राजनीतिलेखक की कलम

संगठन दुरुस्त कर रहीं मायावती

 

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एक विशेष वर्ग को लेकर राजनीति मंे बहुत ऊंचाई तक उड़ान भरी लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में उसका संगठन बिखर गया। इससे पूर्व 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा को एक भी सांसद नहीं मिल पाया था लेकिन 2019 में यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन कर बसपा ने प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव मंे बसपा ने सपा का साथ छोड़ दिया था, इसलिए उतनी सफलता नहीं मिल पायी जबकि सपा को सौ से ऊपर विधायक मिले। अब बसपा प्रमुख इस बात पर मंथन कर रही हैं कि उनका वोट बैंक कैसे बिखर गया और उसको फिर से कैसे जोड़ा जा सकता है। बसपा संगठन को दुरुस्त किया जा रहा है। यूपी ही नहीं अन्य राज्यों मंे भी विधानसभा चुनाव की तैयारी बसपा प्रमुख कर रही हैं। इसी साल हरियाणा मंे चुनाव होने हैं। हरियाणा मंे इनेलो के साथ गठबंधन की तैयारी है। इस बार लोकसभा चुनाव मंे सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पीडीए अर्थात पिछड़े, दलित एवं अल्पसंख्यकों के सहारे 37 सांसद जुटाने मंे सफलता प्राप्त की है। सपा के पास ही प्रदेश मंे सबसे ज्यादा सांसद हैं। सपा के साथ रहकर कांग्रेस को भी 6 सांसद मिले हैं। बसपा को दलित और अल्पसंख्यकों को अपने साथ जोड़ने की जरूरत महसूस हो रही है। सबसे बड़ी बात यह कि दलित वर्ग बसपा प्रमुख मायावती में वे तेवर नहीं देख पा रहा है जो पहले थे। इन्हीं तेवरों के चलते दलित वर्ग आंख बंद करके मायावती के पीछे चलता था। उनके भतीजे आकाश आनंद ने उसी तरह के तेवर दिखाये थे लेकिन चुनाव के दौरान ही मायावती ने आकाश आनंद से सभी पद छीन लिये थे। इससे भी दलित वर्ग नाराज हुआ था। इस भूल का एहसास करके मायावती ने आकाश आनंद के हाथ मंे पार्टी की बागडोर फिर से सौंप दी है। इसके साथ ही जिला कमेटियों का नये सिरे से गठन किया जा रहा है।

बसपा प्रमुख मायावती लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बसपा संगठन की ‘सफाई’ में जुट गई है। ऐसे में राष्ट्रीय, मंडल और जिला कमेटी के बाद अब पार्टी में विधानसभा, सेक्टर व बूथ कमेटी की समीक्षा होगी। दावा है कि संगठन में शामिल निष्क्रिय सदस्यों को बाहर किया जाएगा। वहीं पार्टी के लिए मेहनत करने वालों को तवज्जो दी जाएगी, ताकि लगातार खिसकते जनाधार को संवारा जा सके। दरअसल, लोकसभा चुनाव से पहले बसपा ने गांवों तक कैडर कैम्प किये थे, इसमें छोटी-छोटी बैठकें कर पार्टी का विजन साझा किया गया। इसी सिलसिले के बीच बहुजन समाज की विचारधारा से जुड़े लोगों को संगठन में जगह भी प्रदान की गई। महीनों चले कैम्प के बाद बसपा पदाधिकारियों ने कार्यकर्ताओं की लंबी चैड़ी फौज बनाने का दावा किया। इसमें राज्य के 1 लाख 74 हजार 359 बूथों पर 5 सदस्यीय कमेटी गठित होने की बात कही गयी। लिहाजा चुनाव के पहले 8 लाख 71 हजार 795 कार्यकर्ताओं की फौज सिर्फ बूथ लेवल पर तैनाती का खाका खींचा। वहीं 10 बूथ पर एक सेक्टर कमेटी बनाई गई है। ऐसे में प्रदेश में करीब 17 हजार 435 सेक्टर कमेटी होने का दावा किया। इसमें एक सेक्टर कमेटी में 12 मेम्बर रखे गए। इस लिहाज से सेक्टर कमेटियों में 2 लाख 9 हजार 220 पदाधिकारी व सदस्य हुए। ऐसे में बीएसपी के रणनीतिकारों ने राज्य में लोकसभा चुनाव से पहले 10 लाख 81 हजार से ज्यादा मुख्य कार्यकर्ताओं की टीम होने का दंभ भरा। मगर, लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार और वोट फीसद में आई गिरावट ने लंबी-चैड़ी कार्यकर्ताओं की फौज होने पर सवालिया निशान खड़े कर दिए। लिहाजा, परिणामों के बाद चल रही समीक्षा में अपनी हार के पीछे के कारणों में पार्टी इसकी एक वजह कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता भी मान रही है। यूपी में 2007 में मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से विधानसभा में 30.43 फीसद वोट हासिल किए। 2009 के लोकसभा चुनावों में भी बसपा 27.4 फीसदी वोट हासिल किए। 2012 में सोशल इंजीनियरिंग की चमक कमजोर पड़ गई। वोट गिरते हुए 25.9 फीसदी पर पहुंच गए। 2014 के लोकसभा चुनावों में बसपा को 20 फीसदी वोट मिले 2017 में 23 फीसदी वोट मिले, लोकसभा चुनाव 2019 में 19.36 और 2022 में सिर्फ 18.88 फीसद वोट हासिल किए। वहीं लोकसभा चुनाव में बसपा 9.8 फीसद वोट ही हासिल कर सकी। यूपी बसपा अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने बताया कि लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की राष्ट्रीय बैठक हुईं, जिसमें परिणामों पर समीक्षा हुई। इसके बाद कॉर्डिनेटर मंडल, जिला स्तर की समीक्षा की है। अब विधानसभा, सेक्टर और बूथ कमेटी की समीक्षा होगी। इसमें निष्क्रिय कार्यकर्ताओं के स्थान पर पार्टी के लिए समर्पित और ऊर्जावान लोगों को जगह दी जाएगी।

