लेखक की कलम

जाति को लेकर अखिलेश यादव के सवाल

समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव अभी से प्रदेश विधानसभा चुनाव 2027 की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए साइकिल रैली निकाली जा रही है। वह लोकसभा चुनाव 2024 मंे पीडीए (पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक) फार्मूले को फिर से कामयाब करना चाहते हैं। इसी क्रम मंे जातिगत जनगणना की मांग विपक्ष की तरफ से हो रही थी। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी घोषणा कर दी कि जनगणना के साथ जाति गणना भी करायी जाएगी। इसी बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का सहारा लेकर एक बड़ा कदम उठाया। हाईकोर्ट के फैसले के तहत एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, पुलिस रिकार्ड्स और सार्वजनिक स्थानों से जाति का उल्लेख हटाया जाएगा। पहचान के लिए माता-पिता के नाम का उल्लेख होगा। सपा नेता अखिलेश यादव कहते हैं कि योगी सरकार पांच हजार सालों से मन मंे बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या कदम उठाएगी। इतना ही नहीं, वह कहते हैं कि वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिह्नों से जाति प्रदर्शन को मिटाने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे?
अखिलेश यादव के सवाल तार्किक ज्यादा हैं लेकिन समाज के हित में कम हैं। जातिगत भेदभाव दूर होना चाहिए, यह सभी चहते हैं। जातिगत भेदभाव की मानसिकता थोड़ी-बहुत समाप्त भी हो चुकी है। गांवों मंे भी अब यह भेदभाव कम हो गया है लेकिन शहर मंे तो एक ही होटल मंे पंडित जी और दलित वर्ग का व्यक्ति खाना खाता है। प्रतीक चिह्नों मंे भी अब विवाद नहीं है। कलावा सिर्फ पंडित जी ही नहीं बांधते और न तिलक लगाने पर उनका एकाधिकार है। इसलिए अखिलेश यादव को
समाज के व्यापक हित को देखकर इस पर विचार करना चाहिए। बहुत पहले की बात है जब स्कूल-कालेजों के
नाम से जातिगत शब्द हटाए गये थे। लखनऊ मंे ही कान्यकुब्ज (ब्राह्मण) नाम बदलकर बप्पा श्री नारायण और जयनारायण के नाम पर क्रमशः बीएसएनवी और जेएन डिग्री कालेज आज भी चल रहे हैं।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ सरकार के हालिया फैसले पर सख्त टिप्पणी की है, जिसमें नाम में जाति का उल्लेख, नेम प्लेट, एफआईआर और अन्य दस्तावेजों में जाति न लिखने का आदेश दिया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर लिए गए इस निर्णय को लागू करने के लिए सरकार ने मुख्य सचिव दीपक कुमार के माध्यम से आदेश जारी किए हैं।
अखिलेश यादव ने इस कदम को दिखावा करार देते हुए कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट में लिखा कि क्या यह फैसला 5000 साल पुरानी जातिगत मानसिकता को खत्म कर पाएगा? अखिलेश यादव ने अपने पोस्ट में पांच प्रमुख सवाल उठाए, जो योगी सरकार की नीति पर सवालिया निशान लगाते हैं। उन्होंने पूछा- और 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा? वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिन्हों से जाति-प्रदर्शन को मिटाने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे? किसी से मिलने पर नाम से पहले जाति पूछने की मानसिकता को खत्म करने के लिए क्या उपाय होंगे? किसी का घर धुलवाने जैसे जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और झूठे आरोप लगाकर बदनाम करने की साजिशों को रोकने के लिए क्या योजना है?
