लेखक की कलम

सुप्रीम कोर्ट के दो सुप्रीम फैसले

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
सुप्रीम कोर्ट देश की सबसे बड़ी अदालत है। इसलिए उसके फैसलों पर सभी की निगाह रहती है। अभी हाल मंे सुप्रीम कोर्ट के दो फैसले काफी चर्चा मंे हैं। पहला फैसला कर्नाटक को लेकर है जहां 2 लोगों ने एक मस्जिद में घुसकर जयश्रीराम के नारे लगाये थे। वहां की सरकार ने इसे ‘अपराध’ बताया और हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने धार्मिक भावनाएं आहत होने के आरोप को खारिज कर दिया। इसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई जयश्रीराम का नारा लगाता है तो दूसरे की धार्मिक भावनाएं कैसे आहत हो रही हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार से जवाब मांगा है। इसी प्रकार का एक मामला हरियाणा से जुड़ा है। हरियाणा की आईपीएस भारती अरोड़ा ने एनडीपीएस एक्ट में एक निर्दोष को छोड़ दिया था। इस पर भारती अरोड़ा को आरोपी की मदद करने मंे मुकदमा दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने गत 13 दिसम्बर को रिटायर्ड आईपीएस भारती अरोड़ा के खिलाफ समन और मामले की कार्रवाई को रद्द कर दिया है।
मस्जिद के अंदर जय श्री राम का नारा लगाने से धार्मिक भावनाएं आहत होने के आरोप में दर्ज मुकदमा रद्द करने के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार से जवाब मांगा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कनार्टक सरकार को इस केस में नोटिस जारी करने से मना कर दिया। मामला दक्षिण कन्नड़ जिले का है, जहां 2 लोगों ने मस्जिद में घुसकर जय श्रीराम के नारे लगाए थे। ये मामला जब हाई कोर्ट पहुंचा, तो अदालत ने इसे रद्द कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा- यह अपराध कैसे है? इस पर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, अगर एक समुदाय के धार्मिक स्थल पर, दूसरे समुदाय के नारे लगाने की अनुमति दी जाती है, तो इससे सांप्रदायिक विवाद पैदा होगा। इसके बाद हैदर अली नामक व्यक्ति की याचिका पर कर्नाटक सरकार से जवाब मांगा गया। हाई कोर्ट ने मस्जिद के अंदर नारा लगाने वाले उपद्रवियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि इससे धार्मिक भावनाएं आहत नहीं हुईं। आरोप लगाया गया है कि दक्षिण कन्नड़ जिले के निवासी दो व्यक्ति पिछले साल सितंबर में एक रात स्थानीय मस्जिद में घुस गए और जय श्रीराम के नारे लगाने लगे। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, यह समझ से परे है कि अगर कोई जय श्रीराम का नारा लगाता है, तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना कैसे आहत होंगी? जब शिकायतकर्ता खुद कहता है कि इलाके में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के साथ रह रहे हैं, तो इस घटना को किसी भी तरह से अपराध नहीं माना जा सकता।
दूसरा मामला हरियाणा का है। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा की रिटायर्ड आईपीएस अफसर भारती अरोड़ा के खिलाफ जारी समन और मामले की कार्यवाही को रद्द कर दिया। यह मामला 2005 में उनकी जांच से जुड़ा था, जिसमें एनडीपीएस एक्ट के तहत गिरफ्तार एक व्यक्ति को निर्दोष पाया गया था। कोर्ट ने कहा कि भारती अरोड़ा को एनडीपीएस एक्ट की धारा 58 के तहत गलत तरीके से फंसाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने भारती अरोड़ा के खिलाफ आदेश देने वाली विशेष अदालत पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि जज ने पक्षपात किया और न्याय, निष्पक्ष सुनवाई और सही प्रक्रिया के नियमों का पालन नहीं किया।
भारती अरोड़ा ने कहा, “सत्य की जीत हुई है। सत्यमेव जयते!” उन्होंने कहा कि एक पुलिस अधिकारी के तौर पर उनका कर्तव्य था कि वह बेसहारा लोगों की मदद करें और किसी निर्दोष को फंसने न दें। उन्होंने यह भी कहा कि ईमानदारी से काम करने की वजह से उन्हें कई सालों तक मुश्किलें झेलनी पड़ीं, लेकिन आखिरकार सत्य की जीत हुई। 1998 बैच की आईपीएस अधिकारी और राष्ट्रपति पुलिस मेडल से सम्मानित अरोड़ा ने 2021 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी, जब वह अंबाला में पुलिस महानिरीक्षक थीं।
यह मामला जनवरी 2005 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुए एक नशा-विरोधी छापे से जुड़ा है, जहां पुलिस ने एक संदिग्ध, रण सिंह, से कथित तौर पर 8.7 किलोग्राम अफीम बरामद की थी। अरोड़ा उस समय कुरुक्षेत्र में एसपी थीं। रण सिंह ने अपने एक रिश्तेदार के जरिए एसपी को आवेदन दिया। उसमें कहा गया कि वह निर्दोष है और दूसरों ने उसे फंसाने के लिए अफीम रखी थी। इस पर अरौड़ा ने डीएसपी राम फाल को जांच करने का आदेश दिया। जांच में पता चला कि रण सिंह बेगुनाह है और अफीम तीन तस्करों-सुरजीत सिंह, अंग्रेज सिंह और मेहर दीन-ने रखी थी, जिन पर पहले से केस दर्ज थे। पुलिस ने रण सिंह को निर्दोष बताते हुए अदालत में बरी करने का आवेदन किया। विशेष जज ने इस जांच को खारिज कर दिया और 2007 में रण सिंह को दोषी ठहराया गया साथ ही अरोड़ा समेत अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी किया गया। उन पर आरोप था कि उन्होंने सबूत गढ़े और जांच को गुमराह किया। एनडीपीएस एक्ट की धारा 58 का मकसद यह है कि अधिकारी अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल न करें। अगर कोई अधिकारी जानबूझकर गलत काम करता है या किसी को परेशान करने के इरादे से कार्रवाई करता है, तो इस धारा के तहत सजा का प्रावधान है। अरोड़ा को 15 मार्च 2007 को कोर्ट में बुलाया गया। पेशी के बाद, कोर्ट ने उन्हें अपना जवाब देने के लिए 12 अप्रैल की तारीख दी, और उन्होंने जवाब दाखिल कर दिया। मामला चलता रहा और 22 मई 2008 को उन्हें फिर से कोर्ट में पेश होने को कहा गया। अरोड़ा ने कोर्ट में जाने से छूट मांगी। उन्होंने बताया कि उन्हें हरियाणा पुलिस के रेलवे और तकनीकी सेवाओं के आईजी ने समझौता एक्सप्रेस धमाके की जांच से जुड़ी टीमों के साथ काम करने के लिए जयपुर भेजा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अरोड़ा के खिलाफ कार्यवाही में जरूरी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया, जैसे गवाहों की जांच और क्रॉस-एक्सामिनेशन। जस्टिस गवई ने कहा, “अरोड़ा के खिलाफ जो निष्कर्ष दिए गए हैं, वे कानूनी गलतियों से भरे हुए हैं। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है और कार्यवाही में प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई है।” (हिफी)

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