रैगिंग के नाम पर छात्रों के जीवन से खिलवाड़?

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
आखिर यह रैगिंग कब तक छात्रों के जीवन पर भारी पड़ेगी? गुजरात के एक एमबीबीएस छात्र की रैगिंग के दौरान की गयी अमानवीयता से मौत ने हर अभिभावक को भीतर तक झकझोर दिया है कि आखिर उनके बच्चों के साथ कालेज कैम्पस में क्या-क्या हो रहा है? यह बेहद गंभीर दुःखद, निंदनीय और शर्मनाक बात है कि देश में तमाम कड़े कानूनों और सरकारों की कठोर नीतियों के बावजूद शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है। देश के किसी न किसी कॉलेज और विश्वविद्यालयों से रैगिंग की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी रैगिंग पर पूर्ण प्रतिबंध का कानून लागू किया है, मगर देश में रैगिंग के बढ़ते मामलों से यह कानून मजाक बनता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों के भीतर देश में रैगिंग की कई घटनाएं सामने आयी हैं। ताजा घटनाक्रम में गुजरात और तमिलनाडु में रैगिंग के मामले सामने आए हैं। दुःखद बात है कि गुजरात के पाटन में रैगिंग के कारण एमबीबीएस के छात्र की मौत हो गई है। शुरुआती जांच में सामने आया है कि 18 साल के जूनियर छात्र को लगातार तीन घंटे तक प्रताड़ित किया गया था। होस्टल में सीनियर्स द्वारा रैगिंग के दौरान कथित तौर पर उसे तीन घंटे तक खड़ा रखा गया। धारपुर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र अनिल मेथानिया को तीन घंटे तक जबरन नाचने और खड़े रहने को मजबूर किया गया। इस कारण छात्र बेहद घबरा कर बेहोश गया और उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई। अनिल की मौत के बाद उसके परिवार ने वरिष्ठ छात्रों पर रैगिंग का आरोप लगाया और दावा किया कि इसी वजह से उसकी मौत हुई। धारपुर मेडिकल कॉलेज के डीन हार्दिक शाह ने पुष्टि की कि अनिल बेहोश हो गया था। उन्होंने जानकारी दी है कि पूछताछ के दौरान छात्रों ने खुलासा किया कि घटना के समय वास्तव में परिचयात्मक सत्र चल रहा था। कॉलेज ने कार्रवाई करते हुए 15 छात्रों को सस्पेंड कर दिया है।
आपको बता दें कि इससे पहले भी रैगिंग के नाम पर अमानवीयता दरिंदगी व दुराचार की वारदातों को अंजाम देने का सिलसिला जारी है। 18 फरवरी 2024 को केरल के एक कालेज के छात्रावास के टायलेट के छत से 20 साल के छात्र का शव लटका मिला। छात्र वीवीएसपी पशुपालन द्वितीय वर्ष का छात्र था जांच के बाद पता चला कि उसके साथ दो दिन पहले रैगिंग की गई और यौन शोषण किया गया था। 6 अप्रैल 2024 को ही दिल्ली के एक प्राइवेट स्कूल के नाबालिग छात्र के प्राइवेट पार्ट में सीनियर छात्रों ने डंडा घुसा दिया। छात्र को आईसीयू में भर्ती कराया गया। 14 अक्टूबर 22 को आइ आइटी खड़गपुर में छात्र फैजान का आंशिक रूप से सड़ चुका शव मिला था। आरोप है कि उसके साथ सीनियर छात्रों ने लंबे समय तक रैगिंग के नाम पर अमानवीयता दरिंदगी की। इस सिलसिले में मुकदमा दर्ज किया गया।
9 अगस्त 2023 को एक 17 साल के नाबालिग छात्र की छात्रावास की बालकनी से गिरने से मौत हो गई थी। जांच में रैगिंग के नाम पर यौन शोषण और अमानवीयता का मामला सामने आया और एक दर्जन से अधिक छात्रों पर पोस्को के तहत मामला दर्ज किया गया। उधर, तेलंगाना में एक टीचर ने मामूली सी स्टूडेंट के साथ मारपीट की और नाई की दुकान पर ले जाकर उसके बाल मुंडवा दिए। इस घटना की भी जांच के आदेश दिए गए हैं। इस संबंध में पुलिस में भी शिकायत दी गई है। पिछले सप्ताह ही खुलासा हुआ है कि उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के एक नर्सिंग कॉलेज की छात्रा ने अपनी जान दे दी थी। यह घटना 27 जुलाई की थी। अब इस पर कई सच सामने आये हैं। नोएडा के एक निजी विश्वविद्यालय के छात्रावास में कनिष्ठ विद्यार्थियों की पिटाई की गई थी। विचित्र है कि यह मामला एक महीने तब तक दबा रहा, जब तक कि एक पीड़ित छात्र ने थाने में शिकायत नहीं दर्ज कराई।यह तो सिर्फ चंद बानगी भर है देश के सभी राज्यों के सभी उच्च शिक्षण संस्थान रैगिंग की बीमारी से ग्रस्त हैं और प्रतिभावान छात्र-छात्राओं के जीवन से खिलवाड़ करने का सिलसिला जारी है।
