लेखक की कलम

अवध ओझा की सियासी आरजू

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
राजनीति का आकर्षण सबसे उच्च स्तर पर है और आईएएस, पीसीएस भी इस दुनिया मंे आने को बेचैन रहते हैं। इसके बावजूद बौद्धिक क्षेत्र के लोग राजनीति को अच्छा नहीं समझते हैं। शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। उन्होंने अपने स्कूल सखा राजीव गांधी के अनुरोध पर संसदीय चुनाव लड़ा। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे कद्दावर नेता को पराजित कर सांसद बन गये लेकिन बहुत जल्द उन्हें राजनीति की सच्चाई समझ मंे आ गयी और उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। अब शिक्षा जगत मंे काफी नाम कमा चुके अवध ओझा, जिनको ओझा सर के नाम से ज्यादातर लोग जानते हैं, ने राजनीति की राह पर कदम रखा है। वह अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हुए हैं। इससे पहले वह कांग्रेस में जाने का इरादा जता
चुके थे और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बेहतर नेता बताया था। कांग्रेस मंे उनको हरी झंडी नहीं
मिल पायी थी। आम आदमी पार्टी मंे शिक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है लेकिन सवाल यह है कि क्या ओझा सर भी उतने ही महत्वपूर्ण नेता पार्टी मंे बन सकेंगे?
अवध ओझा की पृष्ठभूमि ऐसी रही है जो आप के लिए भी राजनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकती है। टीचर के रूप में उनकी जो छवि बनी है, वह जाति-धर्म के बंधन से परे है। वह युवा मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं, ऐसी आप की उनसे अपेक्षा होगी। आप शिक्षा के एजेंडे को मतदाताओं के बीच रखने के लिए उनमें ‘ब्रांड एंबेसेडर’ की छवि देखती होगी। शिक्षक होने के नाते उनकी तर्क क्षमता का राजनीतिक इस्तेमाल बेहतर तरीके से हो सकता है। वह राजनीतिक बातों को भी गैर राजनीतिक दलीलों से पुख्ता तरीके से रख सकते हैं। आप की उम्मीद यह भी होगी कि वह यूपी से हैं तो पूर्वांचली मतदाताओं के बीच भी उनका असर हो सकता है। दिल्ली में पूर्वांचली मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है।
अवध ओझा को पार्टी में शामिल कराते वक्त अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने जिस तरह बार-बार जोर दिया कि वह शिक्षा के क्षेत्र में काम करेंगे, इससे तो ऐसा लगता है जैसे वह दिल्ली में अगले साल आप की सरकार बनने की स्थिति में शिक्षा मंत्री बनने की ‘डील’ करके पार्टी में आए हो। हो सकता है अगली सरकार बनने की स्थिति में अरविंद केजरीवाल शिक्षा मंत्री के रूप में मनीष सिसोदिया का विकल्प अवध ओझा में देख रहे होंगे। आप दिल्ली की सत्ता में है और फरवरी में होने वाले चुनाव में जीत हासिल कर एक बार फिर सरकार बनाने की जिद्दोजहद में जुटी है। अवध ओझा का आप में शामिल होना दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है। आप ने शिक्षा को अपना एक महत्वपूर्ण यूएसपी बनाया है। वह चुनाव मैदान में भी जब जाती है तो शिक्षा में अपनी सरकार द्वारा किए गए काम गिना कर वोट मांगती रही है। इस बार भी ऐसा ही कर रही है। ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र से एक व्यक्ति को पार्टी में शामिल कराने को वह शिक्षा के एजेंडे के प्रति अपनी गंभीरता का तर्क मजबूत कर सकती है। अवध ओझा ‘सर’ अब ‘सर जी’ की पार्टी के सिपाही हो गए हैं।
आईएएस-आईपीएस बनने की तैयारी करने वाले छात्रों को कोचिंग देकर लोकप्रिय हुए अवध ओझा ने दो दिसंबर को अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सदस्यता ली। अवध ओझा यूपी के गोंडा के हैं। वह लंबे समय से राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाले हुए थे। उन्होंने माना है कि वह लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट चाह रहे थे। इसके लिए उन्होंने कोशिश भी की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। ओझा ने यह भी माना कि वह किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ सकते थे- भाजपा से भी और कांग्रेस से भी। मतलब जहां से टिकट मिल जाए लेकिन, अब उन्होंने आप में एंट्री लेकर राजनीतिक पारी शुरू की है।