इससे पूर्व पार्टी में फिर से जान फूंकने के लिए पार्टी की बड़ी बैठक हुई थी, जिसमें बसपा सुप्रीमो मायावती, उनके भतीजे आकाश आनंद और उनके भाई आनंद सहित पार्टी के वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। इस दौरान पार्टी ने दो बड़े फैसले लिये। इसके तहत आकाश आनंद को फिर से पार्टी का राष्ट्रीय संजोयक बनाया गया है। इसके अलावा पार्टी ने फैसला लिया कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में होने वाले उपचुनावों में हिस्सा लेगी। इसके लिए पार्टी ने 13 स्टार प्रचारकों की लिस्ट भी जारी कर दी है, जिसमें आकाश आनंद का भी नाम शामिल है। बता दें कि लोकसभा चुनाव के बीच आकाश आनंद को पार्टी ने सभी पदों से मुक्त कर दिया था। इस बैठक में जो सबसे अलग तस्वीर नजर आई, वो थी बुआ और भतीजे की। यानी कि मायावती और उनके भाई आनंद कुमार के बेटे आकाश आनंद की। बैठक में पहुंचते ही आकाश आनंद ने बसपा सुप्रीमो और अपनी बुआ के पैर छुए। इस दौरान मायावती ने उनके सिर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद भी दिया। बैठक में बीएसपी के वरिष्ठ नेताओं ,नेशनल कोऑर्डिनेटर और जिला स्तरीय पदाधिकारियों के साथ बैठक हुई। बैठक में यह फैसला लिया गया कि पार्टी जिन-जिन सीटों पर उपचुनाव है, वहां-वहां चुनाव लड़ेगी।
लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा उलटफेर हुआ। इस बार बीजेपी की सीटें पिछले चुनाव के मुकाबले करीब आधी घट गईं जबकि समाजवादी पार्टी 5 सीटों से सीधे 37 पर पहुंच गई। मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ खेल हो गया। बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 37 सीटें समाजवादी पार्टी को मिली। 33 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी जीती। इसी तरह 6 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं। 2 सीटों पर राष्ट्रीय लोक दल, एक सीट पर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) और एक सीट अपना दल (सोनेलाल) को मिलीं। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति पर खुलासा कर दिया है। वह राज्य में पांचवीं बार गठबंधन के साथ चुनाव में उतरेंगी। हालांकि राज्य की सियासत में मायावती और बसपा के लिए अलायंस बहुत ज्यादा सफल नहीं रहा। मायावती ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता अभय सिंह चैटाला के साथ मुलाकात की। माना जा रहा है कि 11 जुलाई को बसपा चीफ और इनेलो मुखिया एक साथ अलायंस का एलान करेंगे। करीब 6 साल बाद दोनों राजनीतिक दल एक बार फिर साथ आ रहे हैं। हरियाणा में बसपा पांचवीं बार अलायंस करने जा रही हैं। साल 2018 के चुनाव के पहले भी इनेलो और बसपा का अलायंस हुआ था लेकिन कुछ समय बाद यह टूट गया था। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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