दागी और दाग लगाने वालों पर कानून

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात् सुप्रीम कोर्ट के सामने अर्जी के माध्यम से एक महत्वपूर्ण मामला पेश किया गया। यह मामला जन प्रतिनिधित्व कानून से संबंधित है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है। इस याचिका में आपराधिक मामलों में दोषी नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने की मांग की गयी है। सुप्रीम कोर्ट की अपनी सीमाएं हैं और कानून का स्थापित सिद्धांत है कि अदालत संसद को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती। याचिका कर्ता को लगता है कि कानून का मौजूदा प्रावधान अपर्याप्त है। इसलिए शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जिन मुद्दों को उठाया है। उनका व्यापक प्रभाव है। हालांकि वे स्पष्ट रूप से संसद की विधायी नीति के दायरे में हैं लेकिन आपराधिक मामलों मंे दोषी ठहराये जाने के बाद कोई व्यक्ति संसद मंे कैसे वापस आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इस मामले को भारत के निर्वाचन आयोग और केन्द्र सरकार को अपना-अपना जवाब देने के साथ यह टिप्पणी की है। केन्द्र सरकार ने इस पर अपना पक्ष रखा है। केन्द्र सरकार का कहना है कि आपराधिक मामलों में दोषी नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित करना कानून को फिर से लिखने या संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के समान है। इसलिए दागी चुनाव लड़ेंगे या नहीं, यह संसद ही तय करेगी। उधर, बेलगाम होते सोशल मीडिया पर लगाम कसने की तैयारी केन्द्र सरकार ने कर ली है। इंडिया गाट लेटेंट के अश्लील कार्यक्रम ने सरकार को मजबूर कर दिया है कि दाग लगाने वालों पर कानून बनाया जाए। सरकार ऐसी व्यवस्था करने जा रही है जिससे सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर के लिए कड़े कानून बनाए जाएंगे।
राजनीति को अपराधियों से मुक्त कराने की बातें तो सभी करते हैं लेकिन जब ठोस कार्रवाई की स्थिति आती है, तब सभी दांये-बाएं ताकने लगते हैं। केन्द्र में तीसरी बार बनी नरेन्द्र मोदी की सरकार भी इस मामले मंे जोखिम लेने के मूड में नहीं लग रही है। गत 26 फरवरी को, जब समुद्र से निकले हलाहल को पीने वाले भगवान शंकर की विवाह वर्षगांठ अर्थात् महाशिवरात्रि मनायी जा रही थी, तब केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट मंे कहा कि आपराधिक मामलों में दोषी नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित करना उचित नहीं है। राजनीति मंे आने वाले अपराधियों के प्रति यह सहानुभूति समझ मंे नहीं आती लेकिन राजनीति का जब सिर्फ चुनाव जीतना ही धर्म रह जाए तब उससे कोई आदर्श की अपेक्षा करना ही व्यर्थ है। इसलिए केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट मंे दिये हलफनामें में कहा कि यह सवाल कि आजीवन प्रतिबंध लगाना उपयुक्त होगा या नहीं यह पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। सरकार ने यह भी कहा कि अयोग्यता की अवधि एक ऐसा मामला है जो पूरी तरह से विधायी नीति में आता है इसलिए नेताओं को दण्ड के संचालन मंे उचित अवधि तक की बात कही गयी है। दण्ड को उचित अवधि तक सीमित करके अनावश्यक कठोर कार्रवाई से बचने के साथ-साथ उसका निवारण भी सुनिश्चित किया गया है। सरकार ने अपने हलफनामे मंे यह भी कहा है कि कानून का स्थापित सिद्धांत है कि दण्ड या तो समय के अनुसार निर्धारित होगा अथवा मात्रा के अनुसार। समय के आधार पर दंड के प्रभाव को सीमित करने मंे कुछ भी असंवैधानिक नहीं है। इस प्रकार सरकार की मंशा यही है कि दोषी नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित न किया जाए।
