अध्यात्म

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता हनुमान

(अचिता-हिफी फीचर)
भगवान श्रीराम के परम भक्त अंजनी नंदन हनुमान की जयंती चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मनायी जाएगी। माना जाता है कि चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में प्रातः 6 बजे हनुमान जी का जन्म हुआ था। चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को भगवान राम प्रकट हुए थे। इसके बाद हनुमान जी का जन्म हुआ। हालांकि हनुमान जयंती वर्ष में दो बार मनाने की परम्परा है। दूसरी जयंती दीपावली पर्व के दौरान कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाते हैं। बाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी मंगलवार दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था। एक मान्यता के अनुसार माता सीता ने हनुमान जी की भक्ति और बल बुद्धि को देखकर अमरता का वरदान दिया था। यह दिन नरक चतुर्दशी का दिन था। संकट मोचक हनुमान अष्ट सिद्धि और नव निधि के दाता हैं। हनुमान जी अणिका, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राक्राम्य, महिमा, ईशित्व और वशित्व नामक आठ सिद्धियों के स्वामी हैं। इसी प्रकार नव रत्नों को ही नव निधि कहा गया है। नौ रत्नों में पद्म, महा पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकंुद, कुंद, नील और खर्व की गिनती होती है। हनुमान जी इनके स्वामी हैं लेकिन इन सभी को प्रभु राम और माता सीता का स्वरूप ही मानते हैं।
राम भक्त हनुमान के जन्म की कई कथाएं हैं। पवन पुत्र हैं तो शंकर सुअन केशरी नंदन भी हैं। हनुमान जी को 11वें रुद्र का अवतार माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से जब अमृत निकला तो देवता और असुर आपस में झगड़ा करने लगे। इसके चलते ही भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। भगवान शिव ने जब मोहिनी को देखा तो वासना में लिप्त हो गये। उस समय भगवान शिव ने अपने वीर्य का त्याग कर दिया। इसी वीर्य को पवन देव ने अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया। अंजना भी एक अप्सरा थी जिसे श्राप के कारण पृथ्वी पर वानरी रूप मंे आना पड़ा उसे श्राप से मुक्ति भी तभी मिल सकती थी जब वह शिव के समान तेजस्वी बालक को जन्म दे।
हनुमान जन्मोत्सव हिंदू धर्म में एक पवित्र पर्व है। शास्त्रों के अनुसार संकट मोचन हनुमान जी आज भी धरती पर विद्यमान हैं और भक्तों के कष्टों को हरने वाले देवता माने जाते हैं। हर साल यह पर्व चैत्र माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन श्री राम और हनुमान जी का सच्चे मन से स्मरण करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस वर्ष 12 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि 12 अप्रैल को सुबह 3.21 बजे से शुरू होकर 13 अप्रैल सुबह 5.51 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार हनुमान जन्मोत्सव 12 अप्रैल को मनाया जाएगा।भगवान हनुमान शक्ति, भक्ति और अटूट विश्वास के प्रतीक हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उनकी पूजा करने से भय, नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों का नाश होता है। इस दिन हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता है।प्रातः स्नान कर लाल वस्त्र धारण करें। हनुमान जी को सिंदूर, लाल फूल, तुलसी दल, चोला और बूंदी के लड्डू अर्पित करें।
हनुमान जन्मोत्सव के इस शुभ अवसर पर विधिपूर्वक पूजा करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। हनुमान जी कलियुग के देव हैं। जब भी व्यक्ति को कष्ट होता है या फिर जीवन में परेशानियों ने घेर लिया होता है तो वह बजरंगबली की शरण में जाता है। हनुमान जी का स्मरण करते ही मन में भक्ति, शक्ति और साहस की अनुभूति होने लगती है। वे न केवल भक्तों के सभी संकटों को दूर करने वाले हैं, बल्कि अटूट भक्ति और सेवा के प्रतीक भी माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त और आजीवन ब्रह्मचारी थे।
