अध्यात्म

जीण माता ने छुड़ाए थे औरंगजेब के छक्के

(रमेश सर्राफ धमोरा-हिफी फीचर)
राजस्थान के सीकर-जयपुर मार्ग पर गोरिया के पास जीणमाता गांव में देवी स्वरूपा जीण माता का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। जीण माता का वास्तविक नाम जयन्ती माता है। माता दुर्गा की अवतार हैं। यह मंदिर शक्ति की देवी को समर्पित है। घने जंगल से घिरा हुआ यह मंदिर तीन छोटी पहाड़ियों के संगम पर स्थित है। जीण माता का यह मन्दिर बहुत प्राचीन शक्ति पीठ है। जीण माता का मंदिर दक्षिण मुखी है लेकिन मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व में है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिकों व वाममार्गियों की मूर्तियां लगी हैं जिससे यह भी सिद्ध होता है कि उक्त सिद्धांत के मतावलंबियों का इस मंदिर पर कभी अधिकार रहा है या उनकी यह साधना स्थली रही है। बताया जाता है कि आतताई औरंगजेब के छक्के जीण माता ने छुड़ा दिये थे और माँ की चौखट पर नाक रगड़ी थी।
मंदिर के देवायतन का द्वार सभा मंडप में पश्चिम की ओर है। यहां जीण भगवती की अष्टभुजी आदमकद मूर्ति प्रतिष्ठापित है। सभा मंडप पहाड़ के नीचे है। मंदिर में ही एक और मंदिर है जिसे गुफा कहा जाता है, जहां जगदेव पंवार का पीतल का सिर और कंकाली माता की मूर्ति है। मंदिर के पश्चिम में महात्मा का तप स्थान है जो धुणा के नाम से प्रसिद्ध है। लोगों का मानना है कि यह मंदिर एक हजार साल पुराना है लेकिन कई इतिहासकार आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं। मंदिर में अलग-अलग आठ शिलालेख लगे हैं जो मंदिर की प्राचीनतम के सबल प्रमाण है। उपरोक्त शिलालेखों में सबसे पुराना शिलालेख संवत 1029 का है। जिस पर उसमें मंदिर के निर्माण का समय नहीं लिखा गया है। इसलिए यह मंदिर उससे भी अधिक प्राचीन है। चौहान चन्द्रिका नामक पुस्तक में इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी से पूर्व किया गया।
एक जनश्रुति के अनुसार देवी जीण माता ने सबसे बड़ा चमत्कार मुगल बादशाह औरंगजेब को दिखाया था। औरंगजेब ने शेखावाटी के मंदिरों को तोड़ने के लिए एक विशाल सेना भेजी थी। यह सेना हर्ष पर्वत पर शिव व हर्षनाथ भैरव का मंदिर खंडित कर जीण मंदिर को खंडित करने आगे बढ़ी तो कहते है कि मन्दिर के पुजारियों के आर्त स्वर में मां से विनय करने पर मां जीण ने भंवरे (बड़ी मधुमक्खियां) छोड़ दीं जिनके आक्रमण से औरंगजेब की शाही सेना लहूलुहान हो भाग खड़ी हुई। कहते है स्वयं बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई। तब बादशाह ने हाथ जोड़ कर मां जीण से क्षमा याचना कर मां के मंदिर में अखंड दीप के लिए दिल्ली से सवामण तेल भेजने का वचन दिया। कई वर्षो तक माता के मन्दिर में दीपक के लिए दिल्ली से तेल आता रहा फिर दिल्ली के बजाय जयपुर से आने लगा। बाद में जयपुर महाराजा ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्रों के समय भिजवाना आरम्भ कर दिया और महाराजा मान सिंह जी के समय तेल के स्थान पर नगद 20 रु. 3 आने प्रतिमाह कर दिए जो निरंतर प्राप्त होते रहे। औरंगजेब को चमत्कार दिखाने के बाद जीण माता भंवरों की देवी भी कही जाने लगीं।
