अपरिपक्व हैं राहुल गांधी !

कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बहुत विवादित बयान दिया है। ऐसा बयान जो करोड़ों हिंदुओं की भावना को आहत करने वाला है। उन्होंने कहा कि जो लोग अपने आपको हिंदू कहते हैं, वो चैबीसों घंटे हिंसा, हिंसा, हिंसा, नफरत, नफरत, नफरत, असत्य, असत्य, असत्य। राहुल के इस बयान पर लोकसभा में भारी हंगामा हो गया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खड़े होकर राहुल के इस विचार पर आपत्ति जताई।
अठारहवीं लोकसभा में मिली सफलता से विपक्ष जितना उत्साह में है, उससे कहीं अधिक खुमार में हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष चुने गए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी। यह सरकार पर दबाव बनाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। दबाव भी हर मामले में। इसी क्रम में उन्होंने लोकसभा में जो कहा, उससे ऐसा संदेश गया कि वह जोश में होश खोने लगे हैं और उनकी भाषा में संयत गंभीरता व जिम्मेदाराना भाव का नितांत अभाव है। अपने पहले संबोधन के दौरान राहुल ने ऐसा कुछ कह डाला जो लोग अपने आप को हिन्दू कहते हैं, वो 24 घंटे हिंसा के नफरत की बात करते हैं। राहुल गांधी का यह कथन देश भर में हिन्दू समाज को नागवार लगा है। इस का स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रतिवाद किया और कहा कि पूरे हिन्दू समाज को हिंसक कहना गंभीर मुद्दा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी राहुल से माफी की मांग की। दरअसल, राहुल भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर हमला करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने हर उस भारतीय पर टिप्पणी कर डाली जो स्वयं को गर्व से हिन्दू कहता है। वह अगर यही टिप्पणी भाजपा-संघ का नाम लेकर करते तो उचित होता। हालांकि, प्रधानमंत्री के प्रतिवाद के बाद राहुल बचाव की मुद्रा में आ गए और कहा कि वह भाजपा की बात कर रहे हैं।
राहुल ने अपने बयान में एक और गड़बड़ी की। भगवान शिव की छवि दिखाते हुए कहा कि शिवजी कहते हैं डरो मत, डराओ मत। वह अहिंसा की बात करते हैं। लेकिन शिव ने ऐसा कहा हो, कहीं संदर्भ नहीं मिलता। यह दर्शाता है कि राहुल संसद में भी चुनावी भाषणों की तरह वाहवाही लूटने के लिए कुछ भी बोल रहे हैं। चुनावी भाषण देने और संसद में बोलने में बहुत अंतर होता है, यह बात राहुल को ध्यान में रखनी चाहिए।
जब उन्होंने अहिंसा की बात की तो गृहमंत्री शाह ने राहुल पर पलटवार करते हुए आपातकाल और 1984 के सिख विरोधी दंगों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देश में आतंक फैलाया था और राहुल गांधी को अहिंसा की बात नहीं करनी चाहिए। शाह का संकेत 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राहुल के पिता राजीव गांधी द्वारा दिए गए बयान- बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही हैं की ओर था। राजीव गांधी के इस बयान के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे हुए थे। कांग्रेस के कई बड़े नेता आज भी उन दंगों के केस लड़ रहे हैं, जिनमें सिखों के गले में टायर डालकर सरेआम जिंदा जला दिया गया था।
दरअसल राहुल गांधी अब लोकसभा में विपक्ष के नेता जैसे अहम पद पर हैं अब उनको अपने शब्दों की गरिमा पर विचार रखते हुए बोलना चाहिए उनको यह समझना होगा कि वह लोकसभा में पूरे विपक्ष का नेतृत्व कर रहे हैं। उनके एक-एक शब्द का महत्व है, एक-एक भावार्थ निकाला जाएगा। वह कांग्रेस अध्यक्ष जैसी बड़ी भूमिका पाने के बाद भी नाकाम रहे , ऐसे में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका मिली है इस को अच्छी तरह निभाकर वह अपने ऊपर लगे असफलता के ठप्पे को हल्का कर सकते हैं।
