महाराष्ट्र में अब शिंदे की परीक्षा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में से 152 पर भारतीय जनता पार्टी भाजपा के ही उम्मीदवार चुनावी मैदान में डटे हैं। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना 80 सीटों पर किस्मत आजमा रही है। इसलिए शिंदे को अगर दुबारा सीएम बनना है तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपने प्रत्याशी जिताने होंगे। भाजपा के पास अगर अकेले दम पर सरकार बनाने को विधायक मिल गये तब शिंदे को किनारे भी किया जा सकता है । ऐसा नैतिक मूल्यों का हवाला देते हुए कहा जा सकता है। माना जा रहा है कि 75 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर है। हालांकि 2019 में, बीजेपी ने कांग्रेस के खिलाफ 66 सीटों में 50 जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 16 सीटों पर विजय हासिल की थी । अब 2024 के चुनाव में विदर्भ, पश्चिमी महाराष्ट्र, उत्तरी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, और कोंकण में कांग्रेस की भाजपा से प्रमुख रूप से टक्कर होगी । महाराष्ट्र की कमान इस बार किसके हाथों में जाएगी? इसका फैसला तो 23 नवंबर को आने वाले नतीजों से होगा। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने महायुति के बैनर तले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। मगर ऐसा लग रहा है पार्टी अपने सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल नहीं बैठा पा रही है। कई जगहों पर भाजपा और महायुति में उसकी सहयोगी अजित पवार की एनसीपी से सीधी टक्कर हो रही है। वहीं भाजपा के भीतर भी असंतोष की खबरें सामने आ रही हैं। महाराष्ट्र में कौन सा मोर्चा बाजी मारेगा, इसका संकेत हाल ही में हुए एक सर्वे में सामने आया है। सी वोटर्स के सर्वे के अनुसार महाराष्ट्र में इस बार बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ सकता है। एमवीए महायुति पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। हालांकि हरियाणा के चुनाव नतीजे किसी भी सर्वे को पक्का नहीं साबित करते।
सी वोटर्स के सर्वे के अनुसार
51.3 प्रतिशत लोग महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं। वहीं 41 फीसदी लोग राज्य में फिर से बीजेपी की सरकार चाहते हैं। इस सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि महाराष्ट्र में सीएम पद के लिए उनकी पहली पसंद कौन है? इसके जवाब में 27.6 प्रतिशत लोगों ने एकनाथ शिंदे, 22.9 प्रतिशत लोगों ने उद्धव ठाकरे, 10 फीसदी लोगों ने देवेंद्र फडणवीस, 5.9 प्रतिशत लोगों ने शरद पवार और 3.1 प्रतिशत लोगों ने अजित पवार के नाम पर मुहर लगाई है। महायुति के हालात देखें तो कई जगहों पर भाजपा और महायुति में उसकी सहयोगी अजित पवार की एनसीपी से सीधी टक्कर हो रही है। पुणे का वडगांव शेरी विधानसभा क्षेत्र इसका सबसे ताजा उदाहरण हैं। वडगांव शेरी में उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने मौजूदा विधायक सुनील टिंगरे को एनसीपी से टिकट दिया, तो भाजपा ने जगदीश मुलिक को टिकट देकर मुकाबला और भी दिलचस्प बना दिया। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले पहले ही संकेत दे चुके थे कि कुछ सीटों पर मैत्रीपूर्ण मुकाबला होगा, लेकिन इसे लेकर मतदाताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अपनी दावेदारी के सिलसिले में मुलिक ने मुंबई में देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात कर अपनी उम्मीदवारी पुख्ता करने के साथ सोशल मीडिया पर चुनाव जीतने का दावा भी किया, जिससे इस सीट पर एनसीपी और भाजपा की दोस्ती दांव पर लगी है। पुणे में टिकट बंटवारे के बाद भाजपा के भीतर भी असंतोष की खबरे सामने आईं हैं। कसबा पेठ से टिकट न मिलने के कारण भाजपा शहर अध्यक्ष धीरज घाटे और पर्वती से निराश सभागृह नेता श्रीनाथ भिमाले ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी। हालांकि, उन्हें केंद्रीय राज्यमंत्री मुरलीधर मोहोल ने शांत करने का प्रयास किया। उनके हस्तक्षेप के बाद घाटे और भिमाले ने हेमंत रासने की नामांकन रैली में शिरकत कर स्थिति को संभाला। हालांकि, शिवाजीनगर और पर्वती सीट पर इनकी अनुपस्थिति से अंदरूनी असंतोष का संकेत भी मिल रहा है।