ये सवाल समाजवादी पार्टी के नेता ने योगी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए पूछे हैं, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गये। बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया है। इस फैसले के तहत एफआईआर गिरफ्तारी मेमो, पुलिस रिकॉर्ड्स और सार्वजनिक स्थानों से जाति का उल्लेख हटाया जाएगा। पहचान के लिए माता-पिता के नाम का उपयोग होगा, जबकि थानों के नोटिस बोर्ड, वाहनों और साइनबोर्ड्स से जातीय संकेत हटाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध और सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी की बात कही गई है। हालांकि एससी-एसटी एक्ट जैसे मामलों में छूट रहेगी। पुलिस नियमावली में संशोधन होगा।
अखिलेश यादव का यह पोस्ट सरकार के इस कदम को नाकाफी बताता है। सपा नेता का कहना है कि सतही बदलाव से समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी जातिगत सोच नहीं बदलेगी।
यूपी में जातिगत भेदभाव खत्म करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में पुलिस रिकॉर्ड्स और सार्वजनिक स्थलों से जाति के उल्लेख पर रोक लगा दी गई है। कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी किए हैं, जिसके मुताबिक, एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो आदि में जाति का उल्लेख हटेगा और माता-पिता के नाम जोड़े जाएंगे। इसे यूपी के लिए सरकार का एक बड़ा फैसला माना जा रहा है। इस मामले में यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, माननीय न्यायालय का आदेश है। हम लोग भी जातिवाद के पक्ष में नहीं रहते हैं। हम लोग सबका साथ सबका विकास की सोच रखते हैं। जातिवाद को करने वाले कांग्रेस और सपा वाले हैं। जातिवाद आरजेडी और इंडी गठबंधन वाले करते हैं। हम जातिवादी नहीं हैं, हम राष्ट्रवादी हैं और सबका साथ सबका विकास करने वाले हैं।
कवि बच्चालाल उन्मेष ने कहा है जाति है कि जाती नहीं, शर्म है कि आती नहीं है। दिए में तेल भी, पर एक भी बाती नहीं। जाति है कि जाती नहीं…। यह कविता भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था पर तंज के तौर पर लिखी थी। लेकिन जाति सच में नहीं जा रही है। जाति जनगणना की घोषणा होते ही देश भर में सत्ता पक्ष से जुड़े सियासी दल हों या विपक्षी पार्टियां सभी इसे एक बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं। लेकिन देश में एक दौर ऐसा भी रहा जब जाति को तोड़ने के लिए भी लोगों ने संकल्प लिया। खासकर देश की मौजूदा राजनीति के प्रमुख दलों में भाजपा और समाजवादी विचारधारा की पार्टियां जिस जेपी आंदोलन के बहाने कांग्रेस के खिलाफ खड़े हुए उस जेपी ने ही जाति-भेद मिटाने को 1974 में जनेऊ तोड़ो आंदोलन चलाया था। जेपी के गांव सिताब दियरा में जाति भेद मिटाने के लिए छह सितंबर 1974 को जनेऊ तोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था। गांव में स्थित पीपल के पेड़ के नीचे विशाल सभा हुई थी। तब जेपी के साथ लगभग 10 हजार लोगों ने अपना जनेऊ तोड़ यह संकल्प लिया था कि वे जाति प्रथा को नहीं मानेंगे। इस आंदोलन में स्वयं युवा तुर्क चंद्रशेखर सभा का संचालन कर रहे थे। वही चंद्रशेखर बाद में देश के प्रधानमंत्री बने। भारत की सियासत में दलित राजनीति को साधने के लिए सियासी दल जिन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उन्होंने भी जातिवाद के खिलाफ एक व्यापक अभियान चलाया, जिसमें उनकी मुख्य बातें थीं जाति व्यवस्था को खत्म करना, दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना, और एक समान समाज की स्थापना करना। उन्होंने अपनी किताब जाति का विनाश में जाति व्यवस्था की आलोचना की और अंतरजातीय विवाह तथा धार्मिक ग्रंथों के विनाश का समर्थन किया।
तमिलनाडु में कई सामाजिक आंदोलन के जनक रहे ई।वी। रामास्वामी नायकर ‘पेरियार’ भी जाति व्यवस्था के विरोधी थे। उनका मानना था कि “हिंदू-धर्म और जाति-व्यवस्था नौकर और मालिक का सिद्धांत स्थापित करते हैं।” पेरियार जाति व्यवस्था के घोर विरोधी थे। उन्होंने इसे सामाजिक अन्याय और असमानता का कारण माना। उन्होंने तर्क दिया कि जाति व्यवस्था केवल एक सामाजिक संरचना नहीं है, बल्कि यह धर्म और संस्कृति के द्वारा भी समर्थित है, और इसलिए इसे खत्म करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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