हालांकि यह भी गौर तलब है कि राहुल को क्या बोलना है, इसको तैयार करने के लिए पूरी एक टीम है। राहुल जो बोलते हैं, वह उनका भाषण लिखकर देने वाले पर निर्भर करता है या तो राहुल का भाषण लिखने वाले लोग पूरा अध्ययन किए बिना भाषण लिख रहे हैं या फिर राहुल खुद उसमें अपनी मर्जी से हेर-फेर कर रहे हैं। ये दोनों ही स्थितियां नेता प्रतिपक्ष के पद पर बैठे व्यक्ति के लिए उचित नहीं हैं। राहुल का लोकसभा में पहला भाषण लोकसभा की गरिमा के अनुरूप नहीं हो कर एक चुनावी भाषण जैसा है। जाहिर है कि उन्हें खुद को प्रमाणित करने का अवसर मिला है, ऐसे में हर शब्द में, हर वाक्य में गंभीरता लाने की आवश्यकता है। यदि तथ्यहीन या आधारहीन बात कही जाएगी तो उसका मजाक ही उड़ेगा, उससे गंभीर छवि बनने से रही। संसद कोई हास्य-विनोद की जगह नहीं है,यह देश की सबसे अहम पंचायत है जहां देश को चलाने वाली नीतियां विपक्ष के सहयोग से तय और तैयार की जाती है। देश की जनता ने विपक्ष को अच्छी-खासी सीटें देकर राहुल को खुद को प्रमाणित करने का सुनहरा अवसर दिया है। वह केवल भाजपा-संघ पर हमला करके खुद को प्रमाणित नहीं कर पाएंगे, उन्हें नीतियां बनाने में अपना सकारात्मक सहयोग देना होगा। जहां गलत हो, वहां गलत कहने से कोई नहीं रोक रहा, लेकिन यदि गंभीर मामलों पर चर्चा के दौरान भी वह केवल मोदी-भाजपा पर हमले करेंगे तो उनकी खुद की छवि कैसी बनेगी, बताने की जरूरत नहीं है। अब राहुल गांधी को चुनावी मोड से बाहर आकर गंभीर नेता बनने का प्रयास करना चाहिए।
विपक्ष के नेता राहुल ने कहा है कि जो अपने आप को हिन्दू कहते हैं, वो हिंसा करते हैं। मैं फिर से दोहराता हूं कि जो अपने आप को हिन्दू कहते हैं, वो हिंसा की बात करते हैं। हिंसा करते हैं। शाह ने कहा, इस देश में शायद इनको मालूम नहीं है कि करोड़ों लोग अपने आपको गर्व से हिन्दू कहते हैं। क्या वो सभी लोग हिंसा की बात करते हैं? हिंसा की भावना को किसी धर्म से जोड़ना ठीक नहीं। संवैधानिक पद पर बैठे राहुल गांधी से गुजारिश है कि माफी मांगें। इस्लाम में अभय मुद्रा पर विद्वानों और गुरुनानक पर एसजीपीसी से मत ले लें। अभय की बात करने का हक इनका नहीं है कि इमरजेंसी में पूरे देश को भयभीत किया। दिल्ली में दिन दहाड़े हजारों सिख भाइयों का कत्लेआम हुआ। ये अभय की बात कर रहे हैं। नेता विपक्ष को पहले भाषण में सदन के संग पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए। इससे पहले, लोकसभा में भगवान शिव की तस्वीर दिखाने से रोकने पर विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी ने सवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से बार-बार पूछा कि क्या इस सदन में शिव जी का चित्र दिखाने से मनाही है? क्या इस सदन में शिव जी की तस्वीर नहीं दिखाई जा सकती है? राहुल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में शामिल हुए और अपनी बातें भगवान शिव की तस्वीर दिखाकर ही शुरू की। इस पर अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें सदन के नियमों का हवाला दिया। राहुल ने आगे कहा, जब भगवान शिव अपने गले में सांप लपेटते हैं तो वो कहते हैं कि वह हकीकत को स्वीकार करते हैं। उनकी बायीं हाथ की तरफ त्रिशूल है। त्रिशूल हिंसा का प्रतीक नहीं है बल्कि ये अहिंसा का प्रतीक है। अगर ये हिंसा का प्रतीक होता तो वह दायें हाथ में होता।
कुल मिलाकर कर राहुल गांधी का व्यवहार उनके भाषण एक अपरिपक्वता भरे अजीब किस्म के असामान्य व्यवहार और उलाहना भरे असंसदीय आक्रोश का हवाला देते हैं। देर सवेर उस विपक्ष को भी यह बात समझ में आ जाएगी जो अभी उन्हें अपना नेता मान कर पलकों पर बेठा रहा है देश के बहुसंख्यक वर्ग पर इतना आक्रामक टिप्पणी करना खुद मे शाब्दिक हिंसा है। यदि हिन्दू हिंसा और असत्य का हिमायती होता तो देश में हालात दूसरे होते। यह हिन्दू का अहिंसक सत्य परोपकार करूणा दया का स्वभाव है कि देश में सभी समुदाय अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के साथ मिलजुल कर रहते हैं ऐसा पाकिस्तान या बांग्लादेश में नहीं है। राहुल गांधी के बयान के आपत्तिजनक अंशों को लोकसभा के रिकॉर्ड से हटाने की मांग की है लेकिन राहुल ने अपने बयान को सही ठहराया है और रिकार्ड में शामिल रखने की मांग की है। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)