अध्यात्मधर्म-अध्यात्म

प्रथमं-शैलपुत्री

नवरात्र पर विशेष

(हिन्दुस्तान समाचार-फीचर)

‘वन्दे वांछितलाभाय
चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।’

नवरात्र में प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा भक्तगण प्रातः स्नान कर श्रद्धापूर्वक करते हैं। शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय के यहां उत्पन्न हुई थीं। यह देवी उत्साह की प्राप्ति व जड़ता का नाश करने वाली देवी मानी जाती हैं। समस्त संसार की अधीश्वरी शैलपुत्री ने तपस्या से प्रसन्न हो, हिमालय राज की पुत्री बनना स्वीकारा। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष के यहां कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनको सती के नाम से जाना जाता था। उस जन्म में ये शंकर जी की अद्र्धांगिनी थी। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। प्रजापति दक्ष किसी कारणवश शंकर जी से रुष्ट थे। इसी कारण उन्होंने सारे देवताओं को तो यज्ञ के लिये निमंत्रित किया किन्तु शंकर जी को नहीं बुलाया। सती ने जब सुना तो उनका मन यज्ञ में जाने का हुआ, वह शंकर जी की आज्ञा पाकर अपने पिता के घर आ गईं। सती ने जब यह देखा कि उनके परिवारीजन उनसे ठीक से बात नहीं कर रहे हैं, सिवाय मां के। बहनों ने तो उनका परिहास ही उड़ाया। अब तो सती को यह देखकर बहुत दुःख हुआ। वह मन ही मन सोचने लगीं कि उन्हें अपने पति शंकर जी की बात को मान लेना चाहिये। न वह आती और न ही उनका अपमान होता। यह सोच सती ने उसी समय योगाग्नि द्वारा जलाकर अपने को भस्म कर दिया। जब शंकर जी ने यह सुना तो उन्हें बहुत क्रोध आया। वह यह सहन न कर सके। उन्होंने अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ को तहस-नहस करा दिया। सती ने अगला जन्म शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस प्रकार वह शैलपुत्री के नाम से संसार में जानी गईं। इनकी शक्तियां अनंत हैं। शैलपुत्री की प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। (हिफी)

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