मायावती की सियासी रणनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने अभी हाल में विपक्षी दलों के सांसदों को लेकर जो बयान दिया, उससे राजनीति के पंडित भी चकरा गये हैं। मायावती ने कहा संसद के शीतकालीन सत्र मंे विपक्षी दल लगातार हंगामा करके संसद की कार्यवाही ठीक से नहीं चलने दे रहे हैं। बसपा भी विपक्ष की पार्टी है और इस नाते मायावती को भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की आलोचना करनी चाहिए लेकिन उन्होंने कांग्रेस और सपा का उल्लेख भी किया है। बसपा सुप्रीमों कहती हैं कि संसद में विपक्ष देश और जनहित के मुद्दे नहीं उठा रहा है बल्कि अपने राजनीतिक हित देख रहा है। मायावती ने मुस्लिम समुदाय से कांग्रेस व सपा से सावधान रहने की अपील भी की है। मायावती की बसपा उत्तर प्रदेश मंे भाजपा की मदद से सरकार भी बना चुकी हैं और अब उसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। बसपा को 2024 के लोकसभा चुनाव मंे सबसे बड़ा झटका लगा है और उसके बाद उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों मंे भी मायावती एक भी प्रत्याशी नहीं जिता सकीं। ये नतीजे बसपा के लिए बहुत बड़ा झटका साबित हुए हैं। इसलिए बसपा को बीएस फोर के आधार पर मजबूत करने की भी बात मायावती कर रही हैं। मायावती उत्तर प्रदेश मंे चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। सबसे पहले वह 1997 मंे और बाद में 2002 से 2003 और 2007 से 2012 तक यूपी की सीएम रहीं। अब हाल में हुए 9 सीटों पर उपचुनाव मंे बसपा को सिर्फ 7 फीसद वोट मिल पाये हैं जबकि 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में 25.91 फीसद वोट मिले थे। मायावती अपनी पार्टी को फिर से मजबूत बनाना चाहती हैं।
संसद के शीतकालीन सत्र में लगातार हंगामा वजह से संसद की कार्यवाही ठीक से नहीं चल पा रही है। संसद में देश और जनहित के मुद्दे न उठाने पर बसपा सुप्रीमो और पूर्व यूपी सीएम मायावती ने विपक्ष को घेरा है। बसपा सुप्रीमो ने कहा, संसद में विपक्ष देश और जनहित के मुद्दे नहीं उठा रहा है बल्कि अपने राजनीतिक हितों के लिए खासकर सपा और कांग्रेस पार्टी संभल में हिंसा के बहाने मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने की कोशिश कर रही है। उन्हें अन्य मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है। इतना ही नहीं, ये पार्टियां संभल में लोगों को आपस में लड़वा रही हैं। मुस्लिम समुदाय को भी सतर्क रहना होगा। इसी के साथ मायावती ने कहा कि इससे भी ज्यादा दुख की बात ये है कि जिनकी बदौलत से संसद में दलित वर्ग के सांसद पहुंचे हैं वो भी अपनी-अपनी पार्टियों के आकाओं को खुश करने के लिए दलित उत्पीड़न के मुद्दों पर चुप बैठे हैं। इससे पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने केंद्र सरकार और विपक्ष से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया था कि संसद के मौजूदा सत्र व्यापक देशहित में ठीक से चले जिसके लिए सरकार और विपक्ष दोनों को गंभीर होना बहुत जरूरी है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने यह अपील ऐसे समय में की है जब संभल में मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद हुई हिंसा को लेकर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही में अवरोध उत्पन्न हो रहा है। मायावती ने लखनऊ में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के वरिष्ठ पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों सहित पार्टी के अन्य सभी जिम्मेदार लोगों की बैठक को संबोधित करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि राजनीतिक सशक्तीकरण के संघर्ष में दलित और आंबेडकरवादी समुदायों को एकजुट होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पूर्व में कांग्रेस की सरकार की तरह ही वर्तमान में भाजपा की गरीब-विरोधी और पूंजीपतियों के हितों का समर्थन करने वाली नीतियों के खिलाफ लोगों में आक्रोश है जिससे लोगों का ध्यान भटकाने के लिए यह पार्टी जातिवादी, सांप्रदायिक और संकीर्ण हथकंडे अपनाती है। मायावती ने प्रदेश की योगी सरकार पर धार्मिक एजेंडे को संवैधानिक जिम्मेदारियों से अधिक प्राथमिकता देने का आरोप लगाया।
