लेखक की कलम

बिहार में होगा बड़ा सियासी खेल

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
नीतीश कुमार की पिछली गलती अब न दोहराने की बार-बार सफाई पर बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह कहते हैं कि सीएम अब तक ऐसा 14 बार कह चुके हैं। राजनीति में कथनी-करनी कभी एक जैसी नहीं होती। मरते दम तक भाजपा के साथ न जाने की बात करने वाले नीतीश अब उसी के साथ हैं। इस बीच बिहार में नीतीश के पाला बदल की चर्चा भी फिर से जोर पकड़ने लगी है। उधर, अच्छी खासी नौकरी से वीआरएस लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कभी खास करीबी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने अपनी नई पार्टी बना ली है। उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों के नाम की घोषणा भी कर दी है। कुल मिलाकर राजनीतिक जानकारों की मानें, तो आरसीपी सिंह सबसे ज्यादा नुकसान नीतीश कुमार की पार्टी और एनडीए को करने जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव 2025 की प्लानिंग आरसीपी सिंह ने बहुत पहले ही कर ली है। सूत्र बताते हैं कि आरसीपी सिंह ने बहुत ही प्लानिंग के साथ पार्टी का गठन किया है। उनका लक्ष्य है, ज्यादा से ज्यादा जेडीयू को झटका देना और जेडीयू कार्यकर्ताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कराना। आरसीपी सिंह के वोट काटने का सीधा मतलब होगा, नीतीश कुमार का कमजोर होना। वहीं दूसरी ओर नीतीश के कमजोर होने से एनडीए भी पूरी तरह कमजोर होगा। इस बीच सबसे ज्यादा फायदा लालू यादव की पार्टी आरजेडी को होगा। ये भी संभावना जताई जा रही है कि आरसीपी सिंह लालू यादव से हाथ मिला सकते हैं। इसप्रकार ऐसी संभावना है कि बिहार की राजनीति में कोई बड़ा खेल होने वाला है।
बिहार के सियासी गलियारे में इन दिनों तीन बातों की खूब चर्चा हो रही है। इन बातों के आधार पर राजनीतिक जानकार आकलन भी करने लगे हैं। आकलन का लब्बोलुआब यही निकल रहा है कि आने वाले दिनों में कोई बड़ा सियासी खेल बिहार में हो सकता है। इसे समझने के लिए पहले उन तीन बातों को जानना जरूरी है। हालांकि स्थितियों को देख कर महज अनुमान ही लगाया जा सकता है। इन बातों के आधार पर किसी नतीजे तक पहुंचना उचित नहीं होगा। बहरहाल, चर्चा की इन तीन बातों में पहला है मंत्री मदन सहनी का अपने विभागीय अपर मुख्य सचिव (एसीएस) से नाराज होकर पटना छोड़ना, दूसरा नीतीश कुमार की बार-बार नरेंद्र मोदी के पांव छूने की कोशिश और तीसरी बात नीतीश कुमार की बार-बार यह सफाई कि दो बार उनसे गलती हो गई, अब नहीं होगी। वे एनडीए में ही रहेंगे। यह बात नीतीश पीएम के सामने लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक कई बार दोहरा चुके हैं। कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की मानें तो नीतीश ने 14 बार यह बात दोहराई है।
नीतीश कुमार की सरकार में समाज कल्याण विभाग के मंत्री मदन सहनी ने कहा है कि विभागीय अपर मुख्य सचिव (एसीएस) उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। लंबे समय से विभाग की कोई फाइल उनके पास नहीं आई है। ऐसे में उनके पास कोई काम ही नहीं है। इसलिए वे पटना छोड़ कर अपने चुनाव क्षेत्र में वापस लौट रहे हैं। यह एक मंत्री की पीड़ा है। ठीक ऐसी ही पीड़ा से महागठबंधन सरकार में आरजेडी कोटे के मंत्री चंद्रशेखर को रूबरू होना पड़ा था। उनकी भी अपने विभागीय एसीएस के के पाठक से नहीं पट रही थी। नीतीश कुमार इस बार मदन सहनी के साथ खड़े होंगे या नहीं, यह तो वही बता सकते हैं, लेकिन चंद्रशेखर के बजाय उन्होंने तत्कालीन एसीएस के के पाठक की ही सुनी थी।