ये वारदातें बताती हैं कि उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के विरुद्ध सख्त नियमों और अदालतों के साफ दिशा- निर्देशों के बावजूद नए विद्यार्थियों को प्रताड़ित करने या उनके खिलाफ हिंसा की खबरें अक्सर आती रहती हैं। कई बार ऐसा लगता है कि सख्त नियम-कायदे के बावजूद रैगिंग करने वाले युवाओं के भीतर कानून का भी न कोई डर है, न उन्हें अपने भविष्य की कोई चिंता है। निचली कक्षाओं के विद्यार्थियों पर रौब जमाना या किसी को प्रताड़ित करना यह बताता है कि कुछ युवाओं में दमन की कुंठित मानसिकता काम करती रहती है। यही कारण है कि रैगिंग रोकने के लिए अलग-अलग राज्य सरकारों ने रैगिंग को लेकर अपने नियम-कानून बनाए हैं। इनमें कारावास से लेकर अर्थ दंड तक के सख्त प्रावधान किए गए हैं। अगर देखा जाए तो रैगिंग की समस्या उच्च शिक्षा जगत से जुड़ी अत्यंत संवेदनशील, सामाजिक समस्या है, जिससे उच्च शिक्षा जगत को पूर्ण रूप से मुक्ति नहीं मिल पाई है। उच्च शिक्षा संस्थानों में रैगिंग पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद देश के अनेक उच्च शिक्षा संस्थान इससे मुक्त नहीं हो पाए हैं। रैगिंग एक ऐसा शब्द है जो हर साल कॉलेज और यूनिवर्सिटी में क्लास शुरू होते ही सुनाई देने लगता है। दुनियाभर में हर साल लाखों स्टूडेंट्स को इसका सामना करना पड़ता है। रैगिंग को दुनिया में अलग-अलग नामों से पहचाना जाता है। इसको हेजिंग, फेगिंग, बुलिंग, प्लेजिंग और हॉर्स प्लेइंग के नामों से भी जाना जाता है। रैगिंग कई कारणों से हो सकती है, जैसे आपकी त्वचा, नस्ल, धर्म, जाति, प्रजातीयता, जेंडर, यौनिक रुझान, रूप-रंग, राष्ट्रीयता, क्षेत्रीय मूल, आपकी बोली, जन्म स्थान, गृह स्थान या आर्थिक पृष्ठभूमि। रैगिंग अलग-अलग रूप ले सकती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र किसी अन्य छात्र को उसके काम करने के लिए धौंस दिखाता है या किसी छात्र को कॉलेज समारोह जैसी परिसर की गतिविधियों से बाहर रखा जाता है, तो उसे रैगिंग माना जाता है। मानसिक बोट, शारीरिक दुर्व्यवहार, भेदभाव, शैक्षणिक गतिविधि में व्यवधान आदि सहित छात्रों के खिलाफ रैगिंग के विभिन्न रूपों को कानून दंडित करता है। 90 के दशक में भारत में रैगिंग ने विकराल रूप ले लिया था। इसके बाद 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत में रैगिंग पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही यूजीसी ने भी रैगिंग के खिलाफ सख्त नियम बनाए हैं।
रैगिंग पर कुछ शिक्षण संस्थानों के अपने नियम हैं। उदाहरण के लिए, ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के पास रैगिंग पर दिशा-निर्देशों की अपनी एक नियमावली है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में रैगिंग को प्रतिबंधित करने व रोकने के लिहाज से विभिन्न राज्यों ने कानून पारित किए हैं, जो केवल उन संबंधित राज्यों में ही लागू होते हैं। एक सर्वे के अनुसार तो देश के अधिकांश कॉलेजों में करीब 40 फीसदी छात्रों को किसी न किसी रूप में रैगिंग या सीनियर छात्रों द्वारा धमकाने का सामना करना पड़ता है। अभिभावक अपने बच्चों को उनका भविष्य संवारने के लिए शिक्षा संस्थानों में भेजते हैं। मगर यह शिक्षा संस्थान रैगिंग के कारण उनके बच्चे के लिए मौत के कारण बनते हैं। (हिफी)