देश में हर साल करीब 24 लाख लोगों को ईसाई बनाया जा रहा है। कई गांवों में नए चर्च बन गए हैं, इसके तहत देश में 2,272 जातियों के वर्ग बनाए गए हैं। हर वर्ग का एक एजेंट नियुक्त किया है। ये पूरे देश में फैला है। वेबसाइट का दावा है कि भारत की आबादी 143 करोड़ है और वे 6 करोड़ लोगों तक पहुंच चुके हैं। इसमें धर्मांतरण का प्रति वर्ष रेट 3.9 प्रतिशत है। माना जा रहा है कि अभी भी देश में धर्मांतरण का जाल फैला हुआ है और इसको नियंत्रण करना जरूरी है ताकि अवैध धर्मातरण को रोका जा सकें। (हिफी)