लेखक की कलम

कौन संभालेगा नड्डा का दायित्व

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने गत दिनों एक विशेष मंदिर में पूजा-अर्चना की तो राजनीतिक गलियारों में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की चर्चा होने लगी। समझा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को 20 मार्च तक नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल सकता है। फिलहाल जेपी नड्डा यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, लेकिन वह केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं। उनके जिम्मे रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय है। सूत्रों के अनुसार पार्टी अगले महीने नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन सकती है। देश के 12 राज्यों में बीजेपी के अध्यक्ष का चुनाव पूरा हो चुका है। जल्दी ही 6 और राज्यों के अध्यक्ष के चुनाव पूरे होंगे। इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है।मौजूदा नियमों के अनुसार बीजेपी का अध्यक्ष तीन-तीन साल का लगातार दो टर्म पूरा कर सकता है, लेकिन अब जेपी नड्डा की जगह नये बीजेपी
अध्यक्ष का इंतजार है। बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर जेपी नड्डा का कार्यकाल 2023 में ही खत्म हो गया था। बीजेपी संविधान के अनुसार वो दूसरी पारी भी संभाल सकते थे लेकिन उनको सिर्फ लोकसभा चुनाव 2024 तक ही एक्सटेंशन मिल पाया। आम चुनाव के बाद भाजपा की केंद्र में सरकार बनी तो जेपी नड्डा कैबिनेट में शामिल कर लिये गये और अब एक व्यक्ति दो पदों पर तो रह नहीं सकता। धर्मेंद्र प्रधान का भी नाम आ रहा है। ओबीसी नेता धर्मेंद्र प्रधान ने कई चुनावों में सफल कैंपेन किया है और ओडिशा में भी बीजेपी की सरकार बन गई है। वैसे तो कई ओबीसी चेहरे हैं, लेकिन एक नाम शिवराज सिंह चौहान का भी है। इलाकाई राजनीति हावी हुई तो उनको इंतजार करना पड़ सकता है। अमित शाह भी जब 2019 में गृह मंत्री के रूप में सरकार में शामिल हुए तो बीजेपी अध्यक्ष पद छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। जेपी नड्डा को पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और फिर वो राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये।
पिछली बार भी बीजेपी के अध्यक्ष पद की रेस में भूपेंद्र यादव समेत कई लोग शामिल थे, लेकिन नड्डा बाजी मार ले गये। एक बार फिर उनका नाम बीजेपी अध्यक्ष पद की रेस में जोड़ा जा रहा है, जबकि वो भी नड्डा की तरह ही कैबिनेट मंत्री हैं। वैसे तो अनुराग ठाकुर का भी नाम लिया जा रहा है, लेकिन हिमाचल चुनाव में बीजेपी की हार के बाद एक बार फिर नड्डा के ही इलाके से अध्यक्ष बनाया जाने की संभावना न के बराबर लगती है। बीजेपी के सामने बड़ा टास्क अब पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत जीतने का है। ऐसे में चर्चा में आ चुके निर्मला सीतारमण, दग्गुबाती पुरंदेश्वरी और प्रह्लाद जोशी जैसे नेताओं की संभावना ज्यादा लगती है लेकिन, बीजेपी
अध्यक्ष की कुर्सी वही संभाल पाएगा जो मोदी-शाह की अपेक्षाओं पर भी खरा उतर सके और वो संघ की भी आंखों का तारा हो। संघ अपने मिशन पर अभी से काम करने लगा है। मोहन भागवत के पश्चिम बंगाल कैंप का मकसद यही है – और बीजेपी के नये अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ा टास्क भी यही होगा। बीजेपी के गठन की शुरुआत से ही अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज और बड़े नेता बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं. बल्कि, वाजपेयी-आडवाणी ने ही बीजेपी को केंद्र की सत्ता तक भी पहुंचाया, लेकिन अमित शाह का कोई सानी नहीं नजर आता, जिन्होंने बीजेपी को चुनावी मशीन बनाकर बेहद कामयाब राजनीतिक दल बना दिया है।
