सीबीआई को फिर बताया सुग्गा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां ने गत 13 सितंबर को आबकारी नीति से जुड़े एक मामले में सीबीआई की भूमिका पर फिर सवाल उठाया। उन्होंने सीबीआई को देश की एक प्रीमियर जांच एजेंसी बताते हुए कहा कि जनहित में उसे न सिर्फ निष्पक्ष होना चाहिए बल्कि ऐसा करके उसे दिखाना भी होगा। जस्टिस भुइयां ने कहा सीबीआई को ऐसी धारणा दूर करने का प्रयास करना चाहिए कि जांच निश्पक्ष रूप से नहीं की गयी थी और गिरफ्तारी दमनात्मक और पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई। उन्होंने कहा कि कानून के शासन द्वारा संचालित एक क्रियाशील लोकतंत्र में धारणा बेहद मायने रखती है। इसलिए जांच एजेंसी को ईमानदार होने के साथ-साथ ईमानदार दिखना भी चाहिए। जस्टिस भुइयां ने सीबीआई के संदर्भ में यह टिप्पणी आबकारी नीति से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को सशर्त जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी करते हुए की है। इससे लगभग एक दशक पहले जब कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन यूपीए की सरकार हुआ करती थी तब कोल आबंटन घोटाले की जांच के दौरान तत्कालीन सरकार को अधूरी जांच फाइल दिखाने पर सुप्रीम कोर्ट ने इसी प्रकार की टिप्पणी की थी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने तब भी सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता बताया था। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि लगभग एक दशक के बाद भी जब केंद्र में भाजपा की लगातार सरकार बनी और उसकी तीसरी पारी चल रही है तब भी सीबीआई की छवि नहीं सुधर पायी है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने ये जमानत दिल्ली सरकार की आबकारी नीति से जुड़ी सीबीआई की एफआईआर में दी है।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और उज्जवल भुइयां की बेंच ने की थी और पांच सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने जमानत देते हुए कहा कि सीबीआई को पिंजरे में बंद तोते की छवि तोड़नी चाहिए और उसे दिखाना चाहिए कि वह पिंजरे में बंद तोता नहीं है। जस्टिस ने केजरीवाल की गिरफ्तारी की टाइमिंग पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जब ईडी के मामले में जमानत मिल गई थी तभी सीबीआई ने दोबारा गिरफ्तार कर लिया। केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की थीं। इसमें एक याचिका जमानत न दिए जाने के खिलाफ थी और दूसरी याचिका इस केस में सीबीआई की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर की गई थी। मार्च 2024 में केजरीवाल को ईडी की टीम ने गिरफ्तार किया था लेकिन 12 जुलाई को ईडी के मामले में केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी मगर जमानत मिलते ही सीबीआई ने केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया था। इस कारण तब केजरीवाल जेल से बाहर नहीं आ सके थे। अब दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने केजरीवाल को जमानत मिलने पर कहा- सत्यमेव जयते. सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया ने कहा- झूठ और साजिशों के खिलाफ लड़ाई में आज पुनः सत्य की जीत हुई है। एक बार पुनः नमन करता हूँ बाबा साहेब आंबेडकर जी की सोच और दूरदर्शिता को, जिन्होंने 75 साल पहले ही आम आदमी को किसी भावी तानाशाह के मुकाबले मजबूत कर दिया था।
लोकसभा चुनावों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को चुनाव प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल को 21 दिनों यानी दो जून तक के लिए अंतरिम जमानत भी दी थी। बीते दिनों दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को भी इस मामले में जमानत मिली थी. सिसोदिया 17 महीने बाद जेल से बाहर आ सके थे। इससे पहले संजय सिंह जमानत पर बाहर आ गए थे। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि बीजेपी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर झूठे आरोपों में विपक्षी नेताओं को फँसा रही है। बीजेपी ऐसे आरोपों को खारिज कर रही है कि कानून की नजर में सब बराबर हैं।
दिल्ली सरकार ने एक नई आबकारी नीति (आबकारी नीति 2021-22) नवंबर 2021 में लागू की थी। नई आबकारी नीति लागू करने के बाद दिल्ली का शराब कारोबार निजी हाथों में आ गया था।दिल्ली सरकार ने इसका तर्क दिया था कि इससे इस कारोबार से मिलने वाले राजस्व में वृद्धि होगी। दिल्ली सरकार की यह नीति शुरू से ही विवादों में रही लेकिन जब यह विवाद बहुत बढ़ गया तो नई नीति को खारिज करते हुए दिल्ली सरकार ने जुलाई 2022 में एक बार फिर पुरानी नीति को ही लागू कर दिया था। मामले की शुरुआत दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार की उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना, आर्थिक अपराध शाखा नई दिल्ली, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को भेजी गई रिपोर्ट से हुई। यह रिपोर्ट 8 जुलाई 2022 को भेजी गई थी। इसमें आबकारी विभाग के प्रभारी होने के नाते सिसोदिया पर उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना नई आबकारी नीति के जरिए फर्जी तरीके से राजस्व कमाने के आरोप लगाए गए। रिपोर्ट में बताया गया कि कंपनियों को लाइसेंस फीस में 144.36 करोड़ की छूट दी गई थी। इससे लाइसेंसधारी को अनुचित लाभ पहुंचा, जबकि सरकारी खजाने को लगभग 144.36 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
सुप्रीम कोर्ट की सीबीआई को लेकर ये टिप्पणी इसलिए भी अहम हो जाती है, क्योंकि ठीक 11 साल और 4 महीने पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की टिप्पणी की थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता बताया था।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस आरएम लोढ़ा, जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ की बेंच ने 9 मई 2013 को सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था। सुप्रीम कोर्ट में उस वक्त कोयला घोटाले से जुड़े मामले की सुनवाई हो रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा था, सीबीआई वो तोता है जो पिंजरे में कैद है। इस तोते को आजाद करना जरूरी है। सीबीआई स्वायत्त संस्था है और उसे अपनी स्वायत्तता बरकरार रखनी चाहिए। सीबीआई को एक तोते की तरह अपने मास्टर की बातें नहीं दोहरानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को फटकार लगा रही थी और निशाना सीधा तत्कालीन कोयला मंत्री अश्विनी कुमार पर लग रहा था। सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर सख्त ऐतराज था कि कोयला घोटाले की स्टेटस रिपोर्ट किसी और को क्यों दिखाई गई। पीठ ने तीन घंटे तक सीबीआई के तत्कालीन निदेशक रंजीत सिन्हा के 9 पन्नों के हलफनामे पर गौर करने के बाद यह टिप्पणी की थी। सवाल यह है कि सत्ता परिवर्तन के एक दशक बाद भी सीबीआई की छवि क्यों नहीं सुधरी। (हिफी)