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की लड़ाई महाविकास अघाड़ी बनाम सत्तारूढ़ महायुति के बीच ही है। एमवीए में शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार) और कांग्रेस शामिल है। वहीं, महायुति में भाजपा, शिवसेना और एनसीपी हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने महायुति के बैनर तले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। मगर ऐसा लग रहा है पार्टी अपने सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल नहीं बैठा पा रही है। बीजेपी घोषित तौर पर सर्वाधिक 152 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि पार्टी ने अजित पवार की एनसीपी और शिंदे की शिवसेना के टिकट पर दो-दो कैंडिडेट उतारे हैं। महायुति के दूसरे पार्टनर शिंदे की सेना को 80 और एनसीपी को 52 सीटें दी गई हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में अविभाजित शिवसेना से गठबंधन के साथ भी बीजेपी 152 सीटों चुनाव लड़ी थी, जिनमें 105 पर जीत मिली थी। अजित पवार की पार्टी को भी इस बंटवारे से ज्यादा फायदा नहीं हुआ। उनके पास पहले 41 विधायक थे और गठबंधन में उन्हें अतिरिक्त 11 सीटें ही मिलीं। शिंदे की सेना को ज्यादा फायदा नहीं मिला तो नुकसान भी नहीं हुआ। पार्टी अपने विधायकों के अलावा समर्थकों को चुनाव में उतारने में सफल रही।
चुनाव रणनीति के तौर पर सीट बंटवारे में सबसे अधिक नुकसान शिवसेना (यूबीटी) को हुआ। बीजेपी के साथ उद्धव ठाकरे की पार्टी ने पांच साल पहले 124 कैंडिडेट उतारे थे। इस बार शिवसेना (यूबीटी) को काफी खींचतान के बाद 96 सीटें मिलीं। ठाकरे परिवार का गढ़ माने गये मुंबई और विदर्भ में सीट हासिल करने के लिए उद्धव ठाकरे को मशक्कत करनी पड़ी। 2019 में अविभाजित शिवसेना को 56 सीटों पर कामयाबी मिली थीं। दूसरी ओर, 2019 में 125 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को 23 सीटों की कुर्बानी देनी पड़ी और उसे एमवीए में 102 सीटों से संतोष करना पड़ा है। शरद पवार की एनसीपी (एसपी) को पिछले चुनाव से 38 सीटें कम अर्थात 87 विधानसभा सीटें मिलीं। पांच साल पहले कांग्रेस को 44 और एनसीपी को 54 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी।
महा विकास अघाड़ी को लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटों पर जीत मिली थी, मगर नई राजनीतिक साझेदारी का सबसे अधिक 12 सीटों का फायदा कांग्रेस को हुआ था। उसके 13 सांसद चुने गए जबकि शिवसेना (यूबीटी) को 9 उम्मीदवार ही लोकसभा पहुंच सके। नंबर के हिसाब से शरद पवार की पार्टी को अजित के बगावत के बाद भी नुकसान नहीं हुआ।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बागियों की बढ़ती संख्या महायुति और महा विकास आघाडी के लिए गंभीर समस्या बन गई है। बागियों को मनाने और मतभेद सुलझाने के लिए 4 नवंबर तक का समय था। प्रमुख पार्टियों को अपने-अपने सुरक्षित क्षेत्रों में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। महायुति ने जहां 80 बागियों की पहचान की है, वहीं विभिन्न दलों के करीब 150 नेताओं ने अपनी पार्टी या बहुदलीय गठबंधन के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ नामांकन दाखिल किया है। कांग्रेस से 103, उद्धव ठाकरे की शिवसेना
96 और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी से 87 प्रत्याशियों ने नामांकन कराया था। तीनों दलों ने अपने-अपने कोटे से छोटे सहयोगियों को सीटें दीं हैं। (हिफी)