मोदी-शाह के लिए तो जेपी नड्डा बहुत अच्छे अध्यक्ष माने जाएंगे। हिमाचल प्रदेश चुनाव की हार को छोड़ दें, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसके साथ ही हुए गुजरात चुनाव में जीत का क्रेडिट भी जेपी नड्डा को दे डाला था जबकि, 2022 के गुजरात चुनाव में लोगों से रिकॉर्ड वोटों की मोदी की अपील और सीआर पाटील की मेहनत का कमाल था- जिसके लिए पूरी गाइडलाइन अमित शाह ने खुद तैयार कर रखी थी। नियम के अनुसार 18 राज्यों में अध्यक्ष का चुनाव होने के बाद बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। बीजेपी के संविधान के अनुसार कम से कम आधे प्रदेशों के चुनाव होने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है। जेपी नड्डा से पहले अमित शाह और राजनाथ सिंह भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी 1980-1988 तक, लालकृष्ण आडवाणी 1986-1990, 1993-1998,2004-2005 तक, मुरली मनोहर जोशी 1991-1993 तक, कुशाभाऊ ठाकरे 1998-200 बंगारू लक्ष्मण 2000-2001 तक, के. जना कृष्णमूर्ति 2001-2202एम वेंकैया नायडू 2002-2004 तक, नितिन गडकरी 2010-2013 तक राजनाथ सिंह 2005-2009, 2013-2014 तक और अमित शाह 2014-2017 तक और 2017-2020 जेपी नड्डा 2020 से अब तक अध्यक्ष का दायित्व निभा रहे हैं।
फिलहाल, बीजेपी के प्रदेश
अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और बीजेपी के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तभी हो सकता है जब देश के कम से कम आधे राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव हो जाये। चुनाव प्रक्रिया अपनी जगह है, लेकिन जेपी नड्डा का उत्तराधिकारी वही बनेगा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और वो चेहरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी मंजूर हो। व्यावहारिक तौर पर बीजेपी में अध्यक्ष पद के लिए तय किये गये नामों पर संघ का फाइनल अप्रूवल अनिवार्य होता है। संघ और बीजेपी बरसों से ऐसे ही काम करते आ रहे हैं। वाजपेयी-आडवाणी के नेतृत्व वाली बीजेपी के दौर में भी और मोदी-शाह की बीजेपी के दौरान भी- लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के बाद थोड़ी तब्दीली आई है और वो तब्दीली भी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के चुनावों के दौरान एक बयान से आई है। चुनाव के दौरान जेपी नड्डा एक इंटरव्यू में समझाने की कोशिश कर रहे थे कि अब बीजेपी मोदी-शाह के चलते अपने आप में इतनी सक्षम हो गई है कि संघ जैसी संस्था के सपोर्ट की जरूरत नहीं रह गई है। जेपी नड्डा ने किसी का नाम नहीं लिया था, लेकिन उनका भाव और बातों का लब्बोलुआब यही था। फिर क्या था, संघ ने खुद को समेट लिया और बीजेपी की हालत ये हो गई कि अपने बूते बहुमत लायक नंबर भी नहीं जुटा सकी। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की पार्टियों को बैसाखी बनाकर बीजेपी को केंद्र में सरकार बनानी पड़ी।
संघ से बीजेपी का ये हाल भी बर्दाश्त नहीं हुआ, और मोहन भागवत ने पूरे एक्शन प्लान के साथ झारखंड में कैंप जमा दिया। झारखंड तो बीजेपी के हाथ से निकल गया, लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद अब दिल्ली में भी चुनावी फतह के बाद बीजेपी ने सरकार बनायी है। उधर, संघ अपने अगले मिशन पर अभी से काम करने लगा है। मोहन भागवत के पश्चिम बंगाल कैंप का मकसद यही है- और बीजेपी के नये अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ा टास्क भी यही होगा। जहां तक लोकसभा चुनाव में बीजेपी की फजीहत का सवाल है, तो उसके लिए भी मोदी-शाह कभी जेपी नड्डा को जिम्मेदार नहीं मानेंगे, क्योंकि उनकी नजर में तो विलेन कोई और ही रहा- जिसे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘अति आत्मविश्वास’ नाम दिया था। ऐसे में मोदी-शाह के लिए नये अध्यक्ष का कामकाज भी नड्डा के दूसरे कार्यकाल जैसा ही होना चाहिये- ऐसा अध्यक्ष जो मोदी-शाह के दिशा-निर्देशों और चुनावी एक्शन प्लान को हूबहू अमलीजामी पहना सके। (हिफी)

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