जीवन भर मानव कल्याण में रत रहे यीशु

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)
सभी धर्मों में एक परम शक्ति मानी गयी है जिसकी उस धर्म के मानने वाले आराधना करते हैं और उसके बताये रास्ते पर चलकर सुख-शांति की अनुभूति करते हैं। क्रिश्चियन (ईसाई) धर्म मंे यीशु को परम शक्ति माना गया है जो मानव के रूप में अवतरित हुए। यीशु जीवन पर्यन्त मानव कल्याण की दिशा मंे कार्यरत रहे। उन्होंने 25 दिसंबर को एक साधारण परिवार में जन्म लिया था। तत्कालीन शासन व्यवस्था को उनकी बातें अच्छी नहीं लगीं और यीशु को क्रूस पर लटका दिया गया। यीशु की महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जो लोग और जिनके आदेश पर उन्हें मृत्युदण्ड दिया जा रहा था उनके लिए भी ईश्वर से प्रार्थना की और कहा हे ईश्वर उन्हें माफ करना क्योंकि ये लोग अज्ञानी हैं। ऐसे महान यीशु के जन्म दिन पर पूरी दुनिया में ईसाई धर्म के अनुयायी क्रिसमस डे मनाते हैं। भारत में भी सर्व धर्म सद्भाव के रूप में यह पर्व बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। यीशु की स्तुति में कैरोल गाया जाता है। चर्च सजाए जाते हैं और प्रार्थना की जाती है।
ईसाइयों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार क्रिसमस विश्व भर में 25 दिसम्बर को खूब हर्षोल्लास से मनाया जाता है। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर से ही क्रिसमस से जुड़े कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं। यूरोपीय और पश्चिमी देशों में इस दौरान खूब रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारत में गोवा राज्य में क्रिसमस की काफी धूम रहती है। इसके अलावा विभिन्न शहरों की बड़ी चर्चों में भी इस दिन सभी धर्मों के लोग एकत्रित होकर प्रभु यीशु का ध्यान करते हैं। क्रिसमस की पूर्व संध्या पर लोग प्रभु की प्रशंसा में कैरोल गाते हैं और क्रिसमस के दिन प्यार व भाईचारे का संदेश देने एक दूसरे के घर जाते हैं।
क्रिसमस अब सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं रहा बल्कि इसने सामाजिक पर्व का रूप धारण कर लिया है तभी तो अब सभी समुदायों के लोग बढ़.चढ़कर इसे मनाते हैं और आपस में खुशियां बांटते हैं।
इस पर्व के दौरान सभी लोग अपने घरों में क्रिसमस ट्री लगाते हैं जिसे अच्छे अच्छे उपहारों से सजाया जाता है। इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। ईसाइयों के अलावा अन्य लोग भी इस दौरान अपने घर में क्रिसमस ट्री लगाते हैं। इसे अच्छे अच्छे उपहारों से सजाया जाता है और इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। आजकल बाजार में बने बनाए क्रिसमस ट्री भी मिलते हैं।
माना जाता है एक बार ईश्वर ने ग्रैबियल नामक अपना एक दूत मैरी नामक युवती के पास भेजा। ईश्वर के दूत ग्रैबियल ने मैरी को जाकर कहा कि उसे ईश्वर के पुत्र को जन्म देना है। यह बात सुनकर मैरी चौंक गई क्योंकि अभी तो वह कुंवारी थी, सो उसने ग्रैबियल से पूछा कि यह किस प्रकार संभव होगा? तो ग्रैबियल ने कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा। समय बीता और मैरी की शादी जोसेफ नाम के युवक के साथ हो गई। भगवान के दूत ग्रैबियल जोसेफ के सपने में आए और उससे कहा कि जल्द ही मैरी गर्भवती होगी और उसे उसका खास ध्यान रखना होगा क्योंकि उसकी होने वाली संतान कोई और नहीं स्वयं प्रभु यीशु हैं। उस समय जोसेफ और मैरी नाजरथ जोकि वर्तमान में इजराइल का एक भाग है, में रहा करते थे। उस समय नाजरथ रोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। एक बार किसी कारण से जोसेफ और मैरी बैथलेहम, जोकि इस समय फिलस्तीन में है, में किसी काम से गए, उन दिनों वहां बहुत से लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं और शरणालय भरे हुए थे जिससे जोसेफ और मैरी को अपने लिए शरण नहीं मिल पाई। काफी थक.हारने के बाद उन दोनों को एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु का जन्म हुआ। अस्तबल के निकट कुछ गडरिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गडरियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी। गडरिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन किया।
यीशु जब बड़े हुए तो उन्होंने पूरे गलीलिया में घूम.घूम कर उपदेश दिए और लोगों की हर बीमारी और दुर्बलताओं को दूर करने के प्रयास किए। धीरे.धीरे उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलती गई। यीशु के सद्भावनापूर्ण कार्यों के कुछ दुश्मन भी थे जिन्होंने अंत में यीशु को काफी यातनाएं दीं और उन्हें क्रूस पर लटकाकर मार डाला लेकिन यीशु जीवन पर्यन्त मानव कल्याण की दिशा में जुटे रहे, यही नहीं जब उन्हें कू्रस पर लटकाया जा रहा था, तब भी वह यही बोले कि हे पिता इन लोगों को क्षमा कर दीजिए क्योंकि यह लोग अज्ञानी हैं। उसके बाद से ही ईसाई लोग 25 दिसम्बर यानि यीशु के जन्मदिवस को क्रिसमस के रूप में मनाते हैं।
क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। यह 25 दिसंबर को पड़ता है और इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व में अवकाश रहता है। क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। 25 दिसंबर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं हैं और लगता है कि इस तिथि को एक रोमन पर्व या मकर संक्रांति (शीत अयनांत) से संबंध स्थापित करने के आधार पर चुना गया है। आधुनिक क्रिसमस की छुट्टियों मंे एक दूसरे को उपहार देना, चर्च में समारोह और विभिन्न सजावट करना शामिल हैं। इस सजावट के प्रदर्शन मंे क्रिसमस का पेड़, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। सांता क्लॉज (जिसे क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है हालांकि, दोनों का मूल भिन्न है) क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए उपहार लाने के साथ जोड़ा जाता है। सांता के आधुनिक स्वरूप के लिए मीडिया मुख्य रूप से उत्तरदायी है। क्रिसमस को सभी ईसाई लोग तो मनाते ही हैं और आजकल कई गैर ईसाई लोग भी इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस के दौरान उपहारों का आदान-प्रदान, सजावट का सामन और छुट्टी के दौरान मौजमस्ती के कारण यह एक बड़ी आर्थिक गतिविधि बन गया है और अधिकाँश खुदरा विक्रेताओं के लिए इसका आना एक बड़ी घटना है।
दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसम्बर को ही जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं। ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसम्बर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है। वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अंतर होता है। बहरहाल क्रिसमस पूरी दुनिया में मनाया जाता है। (हिफी)