बिहार की राजनीति में बदलाव का एक पहलू यह भी है कि नीतीश कुमार के काफी करीबी रहे पूर्व जेडीयू नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी सिंह ने अपनी नई पार्टी के विस्तार को लेकर एक्शन लेना शुरू कर दिया है। आसा यानी आप सबकी आवाज नाम से पार्टी तो बनाई है। अब पार्टी के पदाधिकारियों को जिम्मेदारी भी सौंप रहे हैं। इसी क्रम में आरसीपी सिंह ने श्आसाश् के उपाध्यक्ष सह मुख्य प्रवक्ता के रूप में लेफ्टिनेंट कर्नल कुमार सनातन उर्फ पंचम श्रीवास्तव को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। आरसीपी सिंह ने उन्हें पार्टी का मुख्य प्रवक्ता बनाया है। इसके अलावा प्रीतम सिंह को बिहार का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। आरसीपी सिंह की पार्टी बनाने के बाद से चर्चा है कि वे सबसे ज्यादा एनडीए को नुकसान पहुंचाएंगे। इतना ही नहीं आरसीपी सिंह पहले भी ऐलान कर चुके हैं कि जेडीयू के सैकड़ों कार्यकर्ता उनकी पार्टी में आने को आतुर हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं की सलाह पर ही पार्टी का गठन किया है। पार्टी पदाधिकारियों का ऐलान करते हुए आरसीपी सिंह ने जितेन्द्र प्रसाद को महाराष्ट्र का, मुकेश कुमार को राजस्थान का और शिशिर कुमार साह को दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। उन्होंने पार्टी के उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और महासचिव की भी घोषणा की है।राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव में यदि आरसीपी सिंह थोड़े बहुत सीटों पर भी अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं, तो सबसे ज्यादा नुकसान जेडीयू को पहुंचाएंगे और नीतीश कुमार के लिए तनाव का कारण बनेंगे।
आरसीपी सिंह कुर्मी जाति से आते हैं। जेडीयू के आधार वोट कुर्मी जाति और कुशवाहा से ही बनते हैं। अगर आरसीपी सिंह कुर्मी वोट और कुशवाहा में सेंधमारी करने में सफल हो जाते हैं और वो दर्जन भर सीट पर भी यदि अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं, तो ये एनडीए के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। जानकार ये भी मानते हैं कि आरसीपी सिंह पूर्व में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी रहे हैं। उनकी रणनीति से लेकर नीतीश कुमार की प्लानिंग को वो समझते हैं। इसलिए वो ज्यादा हानिकारक साबित हो सकते हैं। सियासी रूप से आरसीपी सिंह के खाते में कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं है लेकिन उनके समर्थकों की संख्या ज्यादा बताई जा रही है। बिहार में कुर्मी जाति की आबादी 2.87 फीसदी हैं। नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह एक ही जिले से आते हैं। इस जिले में दोनों की पकड़ मानी जाती है। आरसीपी सिंह ने हाल के दिनों में कुर्मी बहुल इलाकों में अपनी पैठ को मजबूत किया है। वाजपेयी सरकार में नीतीश कुमार रेल मंत्री बने, तो उन्होंने आरसीपी सिंह को विशेष सचिव बनाया। सन् 2005 के नवंबर में जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तो आरसीपी सिंह को प्रमुख सचिव बनाया। उसके बाद 2010 में आरसीपी सिंह ने वीआरएस लिया। जेडीयू ने उन्हें 2010 में राज्यसभा भेज दिया।नीतीश कुमार ने एक बार फिर 2016 में आरसीपी सिंह पर विश्वास जताया। उन्हें दोबारा राज्यसभा भेजा। दिसंबर, 2020 में आरसीपी सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। उसके बाद 2021 में नीतीश कुमार के इनकार करने के बाद भी आरसीपी सिंह केंद्र में इस्पात मंत्री बन गए। उसके बाद नीतीश कुमार से उनकी दूरी बढ़ने लगी। इस बीच ललन सिंह दोबारा नीतीश कुमार के करीब आने लगे। अंततः 2022 में जेडीयू ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया। उसके बाद आरसीपी सिंह बीजेपी में शामिल हुए। इसी साल 2024 में नीतीश के बिहार में साथ आने के बाद एनडीए ने उनसे किनारा कर लिया।
नीतीश कुमार ने अभी पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूने की कोशिश की। इससे पहले नीतीश भाजपा नेता आर के सिन्हा के पैर छू चुके हैं और उससे भी पहले वह पीएम के पैर पकड़ चुके हैं। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर ऐसा बार बार क्यों कर रहे हैं। यह भी
क्या किसी बड़े सियासी परिवर्तन का संकेत है? (हिफी)

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