उमर सरकार का केंद्र से टकराव को न्योता

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार के प्रस्ताव के पारित होने के बाद पीढ़ियों से जम्मू-कश्मीर में रह रहे गोरखा, वाल्मीकि समाज और पाकिस्तानी विस्थापितों में उमर सरकार के खिलाफ रोष पनप गया है। इन लोगों का कहना है कि पीढ़ियों तक जम्मू-कश्मीर में विस्थापितों की जिंदगी गुजारने के बाद मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 व 35 ए निरस्त कर उन्हें जम्मू-कश्मीर के निवासी बनाते हुए मौलिक अधिकार दिए थे और आज उमर सरकार फिर से वो अधिकार छीनने का प्रयास कर रही है।
इस प्रकार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की कथनी और करनी में फर्क अभी से सामने आ गया है। उप राज्यपाल मनोज सिन्हा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करने का दावा करने वाले उमर अब्दुला ने नई पहल के साथ अपने कदम पीछे खींच लिये हैं। ये मसला केंद्र सरकार और उप राज्यपाल तक तो अभी नहीं पहुंचा है, लेकिन जम्मू- कश्मीर विधानसभा में जो नजारा दिखा है, उससे बहुत कुछ साफ हो गया है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का सत्र 4 नवंबर को शुरू हुआ था और चौथा दिन आते-आते हंगामे से हालात इतने बेकाबू हो गये कि विधायकों को कंट्रोल करने के लिए मार्शल बुलाने पड़े। असल में सत्र के तीसरे दिन ही विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें फिर से जम्मू-कश्मीर में धारा 370 बहाल करने की मांग की गई है। ध्यान रहे 5 अगस्त, 2019 को संसद ने प्रस्ताव के जरिये जम्मू-कश्मीर से जुड़ा अनुच्छेद 370 खत्म करते हुए राज्य को दो हिस्सों में बांट कर केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया था। सूबे के क्षेत्रीय दल फिर से जम्मू-कश्मीर में पुरानी स्थिति बहाल करने की मांग करते रहे हैं। केंद्र सरकार की तरफ से शुरू से ही आश्वस्त किया जा रहा है कि जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा फिर से बहाल कर दिया जाएगा। राज्य के क्षेत्रीय दल, जिसमें कांग्रेस नेता भी शामिल थे, पहले स्टेटहुड फिर चुनाव कराने की मांग करते आ रहे थे जिसे केंद्र सरकार ने नामंजूर कर दिया था। चुनाव भी हो गया और जम्मू-कश्मीर में नई सरकार भी बन गई। अब लग रहा था कि केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य के रूप में बहाल कर दिया जाएगा। लेकिन जिस तरह से बवाल शुरू हुआ, लगता नहीं कि ये सब निकट भविष्य में होने वाला है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा सत्र के तीसरे दिन डिप्टी सीएम सुरिंदर कुमार चौधरी ने धारा 370 से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया था। नेशनल कांफ्रेंस सरकार के प्रस्ताव का कांग्रेस ने तो समर्थन किया, लेकिन बीजेपी विधायकों ने जोरदार विरोध जताया। प्रस्ताव के विरोध में बीजेपी के विधायक 5 अगस्त जिंदाबाद और जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है, जैसे नारे लगा रहे थे। बीजेपी नेता कह रहे हैं कि अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला फाइनल है, लेकिन अब्दुल्ला परिवार और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को भावनात्मक तौर पर ब्लैकमेल करने के लिए ये प्रस्ताव पास किया है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पारित किये गये प्रस्ताव में कहा गया है, ये विधानसभा विशेष दर्जे और संवैधानिक गारंटी के महत्व को पुष्टि करती है, जिसने जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा
