लेखक की कलम

सोशल मीडिया पर फूहड़ता

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
केंद्र सरकार सोशल मीडिया पर अश्लीलता और आपत्तिजनक कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए एक नया और कड़ा कानून लाने की दिशा में काम कर रही है। मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) एक्ट को बदलकर ‘डिजिटल इंडिया बिल’ लागू किया जाएगा, जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, यूट्यूबर्स, और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स के लिए नए नियमन होंगे।
केंद्र सरकार इस बिल पर पिछले 15 महीनों से काम कर रही है और इसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग प्रावधानों में विभाजित किया जाएगा। इसमें सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार और सूचना प्रसारण से संबंधित विशिष्ट नियमों के अलावा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की गवर्नेंस पर भी ध्यान दिया जाएगा, हालांकि एआई के लिए अलग से नियम बनाए जाएंगे।
हाल ही में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर रणवीर इलाहाबादिया के विवाद के बाद सरकार ने डिजिटल इंडिया बिल के मसौदे को प्राथमिकता दी है। वर्तमान में, सरकार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जवाब देने की जिम्मेदारी से जूझ रही है कि आईटी एक्ट की खामियों को कैसे दूर किया जा सकता है, खासकर अश्लील और फूहड़ कंटेंट को नियंत्रित करने के संदर्भ में। आईटी एक्ट सन् 2000 में लागू हुआ था, जब देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या महज 60 लाख थी। आज, यह आंकड़ा 90 करोड़ से भी अधिक है, जिससे यह एक्ट अब अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। इस बदलाव को ध्यान में रखते हुए, संसदीय समिति ने सरकार से सवाल किया था कि आईटी एक्ट में अश्लील कंटेंट को लेकर क्या प्रावधान हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस मुद्दे पर सरकार से जवाब मांगेगा।
सरकार ने मार्च 2024 में 18 ऐसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक किया था, जो अश्लील कंटेंट दिखाते थे। इन प्लेटफॉर्म्स के अलावा, 19 वेबसाइट्स, 10 ऐप्स और 57 सोशल मीडिया अकाउंट्स को भी बंद कर दिया गया था. हालांकि, हमारे द्वारा की गई जांच में यह सामने आया कि इन बैन किए गए ऐप्स में से कई अब टेलीग्राम पर एक्टिव हैं और वहां नए वीडियो पोस्ट किए जा रहे हैं। इन चैनल्स पर डाउनलोड किए गए मोबाइल ऐप्स के माध्यम से भी कंटेंट उपलब्ध हो रहा है, जो नए नियमों की अवहेलना कर रहा है। डिजिटल इंडिया बिल का उद्देश्य सिर्फ डिजिटल कंटेंट को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि तकनीकी गवर्नेंस को मजबूत बनाना है, ताकि किसी भी प्रकार के ऑनलाइन अपराध, निजता उल्लंघन और सामाजिक सुरक्षा के जोखिमों से बचा जा सके। सरकार की योजना है कि नए कानून में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर विशेष नजर रखी जाए और उनका संचालन ज्यादा पारदर्शी और जिम्मेदार बनाया जाए।
बता दें कि डिजिटल इंडिया बिल के तहत सरकार का उद्देश्य एक सुरक्षित और जिम्मेदार डिजिटल वातावरण बनाने का है, जहां अश्लीलता और फूहड़ता का कोई स्थान न हो और उपयोगकर्ता के अधिकारों की सुरक्षा हो। हाल ही में यूट्यूब के एक कथित कॉमेडी शो से उठे राष्ट्रव्यापी विवाद के बाद आरोपी यूट्यूबर को गिरफ्तारी से राहत देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में आरोपी से कहा कि उसने अपने दिमाग में भरी गंदगी को उगला है। अदालत ने रणवीर इलाहाबादिया के बयान पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि उसकी बातों से बेटियों, बहनों और माता-पिता को भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह ने केंद्र सरकार से पूछा कि वह सोशल मीडिया पर