
(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
निशाचरों की आधी सेना का संहार हो चुका है तो रावण चिंतित हो गया। अपने पिता को चिंतित देखकर मेघनाद युद्ध करने आ गया। इन्द्र पर विजय प्राप्त करने वाला मेघनाद महान योद्धा है। उसने इस तरह बाणों की वर्षा कर दी कि वानर-भालू समर भूमि में गिर पड़े। मेघनाद शेर की तरह गर्जना करके लड़ रहा है। यह देखकर हनुमान जी उससे युद्ध करने आते हैं लेकिन हनुमान जी के बार-बार ललकारने पर भी मेघनाद उनसे नहीं लड़ता। हनुमान जी का बल वह अशोक वाटिका में देख चुका है। इसलिए वह सीधे प्रभु श्रीराम की तरफ दौड़ता जा रहा है। उसने प्रभु श्रीराम पर अनेक शस्त्रों से भी प्रहार किया लेकिन प्रभु ने उन अस्त्र-शस्त्रों को पल भर में नष्ट कर दिया। मेघनाद मायावी युद्ध करने लगे, तब श्री लक्ष्मण जी प्रभु श्रीराम से आज्ञा पाकर युद्ध करने को चल देते हैं। यही प्रसंग यहां बताया गया है। अभी तो वानर सेना लंका पर धावा बोल रही है-
ढाहे महीधर सिखर कोटिन्ह
विविधि गोला चले।
घहरात जिमि पबिपात गर्जत जनु प्रलय के बादले। मर्कट बिकट भट जुटत कटत न लटत तन जर्जर भए।
गहि सैल तेहि गढ़ पर चलावहिं जहं सो तहं निसिचर हए।
मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ़ पुनि छेंका आइ।
उतर्यो वीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ।
कहं कोसलाधीस द्वौ भ्राता,
धन्वी सकल लोक विख्याता।
कहं नलनील दुबिद सुग्रीवा, अंगद हनूमंत बलसींवा।
कहां विभीषनु भ्राता द्रोही, आजु सबहि हठि मारउँ ओही।
अस कहि कठिन बान संधाने, अतिसय क्रोध श्रवन लगि ताने।
सर समूह सो छाड़ै लागा, जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा।
जहं तहं परत देखिअहिं बानर, सन्मुख होइ न सके तेहि अवसर।
जहं तहं भागि चले कपिरीछा, बिसरी सबहि जुद्ध कै ईछा।
सो कपि भालु न रन महं देखा,
कीन्हेसि जेहि न प्रान अवसेषा।
दस दस सर सब मारेसि,
परे भूमि कपिबीर।
सिंहनाद करि गर्जा
मेघनाद बल धीर।
वानर-भालुओं ने लंका पर धावा बोला और पर्वतों के करोड़ों शिखर ढहा दिये। अनेक प्रकार से गोले चलने लगे। वे गोले ऐसे घहराते हैं जैसे कि वज्रपात हो रहा हो अर्थात् आकाशीय बिजली गिरती हो और योद्धा ऐसे गरजते हैं मानों प्रलयकाल के बादल हों। विकट वानर योद्धा एक-दूसरे से भिड़ते हैं, कटते हैं अर्थात् घायल होते हैं, उनके शरीर चलनी की तरह छिद्र युक्त (जर्जर) हो गये हैं, तब भी वे लड़ते अर्थात हिम्मत नहीं हारते हैं। वे पहाड़ उठाकर उसे किले पर फेंकते हैं, इससे राक्षस जहां-जहां भी हैं, वे मर जाते हैं। मेघनाद ने जब कानों से सुना कि वानरों ने फिर किले को आकर घेर लिया है तो वह किले से उतरा और डंका बजाकर लड़ने को चल पड़ा। मेघनाद ने पुकार कर कहा समस्त लोकों में प्रसिद्ध
धनुर्धर कोशलाधीश दोनों भाई कहां हैं? नल, नील, द्विविद, सुग्रीव और बल की सीमा अंगद व हनुमान कहां हैं? भाई से द्रोह करने वाला विभीषण कहां है? आज मैं सबको और उस दुष्ट (विभीषण) को तो हठपूर्वक मारूंगा। ऐसा कहते हुए मेघनाद ने धनुष पर कठोर वाणों को चढ़ाया और अत्यंत क्रोध करके धनुष को कान तक खींचा। इस प्रकार वह बाणों के समूह छोड़ने लगा, मानों बहुत से पंख वाले सांप दौड़े चले जा रहे हों। जहां-तहां वानर गिरते दिखाई पड़ने लगे। उस समय कोई भी उसके सामने नहीं आ रहा। रणभूमि में एक भी ऐसा वानर-भालू नहीं दिखाई पड़ा जिसको उसने प्राण मात्र अवशेष न कर दिया हो अर्थात् उनमें बल-पुरुषार्थ नहीं रह गया, सिर्फ प्राण बाकी है। इसके बाद मेघनाद ने सभी को दस-दस बाण मारे, जिससे वानर वीर पृथ्वी पर गिर पड़े। बलवान और धीर मेघनाद सिंह के समान गर्जना करने लगा।
