लेखक की कलम

आजादी के बाद अभूतपूर्व प्रगति

15 अगस्त, 2025 को भारत 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। 15 अगस्त 1947 को भारत ने लंबे स्वातंत्र्य संघर्ष के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्ति हासिल की। राजनीतिक तौर तो आजादी मिल गई देश में धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था स्थापित की। इन 78 साल में देश ने बहुत सारे क्षेत्रों में तरक्की और विकास के कीर्तिमान स्थापित किए। भारत ने दुनिया का सबसे बड़ा और सशक्त लोकतंत्र बनकर यह सिद्ध किया है कि विविधताओं से भरे समाज में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था पनप सकती है। आजादी के बाद भारत ने हर क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। इस दौरान, भारत ने विज्ञान, शिक्षा, प्रौद्योगिकी, कृषि, खेल और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। लोकतंत्र की मजबूत जड़ों ने देश को स्थिरता प्रदान की है, लेकिन गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, लैंगिक असमानता, सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे अभी भी मौजूद हैं।
भारत ने हर क्षेत्र में भारी उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान, परमाणु ऊर्जा, और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कई उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है और चंद्रयान और मंगलयान जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों को अंजाम दिया है। भारत में शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी सुधार हुआ है। साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, और उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। हालांकि, अभी भी शिक्षा के क्षेत्र में कई चुनौतियां मौजूद हैं, जैसे कि शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, और आजादी के बाद से, भारत ने कृषि उत्पादन में काफी वृद्धि की है। हरित क्रांति के माध्यम से, भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की है। हालांकि, अभी भी किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि सिंचाई, उर्वरक, और विपणन। भारत की अर्थव्यवस्था में भी काफी सुधार हुआ है। 1991 में आर्थिक सुधारों के बाद, भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी है। हालांकि, अभी भी भारत को कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि गरीबी, बेरोजगारी, और असमानता लगातार बढ़ रही है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत आज दुनिया की शीर्ष 5 अर्थव्यवस्थाओं में है। डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्पेस टेक्नोलॉजी और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने वैश्विक मंच पर भारत को सम्मान दिलाया है। भारत मेंस्त्री-पुरुष समानता, दलित उत्थान, जन-भागीदारी, और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।
भारत ने वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को आत्मसात करते हुए वैश्विक मंच पर अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई है। संयुक्त राष्ट्र जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर भारत की आवाज गूंजती है। इस सब तरक्की के और आर्थिक विकास के बावजूद ग्रामीण-शहरी विषमता, युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी और शिक्षा-रोजगार के बीच तालमेल की कमी अब भी गंभीर चुनौती है। राजनीतिक ध्रुवीकरण और सामाजिक विभाजन मध्य राजनीतिक दलों के बीच बढ़ता वैमनस्य और जाति-धर्म आधारित राजनीति, राष्ट्रहित को पीछे छोड़ती प्रतीत होती है। तेजी से होते औद्योगीकरण और बेतरतीब विकास ने प्राकृतिक संसाधनों पर गंभीर संकट खड़ा किया है। जल संकट, वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन यथार्थ बन चुके हैं।पर्यावरण संरक्षण के लिए को जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।
हाल ही में उत्तराखंड के धराली में बादल फटने के बाद आई तबाही में काफी जान माल का नुकसान हुआ है इस के अलावा हिमाचल प्रदेश में भी प्राकृतिक आपदा के चलते काफी क्षति हुई है। आजादी के 78 साल बाद भी हम ऐसा डिसासटर सिस्टम बनाने और क्रियान्वित करने में असफल रहे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नैतिक मूल्यों, और विचारों की विविधता को कहीं-कहीं दबाया जा रहा है जो लोकतंत्र के मूल आदर्शों के विपरीत है।
सरकार द्वारा अमृत काल की परिकल्पना अगले 25 वर्षों को ध्यान में रखते हुए की गई है जहाँ 2047 में भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में देखना लक्ष्य है। इस काल में नीति, नीयत और नागरिक भागीदारी- तीनों की शुद्धता अत्यावश्यक होगी।हम एक ऐसे समय में खड़े हैं जब भारत को अपनी आंतरिक कमजोरियों पर आत्ममंथन करना है और भविष्य के लिए ठोस नींव रखनी है। तकनीक, नवाचार, हरित विकास, न्यायिक सुधार, और मानवाधिकारों की रक्षा- ये सभी अब हमारी प्राथमिकताएं होनी चाहिए।
स्वतन्त्रता केवल विदेशी शासन से मुक्ति नहीं, बल्कि भय, भूख, असमानता, अज्ञान और अन्याय से भी मुक्तिजब हर नागरिक को आर्थिक अवसर मिले, बिना भेदभाव के। जब समाज विचारों की विविधता को स्वीकार करे, न कि उसे कुचले। जब युवा आत्मनिर्भर, जागरूक और उत्तरदायी बनें।जब देश की नीति नैतिकता और समावेशिता पर आधारित हो। जब हम संस्कृति का सम्मान करते हुए आधुनिकता से जुड़ें, न कि पश्चिमीकरण को अंधानुकरण समझें।
अपराध बढ़ रहे हैं। इसका एक पहलू ये भी है कि आंकड़ों का बढ़ना हमेशा बुरी बात नहीं होती, बल्कि ये इस बात का संकेत भी हो सकता है कि अब चीजें छिपाई नहीं जा रहीं। देश में इतना विकास के बाबजूद बढते अपराध महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों और अत्याचार के आंकड़े परेशान करने वाले हैं। दुर्भाग्य देखिए कि आज तथाकथित धर्म उपदेशक कथावाचक भारतीय महिलाओं को चरित्रहीन बताने का दुस्साहस कर रहे हैं और हमारी सरकारें ऐसे अल्प शिक्षित अल्प ज्ञानी रील और सोशल मीडिया के बूते पर स्वयंभू बाबा बने लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से हिचकिचा रहीं है। आजादी के 78 साल बाद भी देश की अदालतों में पांच करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित होना बता रहा है कि हमारी न्यायिक व्यवस्था हिचकोले खा रही है। पूंजीवाद हावी हो चला है अमीर और अमीर हो रहा है जबकि गरीब का जीवन कष्टों से भरा हुआ है। अभी भी सबको शिक्षा सबको स्वास्थ्य के लिए व्यवस्था देने में सरकार नाकाम रही है। अस्पताल है तो डाक्टर नहीं है डाक्टर हैं तो दवा नहीं है। भ्रष्टाचार चरम पर है पुलिस स्थानीय प्रशासन न्याय सब बिक रहा है इस सारे हालात में अभी बहुत काम करना बाकी है। आजादी के बाद एक ऐसा तंत्र विकसित हो गया है जिसमें खुदगर्जी स्वार्थ देश के प्रति कर्तव्य निष्ठा का अभाव और सत्ता अधिकार के मनमाने दुरुपयोग की भावना बढ़ गई हैं। यही हमारे देश के विभिन्न वर्गों में असमानता और परस्पर अविश्वास का माहौल बना रही है। हमें भ्रष्टाचार मुक्त समेकित विकास की दिशा में
आगे बढ़ने की जरूरत है तभी हमारी आजादी की रोशनी समाज के आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति के दर को भी रोशन करेगी। (मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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