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार की घटनाओं को लेकर विपक्षी दलों को घेरा और पूछा कि मुख्य विपक्षी दल होने के बाद भी कांग्रेस और सपा इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं। ये दोनों दल सिर्फ मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए संभल हिंसा की बात कर मुस्लिम समाज को लड़वा रही हैं। मायावती ने मांग की कि केंद्र सरकार को बांग्लादेश के दलितों को भारत लाना चाहिए। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि संसद चल रही है और विपक्षी दल देश और यहां के जनहित के मुद्दे न उठाकर अपने राजनीतिक स्वार्थ में संभल में हुई हिंसा की आड़ में खासकर सपा और कांग्रेस पार्टी मुस्लिम वोट को रिझाने में लगी हुईं हैं। इन्हें बाकी मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि ये दल मुस्लिम समाज को भी तुर्क और नॉन तुर्क को आपस में लड़ा रही है। जिससे मुस्लिम समाज को भी सतर्क रहना है। बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे हमले का जिक्र करते हुए मायावती ने कहा कि वहां जो हिन्दू जुल्म और ज्यादती का शिकार हो रहे हैं उनमें अधिकांश संख्या उन दलितों की है उन कमजोर तबके के लोगों की है जिनकी बहुलता होते हुए भी सजा के तौर पर उन्हें पाकिस्तान के साथ भेज दिया गया, क्योंकि वहां से उन्होंने बाबा साहेब को संविधान सभा में चुनकर भेज दिया था। मायावती ने आरोप लगाया कि उस वक्त ये सब जातिवादी खेल कांग्रेस पार्टी ने किया था और अब जब वहां उनका शोषण हो रहा है तो विपक्ष की मुख्य पार्टी चुप है और वो सिर्फ मुस्लिम वोट से लिए संभल-संभल चिल्ला रही है। इस मामले में सपा और कांग्रेस एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। उन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से मांग की कि सरकार अपनी जिम्मेदारी आगे बढ़कर निभाए ताकि शोषण का शिकार हो रहे लोगों को बचाया जा सके।
उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों से बहुजन समाज पार्टी की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इन 9 में से 6 सीटों पर बसपा प्रत्याशियों का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि उनकी जमानत जब्त हो गई। अब सवाल उठने लगा है क्या इन नतीजों के बाद मायावती एक बार फिर गठबंधन की ओर जा सकती हैं? पश्चिमी यूपी की सीटों पर बसपा से ज्यादा चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के उम्मीदवारों को वोट मिले हैं। एक के बाद एक चुनाव में मिल रही करारी हार और खिसकते दलित जनाधार ने बसपा की सियासी टेंशन बढ़ा दी है।
ऐसे में मायावती जल्द ही कुछ अहम कदम उठा सकती हैं, जिसमें संगठन में बड़े फेरबदल और गठबंधन की राह पर लौटने का फैसला हो सकता है। यूपी उपचुनाव में बसपा एक भी सीट जीतना दूर की बात है, 2022 के बराबर वोट भी नहीं पा सकी। कुंदरकी सीट पर 1099 वोट, मीरापुर सीट पर 3248 वोट और सीसामऊ सीट पर 1400 वोट बसपा को मिले हैं। यही नहीं गाजियाबाद में भी बसपा दस हजार वोट पर ही सिमट गई है और खैर, कटेहरी सीट पर बसपा की जगह सपा ने ले ली है। मायावती ने भले ही उपचुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया हो, लेकिन अपने कोऑर्डिनेटर से फीडबैक लिया है।
मायावती ने बसपा संगठन में बदलाव का काम भी शुरू कर दिया है। झारखंड में पार्टी संगटन का काम देख रहे गया शरण दिनकर को बुलाकर कानपुर की जिम्मेदारी सौंपी है। धर्मवीर अशोक को पूर्वांचल से हटाकर बुलंदेखंड में लगाया गया है। ऐसे ही कई नेताओं को
उनके मंडल से हटाकर अलग-अलग क्षेत्रों में लगाया गया है। चंद्रशेखर आजाद के बढ़ते सियासी आधार को रोकने के लिए मायावती ने कई बड़े अहम कदम उठाने की दिशा में भी मंथन शुरू कर दिया है। (हिफी)