मोहन भागवत का सामयिक संदेश

- हमको एक होना है तो एक सा होना पड़ेगा अर्थात् मेरा जैसा ही बनना पड़ेगा।
- आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ा बयान दिया था।
- मोहन भागवत ने कहा- धर्म का कार्य हमेशा पवित्र रहता है
धर्म को समझना और धार्मिक चोला पहनना अलग-अलग बातें हैं। हमारे सनातन हिन्दू धर्म को लेकर भी यही कहा जा सकता है लेकिन युगों से यह लोगों को राह दिखा रहा है इसी बात को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने गत दिनों महाराष्ट्र के नागपुर मंे धर्म जागरण न्यास के प्रांत कार्यालय में समझाने का प्रयास किया।
धर्म जागरण न्यास के कार्यालय का उद्घाटन करने के बाद संघ प्रमुख ने कहा धर्म का कार्य केवल भगवान (सर्वशक्तिमान सत्ता) के लिए नहीं होता बल्कि धर्म का कार्य समाज के लिए होता है। उन्होंने हिन्दू धर्म और अन्य सम्प्रदायों का बिना नाम लिये उनमंे बड़े अंतर को भी बताया। मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया में ऐसे भी विचार हैं जो कहते हैं हमको एक होना है तो एक सा होना पड़ेगा अर्थात् मेरा जैसा ही बनना पड़ेगा।
हम हिन्दू धर्म के लोग कहते हैं कि ऐसा नहीं है। एक होने के लिए एक जैसा बनने की जरूरत नहीं बल्कि विविधता को स्वीकार करना, सबके प्रति सद्भावना रखना जरूरी है। सभी के रास्ते एक ही जगह जाएंगे। दूसरे का रास्ता जबर्दस्ती बदलने का प्रयास मत करो। संघ प्रमुख का सीधा इशारा अवैध धर्मांतरण की तरफ है जिसका इन दिनों बड़े स्तर पर खुलासा हो रहा है।
महाराष्ट्र के नागपुर में धर्म जागरण न्यास के प्रांत कार्यालय के उद्घाटन पर बोलते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा कि धर्म का कार्य केवल भगवान के लिए नहीं होता बल्कि धर्म का कार्य समाज के लिए होता है। मोहन भागवत ने कहा कि देश का इतिहास देखें, धर्म के लिए कितने बलिदान हुए, मुंडो के ढेर लग गए, यज्ञोपवित मनो से तौले गये, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा।
दुनिया में ऐसे भी विचार है जो कहते हैं कि हम सबको एक होना है, तो एक सा होना पड़ेगा। हम कहते हैं कि ऐसा नहीं है, एक होने के लिए एक सा होने की जरूरत नहीं है।
मोहन भागवत ने कहा- धर्म का कार्य हमेशा पवित्र रहता है, क्योंकि जिसको हम धर्म कहते हैं भारत के लोग, वह धर्म कैसा है, वह सत्य है, आप उसको मानो या न मानो वह है, जैसे गुरुत्वाकर्षण है, आप उसको मानो या ना मानो वह काम करेगा, उसको मान कर आप चलेंगे तो आप अच्छी तरह चल सकेंगे, उसको नहीं मानना यह तय करके जाओगे तो आपको ठोकर लग जाएगी, क्योंकि मनुष्य के जीवन में प्रसंग आते हैं, जिसमें जो ठीक है, सही है, जो करना चाहिए, वो मालूम होकर भी हो सकता है कि वह उसके विरुद्ध जाए उस पर नहीं चलना चाहिए।
मोहन भागवत ने कहा- संकट आता है शक्ति क्षीण हो जाती है, धैर्य टूट जाने के बाद, सारथी लोग थकते नहीं रुकते नहीं धर्म का अर्थ कर्तव्य भी है, मातृत्व धर्म, पितृ धर्म है, मित्र धर्म है। धर्म का अर्थ कर्तव्य भी है, धर्म यानी कर्तव्य है, राजधर्म है, प्रजा धर्म है, पुत्र धर्म है, पितृ धर्म है, उस पर जो चलते हैं वो पक्के रहते हैं, देश का इतिहास देखें, धर्म के लिए कितने बलिदान हुए, मुंडों के ढेर लग गए, योज्ञोपवित मनो से तौले गये, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा, छावा फिल्म तो आप ने भी देखी है, हमारे लोगों ने ही किया है, हमारे सामने वह आदर्श है, इतना वह क्यों कर पाए, अपने लोग, केवल बड़े लोग नहीं थे, सामान्य लोग भी थे, वह इसलिए कर पाए, मन में निष्ठा थी कि हमारा धर्म सत्य पर आधारित है।