अवध ओझा के लिए अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने का यह अपेक्षाकृत आसान रास्ता साबित हो सकता है। वजह यह कि हाल ही में वह एक इंटरव्यू में राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी से बेहतर नेता बता चुके थे। इससे पहले के भी उनके कई ऐसे बयान हैं, जो भाजपा समर्थकों को पसंद नहीं आते रहे हैं। इसके अलावा, यह भी तथ्य है कि उनके पास भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा कुछ नहीं है, जो पार्टी इस सबको नजरअंदाज कर उन्हें सदस्य बना लेती। ऐसे में भाजपा में उनकी एंट्री लगभग असंभव ही थी। रही बात कांग्रेस में एंट्री की, तो वहां के लिए उन्होंने कोशिश कर ली थी। लोकसभा चुनाव से पहले पर बात नहीं बनी। अब अगर वह कांग्रेस में चले भी जाते तो राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी होने की संभावनाएं सीमित ही रहतीं। ऐसे में आप उनके लिए सबसे सुरक्षित और संभावनाओं से भरा ठिकाना है। बहरहाल, यूपीएससी के सबसे मशहूर शिक्षकों में शामिल अवध ओझा ने राजनीति का दामन थाम लिया है। सोशल मीडिया पर मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर लोकप्रिय अवध ओझा ने अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले ली है। पिछले कुछ समय से उनके आम आदमी पार्टी में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं। इससे पहले भी एक बार उनके राजनीति में उतरने की चर्चा हुई थी। आप सदस्यता समारोह में अवध ओझा सर से पूछा गया कि क्या वो 2025 में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि अब वो पार्टी का हिस्सा हैं। पार्टी जो भी आदेश देगी, वो वही करेंगे। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने कहा कि थोड़ा सा सस्पेंस बना रहने देना चाहिए।
अवध ओझा इससे पहले प्रयागराज सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इस सिलसिले में उनकी बीजेपी के कई नेताओं से मुलाकात भी हुई थी लेकिन उनको टिकट नहीं मिल पाया था। प्रयागराज के अलावा कैसरगंज सीट से भी चुनाव लड़ने की चर्चा थी। अवध ओझा ने अखिलेश यादव को एक विजनरी नेता बताते हुए कहा था कि वो देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। उन्होंने राहुल गांधी को प्रियंका गांधी से बेहतर नेता बताया था और कहा कि प्रियंका एक अच्छी कोअर्डिनेटर और आयोजक हैं। वह कई मौकों पर अरविंद केजरीवाल की भी तारीफ कर चुके हैं। अवध ओझा ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता लेते ही कहा कि पार्टी जो भी काम देगी, वो उसे करेंगे। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अवध ओझा जी लाखों-करोड़ों युवाओं का नाम हैं। उन्होंने युवाओं को प्रेरणा दी है। वो युवाओं को एक अच्छा जीवन जीने के लिए संदेश देते हैं। इनके आने से देश में शिक्षा मजबूत होगी क्योंकि वो शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। राष्ट्रनिर्माण में शिक्षा का सबसे बड़ा महत्व है। अच्छे लोगों को राजनीति में लाया जाए ताकि वो अच्छा काम कर सकें।
यूपीएससी शिक्षक अवध ओझा ने कुछ समय पहले आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी तब से ही उनके जल्द ही आप में शामिल होने की चर्चा जोरों पर थी। अवध ओझा को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करवाने वाले टीचर के तौर पर जाना जाता है। वह पिछले 22 सालों से स्टूडेंट्स को यूपीएससी कोचिंग दे रहे हैं। अवध ओझा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं। सिर्फ इंस्टाग्राम पर ही 22 लाख लोग उन्हें फॉलो कर रहे हैं। अवध ओझा ने अपने कोचिंग करियर की शुरुआत इतिहास विषय के साथ की थी। 1992 में इलाहाबाद पहुंचने के बाद उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी शुरू की थी। हालांकि, यूपीएससी के सभी अटेंप्ट पूरे होने के बाद भी वह यूपीएससी क्रैक नहीं कर पाए थे। रिपोर्ट्स के अनुसार यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के आखिरी प्रयास में भी नाकामयाब रहने के बाद जब वह घर पहुंचे तो उनकी मां बेहद निराश हो गईं। दोनों के बीच किसी बात विवाद हो गया और फिर मां ने उन्हें घर से निकल जाने के लिए कह दिया। अवध ओझा ने इसे इतनी गंभीरता से ले लिया कि 2000 से 2007 तक घर ही नहीं गए। इस प्रकार उनका स्वभाव राजनीति की दुनिया के रुख से मेल नहीं खाता है। (हिफी)

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