इस संदर्भ मंे निर्वाचन अयोग का विचार पहले ही सामने आ चुका है निर्वाचन आयोग नहीं
चाहता कि कोई भी दागी व्यक्ति चुनाव लड़े लेकिन इस संदर्भ मंे कानून बनाने का अधिकार न तो सुप्रीम कोर्ट के पास है और न निर्वाचन आयोग के पास। संसद चाहेगी, तभी यह रोक लग सकती है।
इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने संसद से एक और महत्वपूर्ण सवाल पूछा था। यह सवाल सोशल मीडिया से जुड़ा है। बीते दिनों इंडिया गाट लेटेंट विवाद ने सभी लोगों को सोचने पर मजबूर किया है कि सोशल मीडिया पर अश्लीलता रोकने के लिए कठोर कदम उठाना ही होगा। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से यह सवाल भी पूछा था। इस दिशा मंे सरकार की गंभीरता दिखाई पड़ रही है। सरकार सोशल मीडिया के लिए डिजिटल इंडिया कानून लाने की तैयारी कर रही है। इस अधिनियम के तहत 50 लाख के लगभग सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर कानून के दायरे मंे आ जाएंगे। कोई भी कंटेंट सोशल मीडिया पर अपलोड करने से पहले तय नियमों का पालन करना होगा। नए कानून मंे आन लाइन अपराध रोकने में भी मदद मिल सकेगी। नये कानून में आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), डीपफेक, आनलाइन सुरक्षा जैसे मुद्दे को लेकर अलग से नियम बनाए जाएंगे। नये कानून में सूचना प्रौद्योगिकी
(मध्यस्थ दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 के प्रावधानों को भी शामिल किया जाएगा। इससे आपत्तिजनक वीडियो हटाने का नियम कड़ा बनाया जाएगा। अभी 48 घंटे में वीडियो हटाने का नियम है, अब इसे 24 घंटे में हटाया जाएगा। शिकायत पर 15 दिन के अंदर कंपनी को जवाब देना अनिवार्य होगा।
आजादी के समय देश के सभी नेताओं ने गांधीजी के स्वप्न को साकार करने का संकल्प किया था, पर वर्तमान में भारतीय राजनीति का अपराधीकरण जिस तीव्र गति से बढ़ रहा है, इसे देखते हुए कोई भी कह सकता है कि हम अपने लक्ष्य से पूर्णतया भटक चुके हैं। बढ़ते अपराधीकरण के कारणों को खोजने और उसका निदान ढूंढ़ने की कोशिश में सर्वप्रथम हम पाते हैं कि हमारे देश की चुनाव प्रक्रिया में भी सुधार की आवश्यकता है।देश की राजनीति में धन व शक्ति का बोलबाला है। एक आकलन के अनुसार सामान्यतः नब्बे फीसद से भी अधिक हमारे नेतागण या तो अत्यधिक धनाढ्य परिवारों से होते हैं या फिर उनका संबंध अपराधी तत्त्वों से होता है। गुणवत्ता कभी भी हमारी चुनाव प्रक्रिया का आधार नहीं रहा है। किसी व्यक्ति पर आपराधिक मामला साबित हो और वह सजा पाए, यह बाद की बात है। इस प्रक्रिया में बहुत समय लगता है और तब तक आपराधिक लोग राजनीति में बने रहते हैं। इसलिए ऐसा कानून हो कि किसी पर कोई आपराधिक मामला लगता है तो जब तक वह उससे बरी नहीं हो जाता, तब तक उस पर किसी भी तरह के राजनीतिक चुनाव में भाग लेने पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। तभी राजनीति में अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों पर कुछ हद तक अंकुश लग पाएगा। राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या पर अगर संसद भी रोक न लगा सकी, यानी इस विषय पर कोई कानून न बना सकी तो अपराधियों को राजनीति से दूर रखने के लिये दो ही रास्ते बचते हैं। एक यह कि राजनीतिक दल ऐसे लोगों को अपनी पार्टी से टिकट ही न दें, लेकिन वर्तमान में देश की राजनीति पर नजर डाली जाए तो ऐसी संभावना कम ही है। दूसरा उपाय यह है कि देश की
जनता ऐसी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों का चुनाव ही न करे। एडीआर ने 2024 लोकसभा चुनाव में जीते
सभी 543 उम्मीदवारों के हलफनामों पर रिपोर्ट जारी की है। इसके विश्लेषण के अनुसार, 543 विजेता उम्मीदवारों में से 251 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे। (हिफी)