देश विरोधी ताकतों के नापाक प्रयास

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
देश के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह आतंकवाद व अलगाववाद पैदा करने की कोशिश उजागर हो रहीं हैं उनसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के भीतर और बाहर से लगातार अस्थिरता फैलाने के लिए देश विरोधी ताकतों के नापाक प्रयास जारी हैं। मणिपुर, छत्तीसगढ़, पंजाब, असम, पश्चिमी बंगाल, नागालैंड, मिजोरम, केरल और जम्मू-कश्मीर तक आतंक की फसल तैयार करने के लिए लगातार कोशिश की जा रही हैं। एक ओर देश के उत्तरी-पूर्वी राज्य मणिपुर में दो समुदाय के बीच अविश्वास और घृणा को बढ़ावा देने के साथ ही उन तक हथियार पहुंचना चिंताजनक है, वहीं छत्तीसगढ़ सरीखे राज्यों में नक्सलियों के जरिए आतंक की खेती की जाती रही है। दरअसल जम्मू-कश्मीर में 370 हटाने के बाद सरकार को आतंकवाद समर्थक पत्थरबाजों और आतंकी वारदातों पर नियंत्रण में सफलता मिली तो देश विरोधी भीतरी व बाहरी ताकतों ने पंजाब से लेकर कनाडा तक खालिस्तान के सोए जिन्न को जगाकर दहशत और आतंकवाद को बढ़ावा देने की कोशिश शुरू कर दी है। कनाडा में बैठे आतंकी पन्नू की कुम्भ मेला में गड़बड़ी की धमकी खारिज करने लायक नहीं है। इस सबको भारत की तरक्की से कुंद भारत के दुश्मन देश शह दे रहे हैं। पिछले कुछ समय से देश में जिस प्रकार से आतंकियों की गिरफ्तारी हो रही है अथवा मारे जा रहे हैं, उससे देश में किसी बड़े खतरे की आहट सुनायी दे रही है। उत्तर प्रदेश से लेकर असम और बंगाल तक अचानक से ही आतंकी गतिविधियों में बढ़ोतरी हो गयी है। एक महीने के भीतर ही देश के विभिन्न हिस्सों से कई आतंकियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जो यह दर्शाता है कि देश में आतंकियों ने अपनी पैठ बढ़ानी शुरू कर दी है। हालांकि अच्छी बात है कि एजेंसियों की सतर्कता के कारण आतंकियों की गिरफ्तारी की गई हैं फिर भी देश पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इसलिए आतंक के विरुद्ध पूरे देश में सतर्कता बरते जाने की जरूरत है।
आतंकियों की ताजा गिरफ्तारी असम से हुई है। स्पेशल टास्क फोर्स ने अलकायदा से जुड़े अंसास्लाह बांग्लाद टीम (एबीटी) के दो और आतंकियों को गिरफ्तार किया है। इसी के साथ अब तक एबीटी के 10 आतंकी पकड़े जा चुके हैं। इससे पहले एसटीएफ ने एबीटी के 8 आतंकियों को असम, पश्चिम बंगाल और केरल से गिरफ्तार किया था। इन आठ में से पांच को असम के कोकराझार और धुबरी जिले से पकड़ा गया था। इसके अलावा दो और लोगों को पश्चिम बंगाल और एक बांग्लादेशी को केरल से गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तार आतंकियों के पास से कई आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई, जिसमें संदिग्ध ऐप्स वाले मोबाइल फोन, प्रचार सामग्री, बांग्लादेशी-निर्धारित पहचान दस्तावेज और महत्वपूर्ण साक्ष्य वाले पेन ड्राइव शामिल हैं। एसटीएफ की मानें तो आतंकी देश में बड़ी घटना को अंजाम देने के फिराक में थे, क्योंकि उनके पास से हथियारों का जखीरा बरामद किया गया है। इससे पहले पश्चिम बंगाल से पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकी को गिरफ्तार किया गया था। कश्मीरी आतंकी जावेद अहमद मुंशी नदी मार्ग से बांग्लादेश से बंगाल में भविष्य में आने वाले आतंकियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट देने की राह आसान करने आया था। गिरफ्तारी के बाद एजेंसियों को बताया कि वह अब तक सात बार पाकिस्तान के कराची शहर का दौरा कर चुका है। इस दौरान वह कई बार आतंकी संगठन के आकाओं से मिल चुका है। गिरफ्तार आरोपी से पूछताछ में जांच अधिकारियों को इस तरह की जानकारी मिली है।
