लेखक की कलम

कश्मीर में सख्त कदम जरूरी

पहलगाम की जघन्य घटना को अगर हम सबक मानते हैं, तो उसके इस पक्ष को गंभीरता से लेना होगा कि वहां सख्त कदम उठाना जरूरी है। कश्मीर की खामोशी का गलत चेहरा हमने देखा था। अब राज्य जांच एजेन्सी (एसआईए) ने जेल में बंद जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक के आवास सहित श्रीनगर के 8 ठिकानों पर छापा मारकर सही कदम उठाया है। आज से लगभग एक साल पहले सुप्रीम कोर्ट में हमारे देश के सालिसिटर नजरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यासीन मलिक कोई सामान्य आतंकवादी नहीं है। जाहिर है ऐसे लोग जेल में रहते हुए भी आतंकी गतिविधियां संचालित करते रहते हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी इस कटु सच्चाई को मानना पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर में यासीन मलिक जैसे दुर्दान्त आतंकवादी समूल मिटाने होंगे। योगी आदित्यनाथ के शब्दों में ऐसे लोगों को मिट्टी में मिला देना चाहिए। मौजूदा समय में यासीन मलिक के ठिकानों पर छापेमारी कश्मीरी पंडित महिला की हत्या के सिलसिले में की जा रही है। आज से लगभग 35 साल पहले उस महिला का अपहरण हुआ था और बाद में सामूहिक बलात्कार और यातनाएं देकर हत्या कर दी गयी थी। ऐसे मामले में न्याय शीघ्रता से होना चाहिए। विडम्बना यह भी है कि इस तरह के आतंकवादी नेता का मुखौटा लगा लेते हैं। इसी साल 4 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यासीन मलिक ने कहा था कि मैं एक नेता हूं, आतंकवादी नहीं। इस तरह के मुखौटे भी सख्त कदम उठाकर ही हटाये जा सकते हैं।
जम्मू-कश्मीर में राज्य जांच एजेंसी (एसआईए) की कई जगहों पर छापेमारी चल रही है। एसआईए की टीम जेल में बंद जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक के आवास सहित श्रीनगर के 8 ठिकानों पर छापेमारी कर रही है। अनंतनाग की 27 वर्षीय कश्मीरी पंडित महिला नर्स की अप्रैल 1990 में कश्मीर में उग्रवाद के चरम के दौरान बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। वह श्रीनगर के सौरा स्थित शेर-ए-कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान में कार्यरत थीं। 14 अप्रैल, 1990 को जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट से जुड़े आतंकवादियों ने संस्थान के हब्बा खातून छात्रावास से उनका अपहरण कर लिया था। कई दिनों तक कश्मीरी पंडित महिला नर्स के साथ सामूहिक बलात्कार और यातनाएं दी गईं थीं। 19 अप्रैल 1990 को श्रीनगर के मल्लाबाग स्थित उमर कॉलोनी में गोलियों के निशान के साथ उनका क्षत-विक्षत शव मिला था। मृतक महिला के शरीर से एक नोट मिला था, जिसमें उन्हें पुलिस मुखबिर बताया गया था। यह आरोप उन पर कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने या सरकारी नौकरी छोड़ने के उग्रवादी आदेशों की अवहेलना करने का था। आज से लगभग एक साल पहले जम्मू कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को लेकर ब्ठप् की याचिका पर
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि इस मामले में दूसरे आरोपियों को भी पक्षकार बनाए।
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जम्मू कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक की जम्मू कश्मीर की टाडा कोर्ट में व्यक्तिगत पेशी का विरोध किया था। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यासीन मलिक कोई आम आतंकवादी नहीं है। वो लगातार पाकिस्तान जाता रहा है। हाफिज सईद के साथ उसने मंच साझा किया है। हम उसे जम्मू कश्मीर नहीं ले जाना चाहते है। उसके जम्मू कश्मीर जाने से वहां का माहौल बिगड़ सकता है। अगर वो व्यक्तिगत पेशी पर ही अड़ा हुआ है तो फिर ट्रायल यहां दिल्ली ट्रांसफर किया जा सकता है।
आपको बता दें कि जम्मू कश्मीर के टाडा कोर्ट के सितम्बर 2022 के उस आदेश को चुनौती दी है गयी थी जिसमें कोर्ट ने इंडियन एयर फोर्स के चार जवानों की हत्या और रुबैया सईद के अपहरण के मामले में यासीन मलिक को व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा था।
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस ओक ने कहा कि बिना व्यक्तिगत पेशी के क्रॉस एग्जामिन कैसे होगा। हमारे देश में अजमल कसाब तक को निष्पक्ष ट्रायल का मौका दिया गया। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के लिए जेल के अंदर ही कोर्ट बनाया जा सकता है।
तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि गवाहों को कड़ी सुरक्षा की जरूरत होगी। एक गवाह की हत्या कर दी गई थी। यासीन मलिक का कहना है कि हम व्यक्तिगत रूप से पेश होंगे। वह इस कोर्ट मे भी पेश होना चाहते हैं। सीबीआई का कहना था कि माहौल बिगड़ सकता है, केस के गवाहो की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
जेल में बंद जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक ने इसी साल अप्रैल को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि वह एक राजनीतिक नेता हैं, न कि आतंकवादी और दावा किया कि अतीत में सात प्रधानमंत्रियों ने उससे बातचीत की थी। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ के समक्ष वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए यासीन मलिक ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील का हवाला दिया कि आतंकवादी हाफिज सईद के साथ उनकी तस्वीरें थीं और इसे सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दैनिक समाचार पत्रों और टेलीविजन चैनलों द्वारा कवर किया गया था। मलिक ने कहा, केंद्र सरकार ने मेरे संगठन को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आतंकवादी संगठन के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया है। यह ध्यान देने योग्य है कि 1994 में एकतरफा युद्धविराम के बाद, मुझे न केवल 32 मामलों में जमानत दी गई, बल्कि किसी भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया गया।
यासिक मलिक ने कहा, प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पहले पांच वर्षों में भी सभी ने संघर्ष विराम का पालन किया। अब अचानक, मौजूदा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में मेरे खिलाफ 35 साल पुराने आतंकवादी मामलों की सुनवाई शुरू कर दी है। यह संघर्ष विराम समझौते के खिलाफ है। मेहता ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में संघर्ष विराम का कोई महत्व नहीं है। पीठ ने कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर निर्णय नहीं कर रही है और केवल यह तय कर रही है कि उसे गवाहों से वर्चुअली जिरह करने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। दरअसल सीबीआई ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा था कि यासिन मलिक को जम्मू कोर्ट में शारीरिक रूप से पेश नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक खूंखार आतंकवादी है।
यासिन मलिक ने कहा, सीबीआई ने आपत्ति जताई है कि मैं सुरक्षा के लिए खतरा हूं। मैं इसका जवाब दे रहा हूं। मैं आतंकवादी नहीं हूं, बल्कि सिर्फ एक राजनीतिक नेता हूं। सात प्रधानमंत्रियों ने मुझसे बात की है। मेरे और मेरे संगठन के खिलाफ किसी भी आतंकवादी को समर्थन देने या किसी भी तरह का ठिकाना मुहैया कराने के लिए एक भी एफआईआर दर्ज नहीं है। मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज हैं, लेकिन वे सभी मेरे अहिंसक राजनीतिक विरोध से संबंधित हैं। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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