हमारे देश में दुर्गा मां को शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। दुर्गा मां के कई रूप और अवतार हैं। पूरे भारत में नवरात्र के अवसर पर माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ती है। आस्था से भरे इस देश में माता का स्थान सबसे ऊपर है। जीण माता देवी शक्ति हैं जो सदियों से लेकर आज तक लगातार आराध्य देवी के रूप में पूजी जाती हैं। जीण माता मंदिर में हर वर्ष चैत्र सुदी एकम् से नवमी (नवरात्र में) व आसोज सुदी एकम से नवमी में दो विशाल मेले लगते हैं जिनमें देश भर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है। जीणमाता मेले के अवसर पर राजस्थान के बाह्य अंचल से भी अनेक लोग आते हैं। मन्दिर में बारह मास अखण्डदीप जलता रहता है। हर मंदिर के कपाट चंद्र ग्रहण के दौरान बंद रहते हैं। इसका कारण यह है कि चंद्र ग्रहण के दौरान नकारात्मक शक्तियां बढ़ जाती हैं और सकारात्मक शक्तियां कमजोर पड़ जाती हैं। इसलिए मान्यता है कि अगर मंदिर के कपाट खुले रखेंगे तो मंदिर में बुरी शक्तियों का वास होगा लेकिन शक्तिपीठ जीण माता मंदिर के कपाट हमेशा खुले रहते हैं। इस मंदिर के कपाट कभी भी बंद नहीं होते हैं। राजस्थान का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां 24 घंटे भक्त मां जीण भवानी के दर्शन करते हैं।
लोक कथाओं के अनुसार जीण माता का जन्म अवतार राजस्थान के चूरू जिले के घांघू गांव के अधिपति एक चौहान वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था। जीण माता के बड़े भाई का नाम हर्ष था। माता जीण को शक्ति का अवतार माना गया है और हर्ष को भगवान शिव का अवतार माना गया है। कहते हैं कि दोनों बहन भाइयों में बहुत स्नेह था लेकिन किसी बात पर दोनों में मनमुटाव हो गया। तब जीण माता यहां आकर तपस्या करने लगी। पीछे-पीछे हर्षनाथ भी अपनी लाडली बहन को मनाने के लिए आए लेकिन जीण माता ने जिद कर साथ जाने से मना कर दिया। हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और वे भी वहां से कुछ दूर जाकर तपस्या करने लगे। दोनों भाई बहन के बीच हुई बातचीत का सुलभ वर्णन आज भी राजस्थान के लोक गीतों में मिलता है। भगवन हर्षनाथ का भव्य मन्दिर आज भी राजस्थान की अरावली पर्वतमाला में स्थित है।
जीण भवानी की सुबह चार बजे मंगला आरती होती है। आठ बजे शृंगार के बाद आरती होती है व सायं सात बजे आरती होती है। दोनों आरतियों के बाद भोग (चावल) का वितरण होता है। माता के मन्दिर में प्रत्येक दिन आरती समयानुसार होती है। चन्द्रग्रहण और सूर्य ग्रहण के समय भी आरती अपने समय पर होती है। हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी को विशेष आरती व प्रसाद का वितरण होता है। माता के मन्दिर के गर्भ गृह के द्वार (दरवाजे) 24 घंटे खुले रहते हैं। केवल शृंगार के समय पर्दा लगाया जाता है। हर वर्ष शरद पूर्णिमा को मन्दिर में विशेष उत्सव मनाया जाता है। जीणमाता मंदिर से काजल शिखर की 300 फीट ऊंचाई पर है। बुजुर्ग, दिव्यांग, महिलाओं, बच्चों का यहां पहुंच पाना मुश्किल रहता था। इन सबकी सुविधा के लिए अब रोप वे शुरू हो गया है। शिखर तक पहुंचने में अब तक 2 घंटे लगते थे लेकिन रोप वे से ये दूरी 5 मिनट में तय हो जाती है। (हिफी)

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