अधिकारी बताते हैं कि आरोपी से पूछताछ में पता चला है कि सीमा पर बीएसएफ की सख्ती के कारण इन दिनों सड़क मार्ग से भारतीय सीमा में प्रवेश करने का रास्ता काफी कठिन होने के कारण जावेद नदी मार्ग से बंगाल की सीमा में बांग्लादेशी आतंकियों के प्रवेश का मार्ग बनाने की कोशिश में था, जिसके बाद वह भविष्य में सीमा पार से आने वाले आतंकियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट देने वाला था। इस आतंकी से पूछताछ में अधिकारियों को कई तरह की जानकारी मिली है। पता चला है कि वह मुस्लिम लीग को पुनर्जीवित करने की कोशिश में भी लगा था। इससे पहले उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में तीन खालिस्तानी आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया गया था। खालिस्तानी आतंकियों के मारे जाने से लोगों में तीन दशकों के बाद एक बार फिर खौफ का माहौल पैदा हो गया है। पंजाब में जब 80-90 के दशक में सिख आतंकवाद चरम पर था, उस समय उत्तर प्रदेश के तराई के कुछ जिले भी इससे प्रभावित हुए थे। तब यूपी का विभाजन नहीं हुआ था। उस दौर में लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, खटीमा, नैनीताल जैसे सिख आबादी वाले जिलों में अक्सर आतंकियों के पनाह लेने और वारदात करने की खबरें मिल जाती थीं, लेकिन पिछले करीब तीन दशकों से यहां का माहौल काफी बदल चुका है। खालिस्तानी आतंकवाद अतीत की बात बन गया था लेकिन पीलीभीत के पूरनपुर में तीन खालिस्तानी आतंकियों के एनकाउंटर से एक बार फिर वर्षों बाद तराई का इलाका दहल उठा।
80 और 90 के दशक को देखा जाये तो उस दौरान जब पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद चरम पर था उस दौरान करीब 12 वर्ष तक तराई में भी इस आतंक का साया रहा था। तब पीलीभीत और लखीमपुर खीरी में खालिस्तान आतंकवादियों ने कई लोगों की हत्या कर दी थी। सबसे चर्चित पीलीभीत की वो घटना है, जो जुलाई 1992 में हुई थी। आतंकवादियों ने जंगल में एक साथ 29 लोगों की हत्या कर दी थी। यह वर्ष 1985 से लेकर 1997 के बीच का दौर था, जब तराई इलाके में जिला खीरी से लेकर शाहजहांपुर के खुटार, पीलीभीत के पूरनपुर से लेकर उत्तराखंड के जिला ऊधमसिंह नगर और नैनीताल तक खालिस्तान समर्थकों का आतंक रहा। उस दौरान खालिस्तान समर्थक आतंकी संगठनों ने यहां कई बड़ी और चर्चित घटनाओं को अंजाम दिया था। इसी तरह से वर्ष 1988-89 में मैलानी-भौरा के मध्य राज नारायणपुर रेलवे क्रॉसिंग के पास दुग्ध वाहन को रोककर उसमें सवार एक दर्जन लोगों की खालिस्तान आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। इस नरसंहार को खालिस्तानी आतंकवादियों के मेजर गुट ने अंजाम दिया था। 26 नवंबर 1995, 26 अक्टूबर 1997 और 28 मार्च 1998 को भीखमपुर-मैलानी के बीच रेलवे ट्रैक काट कर नैनीताल एक्सप्रेस ट्रेन को पलटने की साजिश के पीछे भी खालिस्तान उग्रवादियों का हाथ होने की बात सामने आई थी।
एक बार फिर अब पंजाब और उत्तर प्रदेश पुलिस को पीलीभीत में तीन खालिस्तानी आतंकियों को मार गिराने में जो सफलता मिली, वह एक बड़ी कामयाबी है। पुलिस और खुफिया सूत्रों के अनुसार यह आतंकी पिछले कुछ समय से पंजाब में थानों और चौकियों पर बम फेंक कर आतंक का माहौल कायम करने में लगे थे। इनका संबंध खालिस्तानी जिंदाबाद फोर्स नामक आतंकी संगठन से बताया जा रहा है। पता यह भी चला है कि विदेश में बैठे खालिस्तानी तत्वों ने पीलीभीत में मारे गए आतंकियों को हथियार उपलब्ध कराए थे। यदि यह सही बात है, तो इसकी गहनता से पड़ताल होनी चाहिए कि वे ऐसा करने में कैसे समर्थ हो गए। पड़ताल इसकी भी होनी चाहिए कि मारे गए आतंकी पंजाब में थानों और चौकियों को निशाना बनाने के बाद पीलीभीत में क्या करने आए थे। पीलीभीत उनके छिपने के लिए सुरक्षित ठिकाना था या फिर वे यहां कोई वारदात करने की फिराक में थे। स्पष्ट है कि आतंकियों ने देश में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और इनको पूरी तरफ से नेस्तनाबूद और सफाया करने के लिए केंद्र और राज्य एजेंसियों को मिलकर खात्मा करना होगा। (हिफी)