लेखक की कलम

उमर का वादा, सहयोगी की झिझक

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
चुनावी वादे कभी-कभी भारी पड़ जाते हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के साथ भी यही हो रहा है। उनकी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने विधानसभा चुनाव मंे जनता से वादा किया था कि उनकी सरकार बनने पर अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल किया जाएगा। नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और दोनों दलों की सरकार भी बन गयी। नेशनल कांफ्रेंस को 42 सीटों पर जीत मिली है जबकि कांग्रेस के पास 6 सीटें हैं। इस प्रकार दोनों दलों को बहुमत मिल गया लेकिन दोनों का मत न तब मिला था और न अब मिल रहा है। कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का वादा किया था जबकि नेशनल कांफ्रेंस ने अनुच्छेद 370 की बहाली का। अब विधानसभा का सत्र शुरू हुआ तो उमर की सरकार ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के माध्यम से अनुच्छेद 370 को निरस्त कराने के खिलाफ प्रस्ताव पेश करा दिया। भाजपा के 28 विधायकों ने इसका कड़ा विरोध किया। कांग्रेस के 6 विधायक सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं। सरकार के सहयोगी होते हुए भी वे झिझक रहे हैं। उमर अब्दुल्ला दिखाना चाहते हैं कि उनकी पार्टी अपना वादा पूरा करने का प्रयास कर रही है। हालांकि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अपनी सरकार बनने के बाद आतंकवादी घटनाओं से भी चिंतित हैं। श्रीनगर मंे हुए आतंकी हमले को लेकर उन्हांेने सख्त बयान दिया है। इससे पूर्व गैर कश्मीरियों की हत्या पर भी मुख्यमंत्री ने आतंकवादियों की कड़ी निंदा की थी। उनके पिता डा. फारुक अब्दुल्ला ने भी आतंकवाद को लेकर गंभीर चिंता जतायी थी। उन्होंने कहा था कि आतंकवादियों को पकड़ कर यह पता लगाना चाहिए कि इसके पीछे कौन शक्तियां हैं। इस प्रकार उमर अब्दुल्ला की सरकार के लिए अनुच्छेद 370 का मामला अभी ठण्डे बस्ते में रखने की जरूरत है।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के विधायक वहीद पारा ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के खिलाफ 4 नवम्बर को जम्मू कश्मीर विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया तथा पूर्ववर्ती राज्य को मिला विशेष दर्जा फिर से बहाल करने का आह्वान किया, जिसे लेकर सदन में खूब हंगामा हुआ। पुलवामा से विधायक ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के वरिष्ठ नेता और सात बार के विधायक अब्दुल रहीम राथर को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की विधानसभा का पहला अध्यक्ष चुने जाने के तुरंत बाद यह प्रस्ताव पेश किया। पारा ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा, जम्मू कश्मीर के लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह सदन (जम्मू कश्मीर का) विशेष दर्जा समाप्त किये जाने का विरोध करता है। इस पर भाजपा विधायकों ने विरोध जताया और सभी 28 विधायक इस कदम का विरोध करने के लिए खड़े हो गए। भाजपा विधायक श्याम लाल शर्मा ने पारा पर विधानसभा नियमों का उल्लंघन कर प्रस्ताव लाने का आरोप लगाया और इसके लिए उन्हें निलंबित करने की मांग की। राथर ने विरोध कर रहे सदस्यों से बार-बार अपनी सीट पर जाने का अनुरोध किया। हंगामे के बीच ही उन्होंने कहा कि प्रस्ताव अभी उनके पास नहीं आया है और जब आएगा, तब वे इसकी जांच करेंगे। भाजपा सदस्यों के नहीं मानने पर नेकां विधायकों ने सदन की कार्यवाही में बाधा डालने के लिए नाराजगी जाहिर की। शोरगुल के बीच नेकां विधायक शब्बीर कुल्ले सदन के बीचोंबीच आ गए। ध्यान रहे कि केंद्र ने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को पांच अगस्त, 2019 को निरस्त कर दिया था। एनसी के पास विधानसभा में 42 सीटें हैं, भाजपा के पास 28 (विधायक देवेंद्र सिंह राणा की मृत्यु के कारण एक सीट रिक्त हुई है), कांग्रेस के पास 6, पीडीपी के पास 3, सीपीआई-एम के पास 1, आम आदमी पार्टी (आप) के पास 1, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) के पास 1 और निर्दलीय 7 हैं।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने श्रीनगर में हुए आतंकी हमले को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर एक पोस्ट भी किया है। इस पोस्ट में उन्होंने कहा है कि बीते कुछ दिनों में जम्मू-कश्मीर में इस तरह की कई आतंकी घटनाएं सामने आई हैं। गत 3 नवम्बर को आतंकियों ने श्रीनगर में रविवार बाजार में ग्रेनेड हमला किया था। इस हमले में कई लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा बीते कुछ दिनों से घाटी में आतंकी हमले और सेना के साथ आंतकियों की मुठभेड़ की कई घटनाएं सामने आई हैं। श्रीनगर में आतंकियों ने बेकसूर लोगों पर ग्रेनेड हमला किया है। ये बेहद विचलित करने वाला है। निर्दोष लोगों को निशाना बनाने को लेकर किसी तरह का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा सकता है। मुझे लगता है कि सुरक्षा एजेंसियों को हर वो चीज करनी चाहिए जिससे कि इस तरह के हमले आगे न हों। घाटी में लोग बगैर किसी डर के रह सकें। श्रीनगर में हुए आंतकी घटना को लेकर जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने सेना को खुली छूट देने का ऐलान किया है। उन्होंने इस घटना के बाद कहा कि आपको आतंकी संगठनों को कुचलने की पूरी आजादी है। हम इस मिशन को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
घाटी में एक के बाद एक हो रहे आतंकी हमलों को लेकर कुछ दिन पहले सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने भी अपनी बात रखी थी। उस दौरान उन्होंने कहा था कि मुझे लगता है कि ये हमले स्थानीय सरकार को अस्थिर करने के इरादे से किए जा रहे हैं। मेरा मानना है कि केंद्र सरकार को इन हमलों की स्वतंत्र जांच करनी चाहिए। साथ ही फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि आतंकियों को मारने की जगह उन्हें पकड़कर ये पूछताछ करना चाहिए कि आखिर इन हमलों के पीछे कौन हैं। फारूक अब्दुल्ला के इस बयान को लेकर बाद में बीजेपी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी थी। इस प्रतिक्रिया में बीजेपी ने कहा था कि फारूक अब्दुल्ला के इस बयान से लगता है कि सत्ता में आने बाद उन्हें एहसास हो रहा है कि जम्मू-कश्मीर में कैसे विदेशी शक्तियां सक्रिय हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने पार्टी का घोषणापत्र जारी किया। घोषणापत्र में 12 गारंटियों की घोषणा की है, जिनमें अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करना शामिल है। जून 2000 में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर राज्य में 1953 से पहले की संवैधानिक स्थिति बहाल करने की मांग की थी। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने इसे खारिज कर दिया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणापत्र में सभी राजनीतिक कैदियों के लिए माफी और कश्मीरी पंडितों की घाटी में सम्मानजनक वापसी का भी वादा किया है।
विधानसभा चुनाव में लगभग हर जनसभा में अनुच्छेद 370 की पुनर्बहाली की बात करने वाली नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला बाद में इसी से जुड़े सवाल टाल गए थे और 370 के सवाल पर उनका जवाब रहा कि मौजूदा सरकार के लिए सबसे ज्यादा जरूरी आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी की समस्याओं को दूर करना है। यही उचित भी है। (हिफी)

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