लेखक की कलम

अच्छी फसल की प्रार्थना का पर्व बैसाखी

(पं. आरएस द्विवेदी-हिफी फीचर)
बैसाखी विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में मनायी जाती है लेकिन देश भर में इसका उत्साह देखने को मिलता है। फसल लगभग पक जाती है और सही सलामत घर तक पहुंचे। इसके लिए प्रार्थना का यह पर्व है। इस दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है यानि इस दिन सूर्य अपनी एक राशि का चक्र पूरा कर लेता है। इसे सौर वर्ष भी कहा जाता है। इसी के चलते पंजाबियों का यह नया वर्ष होता है। इस वर्ष बैसाखी 13 अप्रैल को मनायी जा रही है। पर्व क़ी मेहनत, आस्था, भाईचारे और एकता का संदेश देता है। सिखों के लिए इसका विशेष महत्व है। इसी दिन गुरुगोविन्द सिंह के सिख समुदाय के लिए कुछ महत्वपूर्ण काम किया था। वह यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि सिख बहादुर, धार्मिक और अपनी मान्यताओं के प्रति समर्पित हैं। उन्होंने एक विशेष समारोह का आयोजन कर पांच लोगों से बलि मांगी थी। एक-एक कर पांच लोग तैयार भी हो गये। हालांकि बलि बकरों की दी गयी थी लेकिन यह बात बाद में लोगों को पता चली। इसे दीक्षा अनुष्ठान भी कहा जाता है। सन् 1699 में गुरुगोविन्द सिंह ने बैसाखी के दिन यह अनुष्ठान किया था।
बैसाखी भारत के सबसे प्रमुख फसल त्योहारों में से एक है, जिसे खासकर हिंदू और सिख समुदायों द्वारा बड़े श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार हर साल 13 या 14 अप्रैल को आता है। इस वर्ष बैसाखी 13 अप्रैल को मनाई जाएगी। यह पर्व जहां एक ओर रबी फसल की कटाई की खुशी का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर सिख धर्म के लिए इसका धार्मिक महत्व भी गहरा है। इसी दिन 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। बैसाखी विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, जम्मू और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में धूमधाम से मनाई जाती है। बैसाखी हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाई जाती है। यह वह समय है जब किसान अपनी रबी फसल की कटाई करते हैं। बैसाखी का त्यौहार सिख नव वर्ष और खालसा पंथ की स्थापना के रूप में मनाया जाता है। गुरु गोबिंद सिंह ने बैसाखी को खालसा बनाने के अवसर के रूप में चुना क्योंकि यह फसल उत्सव का दिन था और बैसाखी के दिन सभी क्षेत्रों के लोग वर्ष 1699 में फसल का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा हुए थे। इस दिन, गुरु गोबिंद सिंह ने लोगों की एक बड़ी सभा को संबोधित किया और उनसे आगे आने और अपने विश्वास के लिए अपने जीवन का बलिदान देने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने पांच सिखों, जिन्हें पंज प्यारे के नाम से जाना जाता है, को आशीर्वाद से युक्त मीठा पानी अमृत देकर बपतिस्मा दिया और उनसे खालसा पंथ का केंद्र बनाने के लिए कहा।
खालसा के गठन ने सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया और समुदाय को अन्याय एवं उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार बैसाखी एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो खालसा के जन्म, साहस, बलिदान और निस्वार्थता की भावना का जश्न मनाता है। धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा, बैसाखी लोगों के लिए संगीत और नृत्य प्रदर्शन, मेलों और दावतों जैसी विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों का आनंद लेने का भी समय है। बैसाखी पर्व का मुख्य उद्देश्य कृषि और आस्था दोनों से जुड़ा है। यह यह पर्व धार्मिक एकता, भाईचारे और सामाजिक जागरूकता का संदेश भी देता है। बैसाखी के मुख्य उद्देश्य में प्रकृति और मेहनत के प्रति कृतज्ञता जताना, धार्मिक आस्था और परंपराओं को सम्मान देना और समाज में एकता, प्रेम और सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है। साथ ही, सिख धर्म में यह दिन धार्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि 1699 में इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
बैसाखी उत्सव के दौरान, लोग प्रार्थना करते हैं और जरूरतमंदों के बीच प्रसाद वितरित करते हैं। इस दिन लोग विभिन्न अनुष्ठान और भांगड़ा भी करते हैं। बैसाखी अच्छी फसल या नए साल की शुरुआत का भी प्रतीक है। पोहेला बोइशाख की तरह, बैसाख महीने के पहले दिन को बंगाली नव वर्ष की शुरुआत की घोषणा के लिए मनाया जाता है। बैसाखी मनाने वाले विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है, जैसे की बंगाल में पोहेला बोइशाख या नबा बरशा बंगाली नव वर्ष की शुरुआत की घोषणा करने के लिए मनाया जाता है, असम में बोहाग बिहू असमिया नव वर्ष की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है और तमिलनाडु में पुथंडु तमिल नव वर्ष की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। कुछ लोग गरीब लोगों को हाथ के पंखे, मौसमी फल और पानी के घड़े भी दान करते हैं। त्योहार मनाने के लिए मेलों का आयोजन किया जाता है। गुरुद्वारों में लोगों को एक साथ बैठने और एक साथ भोजन करने के लिए ‘लंगर’ का आयोजन किया जाता है।
प्रमुख उत्सव अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में होते हैं जहाँ कई लोग प्रार्थना के लिए एकत्र होते हैं। किसान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और अपनी फसल एवं नए सीजन की शुरुआत के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं। बैसाखी के दिन कश्मीर के लोग पवित्र नदियों में स्नान का आयोजन करते हैं। हिमाचल प्रदेश में, लोग ज्वालामुखी मंदिर जाते हैं और पवित्रप्राकृतिक झरने में डुबकी लगाते हैं। जब मुगलकालीन के क्रूर शासक औरंगजेब ने मानवता पर बहुत जुल्म शुरू किए थे। खासकर सिख समुदाय पर क्रूरता करने की औरंगजेब ने सारी ही सीमाएं पार कर दी थी। अत्याचार की पराकाष्ठा तब हो गई, जब औरंगजेब से लड़ाई लड़ने के दौरान श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चांदनी चौक पर शहीद कर दिया गया। औरंगजेब के इस अन्याय को देखकर गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित करके खालसा पंथ की स्थापना की। इस पंथ का लक्ष्य हर तरह से मानवता की भलाई के लिए काम करना था। खालसा पंथ ने भाईचारे को सबसे ऊपर रखा। मानवता के अलावा खालसा पंथ ने सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए भी काम किया। इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया। इस दिन को तब नए साल की तरह माना गया, इसलिए 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जाने लगा।
बैसाखी को ऋतु परिवर्तन का प्रतीक ही नहीं माना जाता बल्कि यह पंजाबी समुदाय द्वारा नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। रबी की फसल कटाई करने के अलावा बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। इस दिन कई मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, का आयोजन भी किया जाता है। इसके साथ ही सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में अरदास लगाने के लिए भी सपरिवार जाते हैं। इसके अलावा नगर कीर्तन या शोभायात्राओं का आयोजन भी किया जाता है। बैसाखी पर्व पर खाने-पीने के विभिन्न पकवान और मीठी चीजें बनाकर
नववर्ष आगमन की खुशियां मनाई जाती है। (हिफी)

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