लेखक की कलम

ममता को झटके के साथ थोड़ी राहत

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
विपक्षी दलों के गठबंधन मंे तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब नेतृत्व का दावा कर रही हैं, तब उन पर शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती मंे घोटाले का आरोप लगा है। ममता बनर्जी की सरकार ने 25753 शिक्षक और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति 2016 में की थी। इन नियुक्तियों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा। कलकत्ता हाईकोर्ट ने ममता सरकार के खिलाफ फैसला सुनाते हुए इन नियुक्तियों को अवैध ठहराया। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन और भत्ते वापस करने पड़ेंगे। अगर ऐसा होता तो ममता बनर्जी सरकार की बहुत फजीहत होती और भर्ती किये गये शिक्षक व कर्मचारी नाराज भी होते। इसलिए सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट मंे पहुंचाया। सरकार की याचिका के अलावा 123 अन्य याचिकाएं भी इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी थीं। सुप्रीम कोर्ट ने ममता बनर्जी सरकार को झटका तो दिया है लेकिन थोड़ी राहत भी दे दी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट का यह फैसला बिल्कुल सही है कि शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्तियां अवैध हैं लेकिन उनसे वेतन और भत्ता वापस लेना ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि तीन महीने के भीतर चयन प्रक्रिया को पूरा किया जाए। इस प्रकार ममता सरकार को ही चयन करने का अधिकार भी मिल गया है। हालांकि राज्यपाल से विवाद भी ममता को परेशान करता है।
पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले मामले में ममता सरकार को बड़ा झटका लगा है। राज्य में 25,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में ये फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला 25 हजार शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों को लेकर आया है। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक भर्ती मामले में न सिर्फ अपना फैसला सुनाया बल्कि इस भर्ती को दूषित भी करार दिया। करीब 25 हजार शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों की नौकरी रद्द करने के कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी साल 2016 की इन नियुक्तियों को भ्रष्टाचार के चलते कलकत्ता हाई कोर्ट ने रद्द किया था। इसके साथ ही इन शिक्षकों को वेतन ब्याज समेत लौटाने को कहा था। पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका के अलावा 123 दूसरी याचिकाओं पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की है। पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला एक बड़ा विवाद है, जो शिक्षक भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है। यह मामला भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और नियुक्तियों में अनियमितताओं के आरोपों के कारण सुर्खियों में आया। सुप्रीम कोर्ट ने 25,753 शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कोअमान्य करार देते हुए उनकी चयन प्रक्रिया को ‘‘त्रुटिपूर्ण’’ करार दिया।
सीजेआई संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने नियुक्तियों को रद्द करने संबंधी कलकत्ता उच्च न्यायालय के 22 अप्रैल 2024 के फैसले को बरकरार रखा। फैसला सुनाते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जिन कर्मचारियों की नियुक्तियां रद्द की गई हैं, उन्हें अपना वेतन और अन्य भत्ते वापस करने की जरूरत नहीं है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नए सिरे से चयन प्रक्रिया शुरू करने और इसे तीन महीने के भीतर पूरा करने का भी आदेश दिया। हालांकि, न्यायालय ने दिव्यांग कर्मचारियों को मानवीय आधार पर छूट देते हुए कहा कि वे नौकरी में बने रहेंगे।
पिछले साल 7 मई को सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी रद्द करने के कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। हालांकि, कोर्ट ने सीबीआई को जांच जारी रखने के लिए कहा था। सीजेआई ने कहा कि चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता खत्म हो गई है, हमने हाईकोर्ट के आदेश में कुछ संशोधन किया है। हमें हाईकोर्ट में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता, क्योंकि नियुक्तियां धोखाधड़ी और जालसाजी से हुई हैं।
इस प्रकार राज्यपाल से उलझ रही ममता को कोर्ट ने झटका दिया है। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने विधानसभा के बजट सत्र के आखिरी दिनों में पार्टी व्हिप का उल्लंघन कर अनुपस्थित रहने वाले विधायकों की लिस्ट तैयार की है। इस सप्ताह के अंत में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लंदन दौरे से लौटने के बाद ‘अनुशासनात्मक कार्रवाई’ के साथ इस मुद्दे से निपटने की योजना बनाई गयी है। इस बीच 2016 में स्टेट स्कूल सर्विस कमीशन के जरिए हुई भर्ती के लिए 23 लाख से ज्यादा लोगों ने परीक्षा दी थी और 25 हजार से ज्यादा भर्तियों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने 3 महीने में नई भर्ती प्रक्रिया पूरी करने के लिए कहा है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि जो पिछले उम्मीदवार बेदाग थे, उन्हें नई भर्ती प्रक्रिया में कुछ रियायत दी जा सकती है।
तृणमूल सूत्रों के अनुसार, छुट्टी का अनुरोध करने वाले विधायकों के बारे में अध्यक्ष बिमान बनर्जी के कार्यालय से सूची मिलने के बाद पार्टी की अनुशासन समिति आगे की कार्रवाई करेगी। बजट सत्र के दूसरे चरण के दौरान तृणमूल ने व्हिप जारी कर विधायकों को 19 और 20 मार्च को विधानसभा में उपस्थित रहने का निर्देश दिया था। पार्टी की अनुशासन समिति उपस्थिति की जांच कर रही है और पाया गया है कि बजट सत्र के आखिरी दिनों में 30 से अधिक विधायक अनुपस्थित रहे।
इन विधायकों से पार्टी के निर्देश के बावजूद अनुपस्थित रहने के लिए स्पष्टीकरण मांगा गया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, तृणमूल नेतृत्व विधानसभा में बार-बार अनुपस्थित रहने को एक गंभीर मुद्दा मानता है।
पश्चिम बंगाल में टीएमसी के दो विधायकों की शपथ के लिए सत्ता पक्ष और राज्यपाल के बीच बना गतिरोध समाप्त हो गया है। दोनों पक्ष में शपथ ग्रहण समारोह स्थल को लेकर कई दिनों से विवाद चल रहा था। हालांकि, राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने गुरुवार की रात विधानसभा उपाध्यक्ष आशीष बनर्जी को दोनों विधायकों को शपथ दिलाने के लिए अधिकृत कर दिया। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने विधानसभा उपाध्यक्ष आशीष बनर्जी को रयात हुसैन सरकार और सायंतिका बनर्जी को विधानसभा में विधायक के रूप में शपथ दिलाने के लिए अधिकृत किया।
दरअसल, टीएमसी के दोनों विधायकों को राज्यपाल ने बीते महीने राजभवन में शपथ लेने के लिए बुलाया था। हालांकि, दोनों विधायकों ने इनकार करते हुए कहा था कि उपचुनाव जीतने वालों के मामले में राज्यपाल विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को शपथ दिलाने की जिम्मेदारी देते हैं। शपथ ग्रहण कार्यक्रम विधानसभा में आयोजित करने की मांग को लेकर दोनों विधायकों ने धरना भी दिया था। पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाते हुए कहा है कि सदन का कामकाज पूरी तरह राज्यपाल पर निर्भर नहीं है। आपको बता दें कि इससे पहले उन्होंने शपथ ग्रहण स्थल को लेकर जारी गतिरोध को हल करने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से हस्तक्षेप की मांग भी की थी। (हिफी)

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