की… लोगों के अधिकारों को एकतरफा खत्म करने पर सदन चिंता व्यक्त करता है… ये विधानसभा भारत सरकार से जम्मू- कश्मीर के लोगों के चुने हुए नुमाइंदों के साथ विशेष दर्जा, संवैधानिक गारंटी की बहाली के लिए बातचीत शुरू करने और प्रावधानों को बहाल करने के लिए संवैधानिक व्यवस्था बनाने की अपील करती है। जम्मू- कश्मीर विधानसभा का चुनाव नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने चुनाव पूर्व गठबंधन के तहत लड़ा था। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने मैनिफेस्टो में पूर्ण राज्य का दर्जा वापस लेने और धारा 370 को बहाल करने का वादा किया था। गठबंधन में साथ होने के बावजूद कांग्रेस नेता राहुल गांधी धारा 370 के जिक्र से बच रहे थे और सिर्फ पूर्ण राज्य की वापसी के बादे में शामिल दिखे लेकिन, विधानसभा में पेश प्रस्ताव का कांग्रेस विधायकों ने भी समर्थन किया है। प्रस्ताव पास किये जाने के अगले ही दिन यानी 7 नवंबर को जम्मू-कश्मीर विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों के बीच जमकर हाथापाई हुई है। सत्ता पक्ष और विपक्षी बीजेपी के विधायकों ने एक-दूसरे का कॉलर पकड़ा और काफी धक्कामुक्की की। बवाल बड़ने पर मार्शल बुलाने पड़े और विधानसभा की कार्यवाही भी स्थगित करनी पड़ी।
बवाल तब शुरू हुआ जब लंगेट से विधायक खुर्शीद अहमद शेख ने सदन में अनुच्छेद 370 का बैनर लहराया। विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने बैनर दिखाये जाने का विरोध किया जिसके बाद विधायकों के बीच हाथापाई शुरू हो गई। खुर्शीद अहमद शेख, बारामूला से लोकसभा सांसद इंजीनियर राशिद के भाई हैं। नेता प्रतिपक्ष के विरोध करते ही बीजेपी विधायक ने खुशींद अहमद शेख के पास पहुंचकर उनके हाथ से धारा 370 वाला बैनर छीन लिया। ये देखते ही नेशनल कांफ्रेंस के कुछ विधायक, सज्जाद लोन और वहीद पारा जैसे नेता खुर्शीद शेख के सपोर्ट में बीजेपी विधायकों से भिड़ गये। हंगामे के दौरान तीन विधायक घायल भी बताये जाते हैं, जब मार्शल बीजेपी विधायकों को बाहर ले जा रहे थे तब भी वे नारेबाजी करते रहे, विशेष दर्जा प्रस्ताव वापस लो। उमर अब्दुल्ला ने ये तो कहा था कि जम्मू-कश्मीर में नई सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाला प्रस्ताव पास किया जाएगा, लेकिन धारा 370 को लेकर साफ तौर पर कुछ नहीं कहा था। कम से कम चुनावों के बाद तो बिलकुल नहीं। नेशनल कांफ्रेंस के मैनिफेस्टो की बात और है। बारामूला सांसद इंजीनियर राशिद ने धारा 370 को लेकर उमर अब्दुल्ला पर हमला भी बोला था। लोकसभा चुनाव में शिकस्त देने वाले इंजीनियर राशिद ने उमर अब्दुला पर दिल्ली के सामने झुक जाने का आरोप भी लगाया था। तब इंजीनियर राशिद का कहना था, धारा 370 की बहाली के नाम पर वो लोगों से वोट मांगते रहे, और अब कहते हैं कि जिसने ये छीना, उससे इसे फिर से बहाल किये जाने की उम्मीद मूर्खता है।
हो सकता है धारा 370 को लेकर प्रस्ताव पास किया जाना उमर अब्दुल्ला पर किसी तरह के दबाव का हिस्सा हो, लेकिन केंद्र के साथ बेहतर रिश्तों की उनकी बातें तो अब बेमानी लगती हैं। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले उमर अब्दुल्ला कहते थे कि केंद्र के साथ बेहतर रिश्ते कायम करने की उनकी पूरी कोशिश होगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनको ऐसी अपेक्षा थी लेकिन प्रस्ताव पास हो जाने के बाद तो केंद्र से किसी अपेक्षा का भी कोई मतलब नहीं रह जाता। ये भी उमर अब्दुल्ला का ही कहना था, हमे ये समझने की जरूरत है कि हमारा महकमा कौन-कौन है, हमारे पास क्या शक्तियां हैं… कौन से फैसले हम ले सकते हैं। कहां तक हम अपना कदम बढ़ा सकते हैं… हमारी हदें कहां तक हैं? सवाल ये है कि विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने के बाद उमर अब्दुल्ला कैसे कह सकेंगे कि ताली दोनांे हाथों से बजती है फिर तो, जम्मू-कश्मीर में भी दिल्ली
जैसी आशंका के बादल मंडराने
लगे है। (हिफी)