अश्लीलता रोकने की योजना बताएं। अन्यथा इस मामले में कोर्ट देखेगा। उल्लेखनीय है कि यूट्यूबर और कॉमेडियन समय रैना के एक शो इंडियाज गॉट टेलेंट के एक एपिसोड को लेकर पिछले दिनों खासा विवाद हुआ, जिसको लेकर पूरे देश में तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई। कई राज्यों में अश्लील टिप्पणी करने वाले यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। दरअसल, रणवीर ने एक प्रतिभागी से उसके माता-पिता के निजी संबंधों को लेकर आपत्तिजनक सवाल किए थे। इस अमर्यादित व अश्लील टिप्पणी को लेकर देशव्यापी आलोचना की जा रही है। कालांतर यूट्यूब को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नोटिस के बाद इस एपिसोड को हटाना पड़ा था। दरअसल सोशल मीडिया पर ऐसी अश्लील व अभद्र टिप्पणी करने का यह पहला मामला नहीं है। आपको पता रहे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अनाप-शनाप बकने का सिलसिला पिछले लंबे समय से सोशल मीडिया पर चल रहा है। दरअसल, कई कॉमेडियन व कलाकार विभिन्न कार्यक्रमों में ऐसी बकवास करते रहते हैं ताकि उन्हें नकारात्मक चर्चा से
व्यापक पहचान मिल सके। लगातार कोशिश होती रहती है कि वर्जित विषयों को कार्यक्रमों में शामिल करके तरह-तरह के विवाद खड़े किए जाएं। दरअसल, टीवी चैनल भी टीआरपी के गंदे खेल में ऐसे हथकंडे अपनाने से नहीं चूकते,
जो विवाद पैदा करें। ऐसे कॉमेडी
कार्यक्रमों की लंबी श्रृंखला है जो अश्लीलता, फूहड़ता और अभद्रता को अपने विषय वस्तु बनाते हैं।
पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर वर्जना तोड़ते कार्यक्रमों की बाढ़ सी आई हुई है। विडंबना यह है कि सोशल मीडिया में संपादक नामक संस्था का कोई स्थान नहीं है जिसके चलते अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देकर तमाम वर्जित विषयों व संवादों को तरजीह दी जा रही है। एक हकीकत यह भी है कि अभद्र, अश्लील, आपत्तिजनक और पोर्नोग्राफिक कंटेंट से सोशल मीडिया कंपनियों को भी मुनाफा होता है। कार्रवाई की मांग किए जाने पर ये विदेशी कंपनियां अमेरिकी कानून को अपना कवच बनाने का प्रयास करती हैं। विगत में भी एक विवाद के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने सभी डिजिटल कंपनियों को शिकायत अधिकारी नियुक्त करने के निर्देश दिए थे। यद्यपि आईटी मंत्रालय को आपत्तिजनक एप्स और कंटेंट को ब्लॉक करने का अधिकार है लेकिन इसके बावजूद सोशल मीडिया की निरंकुश भूमिका को देखते हुए एक सख्त कानून की जरूरत महसूस हो रही है। इसके अभाव में ऐसे विवादित कार्यक्रम सुर्खियों में आते रहते हैं। हो-हल्ला होने के बाद प्राथमिकी दर्ज होती है, लेकिन बहुत कम मामलों में आरोपियों को सजा हो पाती है। उन्हें कानूनी संरक्षण देने वाले भी खुलकर सामने आते हैं। यही वजह है रणवीर इलाहाबादिया वाले मामले में शीर्ष अदालत ने उनको लेकर सख्त टिप्पणियां की हैं। नीति-नियंताओं को इस सामाजिक प्रदूषण को रोकने के लिये कारगर कानून बनाने होंगे ताकि आरोपियों को समय से सजा मिल सके, जिससे रातों-रात फेमस होने की होड़ में सामाजिक विकृतियों व कुंठाओं को प्रश्रय न मिले। सदियों से सहेजे गए जीवन मूल्यों व सभ्याचार का संरक्षण करना समाज की भी जिम्मेदारी है। यदि इसकी महीन लक्ष्मण रेखा का अतिक्रमण होता है तो सामूहिक प्रतिरोध जरूरी है। नीति-नियंताओं को भी इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा। तकनीकी
क्रांति व विकास का मतलब यह कदापि नहीं है कि हम पश्चिम की विकृतियों
व यौन कुंठाओं का अंधानुकरण करें। कालांतर ये प्रवृत्तियां न केवल सामाजिक विद्रूपताओं को सींचती हैं बल्कि
अपराधों के लिये भी उर्वरा भूमि तैयार करती हैं। साथ ही सोशल मीडिया के कंटेंट पर निगरानी के लिये सशक्त नियामक संस्था की जरूरत भी महसूस की जा रही है। (हिफी)

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