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि रावण के अहंकार के चलते जब उसने शनि देव को बंदी बना लिया था, तब हनुमान जी ने अपने अद्भुत पराक्रम से शनिदेव को मुक्त किया था। इस उपकार से प्रसन्न होकर शनि देव ने आशीर्वाद दिया कि जो भी हनुमान जी की सच्चे मन से आराधना करेगा, उस पर शनि की अशुभ दृष्टि नहीं पड़ेगी। इसलिए आज भी मान्यता है कि शनिवार को हनुमान जी की उपासना करने से शनि के सभी दोष शांत हो जाते हैं। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या जैसी पीड़ाओं से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी का स्मरण सबसे प्रभावशाली उपाय माना जाता है। अगर हम प्रिय राशि को चढ़ावे या दान के रूप में देखें, तो हनुमान जी को कुछ खास चीजें अत्यंत प्रिय मानी
जाती हैं। आप हनुमान जी को चमेली के तेल में मिश्रित सिंदूर से चोला चढ़ा सकते हैं। यही नहीं, साथ में गरमा-गरम बूंदी के लड्डू भी चढ़ा सकते हैं। प्रसाद के रूप में आप गुड़ और चने का भोग लगा सकते हैं और लाल वस्त्र और फूल अर्पित कर सकते हैं। इसके साथ ही आप राम नाम का जाप भी जरूर करें।
हनुमान जी, जिन्हें पवन पुत्र और अंजनी पुत्र के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म चैत्र पूर्णिमा के दिन, मंगलवार को हुआ था, जो हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है. उनकी माता का नाम अंजनी और पिता का नाम वानरराज केसरी था
लोककथा के अनुसार राजा दशरथ को यज्ञ से प्राप्त हवि का एक अंश लेकर भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ देव उड़ गए और उस जगह गिरा दिया जहां माता अंजना पुत्र प्राप्ति के लिए तप कर रही थीं। माता अंजना ने हवि को ग्रहण कर लिया और उसके चमत्कार से उन्हें पुत्र रूप में हनुमान जी की प्राप्ति हुई। धार्मिक कथा के अनुसार हनुमान जी भगवान शिव का 11वां रुद्र अवतार है। उनके जन्म को लेकर कहा जाता है कि, जब विष्णु जी ने धर्म की स्थापना के लिए इस धरती पर प्रभु श्री राम के रूप में जन्म लिया, तब भगवान शिव ने उनकी मदद के लिए हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था।
एक बार श्रीराम हाथ जोड़कर अगस्त्य मुनि से बोले, ऋषिवर! निःसन्देह वालि और रावण दोनों ही भारी बलवान थे, परन्तु मेरा विचार है कि हनुमान उन दोनों से अधिक बलवान हैं। इनमें शूरवीरता, बल, धैर्य, नीति, सद्गुण सभी उनसे अधिक हैं। यदि मुझे ये न मिलते तो भला क्या जानकी का पता लग सकता था? मेरे समझ में यह नहीं आया कि जब वालि और सुग्रीव में झगड़ा हुआ तो इन्होंने अपने मित्र सुग्रीव की सहायता करके वालि को क्यों नहीं मार डाला। आप कृपा करके हनुमानजी के बारे में मुझे सब कुछ बताइये।
रघुनाथजी के वचन सुनकर महर्षि अगस्त्य बोले, हे रघुनन्दन! आप ठीक कहते हैं। हनुमान अद्भुत बलवान, पराक्रमी और सद्गुण सम्पन्न हैं, परन्तु ऋषियों के शाप के कारण इन्हें अपने बल का पता नहीं था। अगस्त्य जी ने तब हनुमान द्वारा सूर्य को फल समझकर निगलने की कथा सुनाई। उस समय हनुमान पर इंद्र ने वज्र का प्रहार किया था। इन्द्र के वज्र से हनुमान जी की हनु (ठुड्डी) टूट गई थी, इसलिये तब से उनका नाम हनुमान हो गया। फिर प्रसन्न होकर सूर्य ने हनुमान को अपने तेज का सौंवा भाग दिया। वरुण, यम, कुबेर, विश्वकर्मा आदि ने उन्हें अजेय पराक्रमी, अवध्य होने, नाना रूप धारण करने की क्षमता आदि के वर दिया। इस प्रकार नाना शक्तियों से सम्पन्न हो जाने पर निर्भय होकर वे ऋषि-मुनियों के साथ शरारत करने लगे। किसी के वल्कल फाड़ देते, किसी की कोई वस्तु नष्ट कर देते। इससे क्रुद्ध होकर ऋषियों ने इन्हें शाप दिया कि तुम अपने बल और शक्ति को भूल जाओगे। (हिफी)

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