देखि पवनसुत कटक बिहाला, क्रोधवंत जनु धायउ काला।
महासैल एक तुरत उपारा, अतिरिस मेघनाद पर डारा।
आवत देखि गयउ नभ सोई, रथ सारथी तुरग सब खोई।
बार-बार पचार हनुमाना, निकट न आव मरमु सो जाना।
रघुपति निकट गयउ घननादा, नाना भांति करेसि दुर्बादा।
अस्त्र-सस्त्र आयुध सब डारे, कोतुकहीं प्रभु काटि निवारे।
देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना, करै लोग माया विधि नाना।
जिमि कोउ करै गरुड़ सैं खेला, डरपावै गहि स्वल्प सपेला।
जासु प्रबल माया बस सिव विरंचि बड़ छोट।
ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट।
वानर सेना को व्याकुल देखकर पवनपुत्र हनुमान क्रोध करके ऐसे दौड़े मानों स्वयं काल दौड़ा आता हो। उन्होंने तुरन्त एक बड़ा पहाड़ उखाड़ लिया और बड़े ही क्रोध के साथ उस पहाड़ को मेघनाद की तरफ फेंका। पहाड़ को आता देखकर मेघनाद आकाश में उड़ गया। उसका रथ, सारथी और घोड़े सब नष्ट हो गये। हनुमान जी मेघनाद को बार-बार ललकारते हैं लेकिन वह निकट नहीं आता क्योंकि वह उनके बल का मर्म जानता है। अशोक वाटिका में मेघनाद हनुमान जी से लड़ चुका था। इसलिए मेघनाद हनुमान जी से न लड़कर सीधे श्रीराम जी के पास पहुंच गया और वहां कई प्रकार से दुर्वचन कहने लगा। इसके बाद उसने प्रभु श्रीराम पर अस्त्र-शस्त्र और सभी हथियार चलाए। प्रभु ने खेल में ही उन सभी को काटकर अलग कर दिया। श्रीरामजी का प्रताप (सामथ्र्य) देखकर वह मूर्ख लज्जित हो गया और अनेक प्रकार की माया करने लगा जैसे कोई व्यक्ति छोटा सा सांप का बच्चा हाथ में लेकर गरुड़ को डरावे और उससे खेल करे। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि शिवजी और ब्रह्माजी तक बड़े-छोटे (सभी) जिनकी अत्यंत बलवान माया के वश में हैं, नीच बुद्धि निशाचर उन्हीं को अपनी माया दिखा रहा है।
नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा, महि ते प्रगट होहिं जलधारा।
नाना भांति पिसाच-पिसाची, मारु काटु धुनि बोलहिं नाची।
बिष्टा, पूय रुधिर कच हाड़ा, बरषइ कबहुं उपल बहु छाड़ा।
बरषि धूरि कीन्हेेसि अंधियारा, सूझ न आपन हाथ पसारा।
कपि अकुलाने माया देखें, सब कर मरन बना एहि लेखें।
कौतुक देखि राम मुसुकाने, भए सभीत सकल कपि जाने।
एक बान काटी सब माया, जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया।
कृपा दृष्टि कपि भालु बिलोके, भए प्रबल रन रहहिं न रोकें।
मेघनाद आकाश में जाकर बहुत से अंगारे बरसाने लगा, पृथ्वी से जल की धाराएं प्रकट होने लगीं। अनेक प्रकार के पिशाच तथा पिशाचिनियां नाच-नाचकर मारो-काटो की आवाज करने लगीं। वह कभी तो बिष्ठा, पीब, खून, बाल और हड्डियां बरसाता था और कभी बहुत से पत्थर फंेंक देता था, फिर उसने धूल बरसाकर ऐसा अंधेरा कर दिया जिससे अपना ही फैलाया हाथ नहंी दिखता था। माया देखकर वानर व्याकुल हो गये। वे सोचने लगे कि इस तरह तो हम सभी मारे जाएंगे। प्रभु श्रीराम यह कौतुक देखकर मुस्कराए। उन्होंने जान लिया कि सब वानर डर गये हैं, तब श्रीराम जी ने एक ही बाण से सारी माया काट डाली जैसे सूर्य
अंधकार के समूह को नष्ट कर देता है। इसके बाद प्रभु श्रीराम ने वानर-भालुओं को कृपा की दृष्टि से देखा जिससे वे इतने प्रबल हो गये कि रण में रोकने से भी नहीं रुकते। -क्रमशः (हिफी)