संघ प्रमुख ने कहा- सामान्य व्यवहार में हम सब अलग-अलग दिखते हैं, परंतु हम अलग-अलग होते नहीं है, हम सब एक ही हैं, क्योंकि यह सारा अलग-अलग दिखता है, वह एकता का आविष्कार है, एकता जैसी है वैसी सामने आती है, उसका कोई गुण नहीं है, वो अपने आप को सजा के सामने लाती है, तो हमको अच्छा लगता है, यह बात हमारे यहां एक सूत्र में कही गई है, ऐसा होने के कारण यह धर्म अपनापन सिखाता है और इस विविधता को पूर्ण स्वीकार करता है, सारी विविधता को हम स्वीकार करते हैं, विविध है इसलिए हम अलग नहीं है, यह हमारा कहना है।
मोहन भागवत ने कहा- दुनिया में ऐसे भी विचार है जो कहते कि हम सबको एक होना है, तो एक सा होना पड़ेगा, हम कहते हैं कि ऐसा नहीं है, एक होने के लिए एक सा होने की जरूरत नहीं है, सभी विविधता को स्वीकार करना सबके प्रति सद्भावना रखना, कहते हैं सभी के रास्ते एक ही जगह जाएंगे, रास्ते के कारण झगड़ा मत करो, दूसरे के रास्ते को जबरदस्ती बदलने की कोशिश मत करो, इसकी आवश्यकता नहीं है, रास्ता हर आदमी को मिलता है, उसकी स्थिति के अनुसार उसको मिलता है, जहां से हम चले वहां से रास्ता, रास्ते को लेकर झगड़ा मत करो, इतना पवित्र धर्म है।
संघ प्रमुख ने कहा- इस धर्म की सारे विश्व को आवश्यकता है, एक दूसरे के साथ विविधताओं को ठीक से सहेज कर, कैसे रहना यह मालूम नहीं दुनिया को, इसलिए दुनिया में इतने संघर्ष चल रहे हैं, दुनिया में पर्यावरण खराब हो रहा यह सब हो रहा है, यह जो हमारा हिंदू धर्म है, वास्तव में हिंदुओं के ध्यान में पहले आया, उन्होंने आज तक उसको अपने आचरण में बचा कर रखा, इसलिए हिंदू धर्म कहलाता है, नहीं तो सृष्टि धर्म है, विश्व धर्म है, मानव धर्म है, उस धर्म की श्रद्धा का पूर्ण जागरण प्रत्येक के हृदय हो, और ऐसा होने के बाद भी परिस्थितियों के कारण धैर्य चुकना ये मनुष्य के लिए संभव नहीं है, परिस्थितियां विपरीत होगी तब भी समाज का पीठ पर हाथ हो।
इस धर्म को जो पवित्र है, सत्य है, सारी दुनिया के लिए आवश्यक है, किसी की बपौती नहीं है, मानव धर्म है, उसको हिंदू धर्म कहा जाता है।
मोहन भागवत ने कहा- उसके प्रति निष्ठा, श्रद्धा, कम न हो, साथ बनाकर, साथी बनकर, उस निष्ठा को कायम रखना यह काम करना पड़ता है, यह काम हुआ तो धर्म जागरण हुआ, धर्म जागरण हुआ जो दुनिया को चाहिए, वह मानव धर्म कैसा है, क्या है, हिंदू धर्म उसको आचरण करने वाला समूह रहेगा, ग्रंथांे की बात नहीं रहेगी, अनुमान की बात नहीं रहेगी, प्रत्यक्ष जीवन दिखेगा, इस धर्म का आचरण करते हुए ही व्यक्तिगत रूप से पारिवारिक रूप से, समाज के नाते, राष्ट्र के नाते, यह लोग अच्छा जी रहे हैं, दुनिया में अच्छा कर रहे हैं, समाज में अच्छा कर रहा है, ऐसा मॉडल चाहिए तब लोग सीखेंगे, मॉडल पैदा करना भारत मे हमारा काम है, हम अपने आप को इस धर्म के मानते हैं, इसलिए धर्म जागरण का काम चलता है।
मोहन भागवत ने कहा- धर्म कार्य केवल भगवान के लिए नहीं होता, धर्म का कार्य समाज के लिए होता है, समाज को जो धारण करता है वो धर्म है, धर्म ठीक रहा तो समाज ठीक रहेगा, समाज में शांति रहेगी, कलह नहीं होंगे, विषमता नहीं रहेगी सही धर्म का अर्थ समझकर यदि समाज चलता है तो भला होता है। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)